एकदम ही बेकार सीरीज, कोई अर्थ नही है कहानी में, ना कड़ियों का आपस में कोई लिंक है, दुर्भाग्य यह है कि जो इस कांड में पूरी शिद्दत और दम खम से संलिप्त थे वे आज भी सत्ता में पूरी मुस्तैदी से मौजूद है - उनके बारे में ना एक शब्द - ना इशारा और सबसे कमजोर बात कि आजतक का अक्षय सिंह मेघनगर जाकर मरा था / मारा गया था - उसे कहानी की शुरुआत से दिखाया गया है और मौत उज्जैन थाने में दिखाई जबकि वह डाक्टर वर्षा के घर मरा था, कुछ भी कहानी है - ना तथ्य, ना गल्प और ना नाटकीयता
58 से ज्यादा लोग मारे गए थे जिनका कोई जिक्र नही है - बस यह एकमात्र सच हैं कि अंततः "व्हिसिल ब्लोवर ही कलप्रीट है" - यह बात बीच में आती भी है और सम्भवतः सच भी हो
कुल मिलाकर टाइम वेस्ट
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