"यार आधा घण्टा हो गया, तुम्हें फोन किये, तुमने बोला पाँच मिनिट में आ रहा हूँ, चक्कर क्या है - वहाँ शोकसभा है, हम पहुँचेंगे तब तक खत्म ना हो जाये, जल्दी करो " लाईवा को फोन किया
"जी, भाई साहब आ ही रहा हूँ, वो कविता की तीसरी डायरी नही मिल रही, दो तो रख ली" बेशर्मी से जवाब दिया लाईवा ने
"अबै, गधे वहाँ शोकसभा है कविता पाठ नही " - मैं हैरान था
"जी, पता है पर क्या है ना हिंदी के ही क्षेत्र वाले बड़े कवि थे जो मरें, अब कोई अकादमिक आयोजन हो - शोध, प्रशिक्षण, पुरात्तत्व, भाषा - अनुवाद के जटिल मसले या किसी की विदेश यात्रा का रोचक वर्णन प्रस्तुति - काव्य पाठ तो होता ही है ना, भीड़ भी बढ़ जाती है, कुछ लोगों को उपकृत भी कर सकते है और स्वयं उपकृत हो भी सकते है, कवि टाईप चार - आठ लौंडो को बुलाने में क्या हर्जा है, और फिर शोकसभा में भी काव्य गोष्ठी हो जाये तो कोई नया नही होगा और फिर हथियार तो पास होने ही चाहिये ना अपने" - ससुरा घातक लाईवा दरवाज़े के आगे खड़ा था, पुराना घटिया सा एलएमएल वेस्पा लेकर
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मप्र के मण्डला में रज़ा के आयोजन को देखें जरा जो 11 - 13 नवम्बर तक है इस बार, ध्यानी ज्ञानी युवा जूट रहें है
◆ 30 % कवि 30 - 32 वर्ष तक के युवा
◆ शेष 70% 32 से 60 तक की आयु के अधेड़, प्रौढ़, बूढ़े और बुढियायें
यूएन कहता है 10 से 19 तक किशोर और 19 से 24 तक युवा वर्ग है - यहां तो लगभग सब 30 पार है, पीएचडी करते - करते चिड़चिड़े हो गए, फिर भी अभी पूरी नही हुई, 35 - 36 की बाली उमर और दो - तीन बच्चे वाले या नौकरी के अभाव में फ्रस्ट्रेट एवं अधेड़ होते जा रहे विवि में या किसी बनिये के यहाँ संविदा पर बंधुआ मजूरी कर रहें युवा
हमारे मंडला में वैसे ही आदिवासी ज़्यादा है, इन जैसे साक्षर नही - पर शिक्षित है इनसे ज़्यादा, बापड़े वो बेचारे किशोर, युवा या प्रौढ़ बूढ़े की उम्र का गणित ना भूल जाएं
बहरहाल,
बधाई
एमपी अजब और गजब में इन 30 पार युवाओं का स्वागत
वैसे 85 की मतिभरम वाली उम्र में नरसिम्हाराव भी युवा ही थे, 54 में राजीव, अभी 70 पार मोदी या 47 का राहुल भी युवा ही है - जिसे क्या कहते है सब आप जानते ही है
देख रहें हो ना विनोद - तय कर लेने दो इन्हें ही
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"मैं पूछ रियाँ था कि ये जेआरएफ का रायता कब तक फ़ैलेगा और फिर ओबीसी, दलितों को पीएचडी गाइड एवं सीट ना मिलने की पोस्ट कब से लिखनी है - ब्राह्मणों को कोसते हुए" - अब्बी फोन आया लाईवा का
"अबै ओ, तू साले जीवन भर जेआरएफ देता रहा, नक़ल करके हिंदी में एमए टॉप किया किसी सडैले विवि से, पीआरटी में घिस रहा है तो क्या बाकी पढ़ना और कोसना छोड़ दें, ये हिंदी - चिन्दी की पीड़ा मत परोसा कर, तू कॉलेज में पढ़ाये बगैर ही मरेगा, नरक में जायेगा चिंता मत कर, बच्चों को पढ़ा और मासिक गोशवारा भरता रह" - फोन काटकर सो रहा अब मैं
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फेसबुक पर ही लौट आओ बबुआ, तुम्हे कोई कछु ना कहेगा
सुबू का भूला शाम कूँ घर आये तो फेसबुकिया कहलाता है
[ट्वीटर पे $ - 8/- में ब्ल्यू टिक ]
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भारत निर्वाचन आयोग आज गुजरात चुनावों की घोषणा कर रहा है, यदि यह घोषणा जिस दिन हिमाचल प्रदेश के चुनाव घोषित हुए थे, उस दिन कर देता तो गुजरात के मोरवी में हुए दुखद हादसे से निजात पाई जा सकती थी
सिर्फ नरेंद्र मोदी की हवाई और निहायत ही फर्जी घोषणाओं को पर्याप्त समय देने के लिए भारत निर्वाचन आयोग ने यह लेट लतीफी की और फलस्वरूप मोरवी का बड़ा हादसा हुआ, कल सूरत के एक मित्र से बात हुई जो दावे से कह रहें थे कि सिर्फ 141 नही - बल्कि 400 से ज्यादा लोग मारे गए है, इस पुल हादसे में नदी का पानी तत्काल बहा दिया गया - जिससे लाशें दूर बहकर जा सकें और किसी को ना मिलें ताकि और बड़ा धब्बा ना लगें
यदि आचार संहिता उसी दिन लग जाती तो ना पुल खोला जाता - और ना ही 400 लोगों की बलि चढ़ती
इसलिए गुजरात सरकार, भारत सरकार के साथ - साथ भारत निर्वाचन आयोग भी इन 400 हत्याओं का प्रत्यक्ष दोषी है समझिये यह बात
सुप्रीम कोर्ट और महामहिम राष्ट्रपति को स्वत: संज्ञान लेकर भारत निर्वाचन आयोग से जवाब पूछना चाहिए कि ये लेट लतीफी क्यों और आज यह घोषणा क्यों, भारत निर्वाचन आयोग एक संविधानिक संस्थान है, फिर नरेंद्र मोदी नामक व्यक्ति और भाजपा जैसी पार्टी की चाटुकारिता क्यों कर रहा है - चुनाव में नरेंद्र मोदी सिर्फ एक प्रचारक है पार्टी का यदि वह अपने पद का दुरुपयोग करता है तो यह असंविधानिक है पूर्णतया
धिक्कार और शर्मनाक है यह कायरता भरा कदम भारत निर्वाचन आयोग का
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