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Kuchh Rang Pyar Ke - Post of 2 Dec 2021

कुछ न कर पाने, अवसाद, संताप, बीते हुए समय की चाल, काँपते पछतावों, अकुलाहट, बेचैनी, गले मे फंस गई गुनगिनी आवाज़, खराश और चीखों के बीच का दुःस्वप्न और नई उड़ान के सपनों का नाम दिसम्बर है - जो हर बार आता है और छोड़ जाता है - पीछे छूट गई अधूरी इच्छाओं की फेहरिस्त

दिसम्बर, तुम पचपन बार आकर सब कुछ लूट ले गए और एक ढंग की जनवरी ना दे सके - जिसके भरोसे किसी चाँद सूरज की उम्मीद की जा सकती हो - एक शांत शाम की, एक स्निग्ध मुस्कान की या एक राह की जो सर्पीली ना होकर सीधी हो और जीवन के सत्य पर जा छोड़े अंततः
तुम लौट जाओ दिसम्बर, तुम सम्पूर्ण नही, तुम अतीत और आगत के पुल भी नही, वरन एक संकरी सी गली हो - जिसमें से जिस्म अपनी बजबजाती स्मृतियों को ढोते हुए किसी अनजान उजास में परवरिश के लिए प्रवेश करता है
दिसम्बर, तुम नए और खात्मे के बीच की वो बही हो - जो फुदकती साँसों के परे हिसाब - क़िताब रखकर हर पृष्ठ को नया होने का झाँसा देते हो, तुम लौट जाओ दिसम्बर
दिसम्बर तुम सारे किये धरे को निस्पृह कर दिगम्बर कर देते हो, तुम्हे पुनः लौटना होगा दिसम्बर - ताकि भ्रम बने रहें, जीवन - भ्रम, भरोसे और भँवर में ही शाश्वत है, वरना तो सब कुछ खोखला है

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आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

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