"ये पर्दा तुम्हारा कैसा है, क्या ये मज़हब का हिस्सा है" - कमला भसीन कभी नही मरती
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बहुत साल पहले यानी 1987 में एक किताब पढ़ी थी छोटी सी कार्टूननुमा थी - "उल्टी सुल्टी मित्तो" एक छोटी सी बच्ची की कहानी थी, फिर पीले चमकीले कव्हर पेज के साथ आई एक किताब - "नारीवाद क्या है", फिर हाथ लगी "पितृ सत्ता क्या है" सब 1990 तक पढ़ चुका था
"द हंगर प्रोजेक्ट" में राज्य प्रतिनिधि था तो महिला जन प्रतिनिधियों के साथ बहुत काम किया, दिल्ली में अक्सर जाना होता था, देशभर की लड़ाकू महिला मित्रों और जेंडरवादी औरतें अक्सर टकराती थी - और गर्मागर्म बहस होती महिला सम्मेलनों में खूब भाषण सुनता और समझ बनाने का प्रयास करता
जागोरी के साथ काम किया, Runu Chakraborty मेरी 1987 से दोस्त है, खूब गाने गाये - महिला समानता के जो भारत पाक महिलाओं की संयुक्त कार्यशाला में लिखें हो या राजस्थान में - आज बहुत समझ तो नही पर जेंडर के मुद्दों की पड़ताल कर महिला समानता जरूर समझता हूँ, जेंडर बजटिंग हो या सुशासन में भागीदारी या साहित्य में महिलाओं की उपस्थिति
इन सबके पीछे सीमोन द बाउवा, प्रभा खेतान, राजेन्द्र यादव, नासिरा शर्मा, सुधा अरोरा, मैत्रेयी पुष्पा, अलका सरावोगी तो थी ही पर सबसे सशक्त और बुलन्द आवाज़ वाली, हर सड़क और चौराहे पर लड़ने भिड़ने वाली, पुरुषों और लड़कों के प्रश्नों के बेधड़क तार्किक जवाब देने वाली कमला भसीन थी - जो दूर से देखते ही पहचान लेती और कहती - "संदीप कहाँ ठहरे हो, दिल्ली में दिक्कत हो तो घर आ जाना, एक क़िताब में तुम्हारी मदद की ज़रूरत है" एक पूरी पीढ़ी थी वो - मोहिनी गिरी के साथ कमला भसीन जैसी भद्र महिलाओं ने जब शहरी महिलाओं के जेंडर आधारित मुद्दों पर काम करके अपना ध्यान हमारे साथ काम कर रही ग्रामीण महिलाओं पर केंद्रित किया तो लगा कि उनकी भी समझ बनी कि महिलाओं के साथ जेंडर पर काम करने का फलक बड़ा होना चाहिये और ग्रामीण महिलाओं को इस लड़ाई में शामिल किये बिना महिला आंदोलन अधूरा है
कमला भसीन जैसे लोग मरते नही है, वे हमेशा ज़िंदा रहते है - उन्हें श्रद्धांजलि नही दूँगा, बस कुछ गीत की पंक्तियाँ बोलकर, गुनगुनाकर अपने - आपको दिलासा दे दूँगा कि - "कमला दी अब दिल्ली में कोई नही है जो कहें कि घर आ जाना"
◆ तू बोलेगी मुंह खोलेगी, तब ही तो जमाना बदलेगा
दरिया की कसम मौजों की कसम, ये ताना बाना बदलेगा
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◆ एक दो तो पेले चैती कुछ नही फर्को आयो,
दो चार के चेतवा से कुछ झंकारों आयो,
गांवा की सब बैणा चेती, धरती पलटो खायो,
बैणा चेत सकें तो चैत
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◆ औरतें उठ्ठी नही तो ज़ुल्म बढ़ता जायेगा
ज़ुल्म करने वाला सीना ज़ोर बनता जायेगा
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असंख्य गीत है जो ज़ेहन में आ रहें है , मैं बुदबुदा रहा हूँ और कमला दी मुस्कुरा रही है
नमन #कमलाभसीन
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