कुछ न कर पाने, अवसाद, संताप, बीते हुए समय की चाल, काँपते पछतावों, अकुलाहट, बेचैनी, गले मे फंस गई गुनगिनी आवाज़, खराश और चीखों के बीच का दुःस्वप्न और नई उड़ान के सपनों का नाम दिसम्बर है - जो हर बार आता है और छोड़ जाता है - पीछे छूट गई अधूरी इच्छाओं की फेहरिस्त
दिसम्बर, तुम पचपन बार आकर सब कुछ लूट ले गए और एक ढंग की जनवरी ना दे सके - जिसके भरोसे किसी चाँद सूरज की उम्मीद की जा सकती हो - एक शांत शाम की, एक स्निग्ध मुस्कान की या एक राह की जो सर्पीली ना होकर सीधी हो और जीवन के सत्य पर जा छोड़े अंततः
तुम लौट जाओ दिसम्बर, तुम सम्पूर्ण नही, तुम अतीत और आगत के पुल भी नही, वरन एक संकरी सी गली हो - जिसमें से जिस्म अपनी बजबजाती स्मृतियों को ढोते हुए किसी अनजान उजास में परवरिश के लिए प्रवेश करता है
दिसम्बर, तुम नए और खात्मे के बीच की वो बही हो - जो फुदकती साँसों के परे हिसाब - क़िताब रखकर हर पृष्ठ को नया होने का झाँसा देते हो, तुम लौट जाओ दिसम्बर
दिसम्बर तुम सारे किये धरे को निस्पृह कर दिगम्बर कर देते हो, तुम्हे पुनः लौटना होगा दिसम्बर - ताकि भ्रम बने रहें, जीवन - भ्रम, भरोसे और भँवर में ही शाश्वत है, वरना तो सब कुछ खोखला है
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