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हिंदी दिवस पर अस्सी लेखकों की क्षति & Posts of 14 Sept 2021

 || हिंदी दिवस पर अस्सी लेखकों की क्षति ||

"बुद्धिजीवी है - अपने कुकृत्यों के लिए तर्क तो गढ़ ही लेगा"
◆राजेन्द्र यादव [ हंस के एक सम्पादकीय में ]
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मध्यप्रदेश शासन की साहित्य अकादमी ने आज प्रदेश के 80 साहित्यकारों की एक सूची जारी की है - जिनको 20 - 20 हजार रुपये मध्यप्रदेश शासन देगा ताकि वे अपनी कविता, कहानी या निबंध की पुस्तक छाप सके
यह एक पुरानी योजना है जिसके तहत लेखकों की पहली प्रति के लिए प्रोत्साहन स्वरूप यह राशि प्रदान की जाती थी , कमाल यह है कि इस सूची में 90% लोग ऐसे हैं जिनका नाम कभी नहीं सुना और 10% ऐसे हैं जो अपनी कई - कई किताबें छाप चुके हैं बाकायदा उनके नाम से किताबें छपी है, उनकी किताबों की समीक्षाएं छपी है और दो - चार लोगों की समीक्षाएं तो मैंने भी लिखी है, चार पांच तो रिटायर्ड है और पेंशन से लेकर दूसरे स्रोतों से रुपया उगाही में भी लगें हैं तन मन धन से, 70 वर्ष से ऊपर के बूढ़े लोग है उन्हें इस सबकी क्या ज़रूरत है और ये सब छप चुके है यहाँ - वहाँ
तीसरा इनमें से कई लोग प्रगतिशीलता का झंडा उठाकर दौड़ते थे, लाल गमछा बांधकर, अबीर - कबीर, रैदास और रसखान, अंबडेकर या ज्योतिबा से लेकर लेनिन और कार्ल मार्क्स तक की रहनुमाई करते थे - परंतु आज उन्हें इस सूची में देखकर बेहद शर्मिंदा महसूस कर रहा हूं , सत्ता के लिए इनकी प्रतिबद्धता देखकर सन्ताप ही किया जा सकता है - कुल मिलाकर ये वो है - "जिधर दिखी खीर - उधर रखी पीर "
हिंदी में इतना घृणास्पद है यह धंधा कि अब आगे से ऐसे लोगों से बात करने में भी मुझे शर्म महसूस होगी - अभी अपने दो मित्रों से बात की तो लगा कि हिंदी साहित्य का जितना पतन होना था - उससे ज्यादा हो चुका है और अब हिंदी के इन ढुलमूल लेखकों, कवियों, कहानीकारों, उपन्यासरों, आलोचकों, हिंदी के प्राध्यापकों तथा मास्टरों का कोई भरोसा नहीं है ; ये लोग इतने नीच, गलीज और रीढ़विहीन हो गए हैं कि बेशर्मी जैसे शब्द भी इनके आगे फीके है
सत्ता के गुलाम और किसी का भी थूका हुआ चाट कर पचा जाने वाले ये लोग बेहद घटिया है ; यहां पर यह साफ करना जरूरी है कि मैंने अपने - आपको साहित्य के अखाड़े से अलग कर लिया है और अब महज एक जागरूक पाठक या नागरिक के नाते स्वान्त सुखाय के लिए लिखता - पढ़ता हूं और इस तरह की प्रतियोगिताओं एवं प्रोत्साहन की योजनाओं से बिल्कुल दूर रहता हूं
आश्चर्य हो रहा है कि 80 लेखकों की किताबों के लिए बंटने वाले 80x20000 =16 लाख रुपयों से कितने प्रकाशकों के मुंह में पानी आ रहा होगा - इंदौर, भोपाल, दिल्ली, जयपुर, सीहोर, मेरठ, गाजियाबाद से लेकर मुंबई तक प्रकाशकों का संगठित एक जाल है - जो नए लेखकों को दस - पन्द्रह हजार रुपयों में फांस लेता है, इस बीस हजार में से भी दल्ले लेखक की पांच - सात हजार की बचत करवा देते है जो ठेके पर पुरस्कार दिलवाते है और ये सब इसी जुगाड़ में रहेंगे
पर्यावरण को क्षति करके लाखों पेड़ काटकर कचरा छाप देता है प्रकाशक, हम जानते है कि हर माह 100 शीर्षक छापने वाले प्रकाशक एक माह बाद ही इन कीमती किताबों को मात्र -"दस रुपये में या 5000 रुपयों में 500 किताबें" भी बेचते है और अपने गोडाउन की रद्दी निकालते है, पता नहीं हमारे साहित्यकारों को यह बात कब समझ में आएगी, पर जो भी हो रहा है या हुआ है - वह बहुत ही शर्मनाक है
मध्य प्रदेश शासन के साहित्य अकादमी का यह दुस्साहसिक या साहसिक कारनामा बहुत ही रोमांचक है - जिसमें संघ या भाजपा के प्रति निष्ठावान लोगों को 20 - 20 हजार देकर उपकृत किया है और हमारे हिंदी के गलीज़ लेखक अपनी रीढ़ बेचकर वहां तालियां पीटने और घंटी बजाने इकट्ठे हो गए
देवास में मुझे 55 वर्ष हो गए - एक ऐसी भी लेखिका का इस सूची में नाम है जिसे कोई नही जानता, पर हाँ दलाल जरूर है - जो ठेके पर सब काम करवाते है - बशर्ते आप उनके मठ के सदस्य हो और चाटुकारिता में कुशल हो
अफसोस, अफसोस, अफसोस !!!
[ यह है सूची 2018 एवं 2019 की
साहित्य अकादमी, मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद्
संस्कृति भवन, बाणगंगा चैराहा, भोपाल
वर्ष 2018 एवं 2019 के पाण्डुलिपि अनुदान की घोषणा
भोपाल। साहित्य अकादमी, मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद्, मध्यप्रदेश शासन संस्कृति विभाग, भोपाल द्वारा वर्ष 2018 एवं 2019 हेतु प्रदेश के लेखक की प्रथम कृति के प्रकाशनार्थ श्रेष्ठ पाण्डुलिपियों की घोषणा कर दी है। प्रति पाण्डुलिपि रुपये 20,000/- (रुपये बीस हजार) की सहायता अनुदान प्रतिवर्ष कुल 40 पाण्डुलिपियों को दिया जाता है। इस प्रकार दो वर्षों की कुल 80 श्रेष्ठ पाण्डुलिपियों का चयन किया गया है।
साहित्य अकादमी के निदेशक डाॅ. विकास दवे ने बताया कि वर्ष 2018 एवं 2019 हेतु प्रदेश के लेखक की प्रथम कृति प्रकाशन योजना के अंतर्गत रूपाली सक्सेना (भोपाल), दिनेश गुप्ता ‘मकरंद’ (भोपाल), राजेन्द्र गुप्ता (भोपाल), अशोक चन्द्र दुबे ‘अशोक’ (भोपाल), इंजी. जलज गुप्ता (भोपाल), सुरेन्द्र पाल सिंह कुशवाहा (ग्वालियर), मृगेन्द्र कुमार श्रीवास्तव (सिंहपुर-शहडोल), नीति श्रीवास्तव (भोपाल), अभिलाष ठाकुर (भोपाल), डाॅ. यास्मिन खान (भोपाल), रश्मि चैधरी (इंदौर), पदमा राजेन्द्र (इंदौर), देवेन्द्र सिंह सिसौदिया (इंदौर), अर्चना मण्डलोई (इंदौर), विन्द्रवन पटेल ‘बिन्दू’ (हटा-दमोह), घूमन प्रसाद कुशवाह (पथरिया-दमोह), शुभम गुणवंतराव देशमुख (आठनेर-बैतूल), दिनेश पाठक ‘श्रेयांश’ (इंदौर), डाॅ. प्रवीण जोशी (उज्जैन), चित्रांश खरे (भोपाल), डाॅ. वन्दना सेन (ग्वालियर), सुरेश हिन्दुस्थानी (ग्वालियर), मुकेश पाटीदार (इंदौर), पॅवार राजस्थानी (भोपाल), अदिति सिंह भदौरिया (इंदौर), अविनाश अग्निहोत्री (इंदौर), सुषमा दुबे (इंदौर), प्रवीण अत्रे (खरगोन), विजय सिंह चैहान (इंदौर), शक्ति सिंह परमार (इंदौर), श्वेता नागर (रतलाम), पुरू शर्मा (अशोकनगर), जितेन्द्र शिवहरे जुगनू (इंदौर), आशुतोष ‘ओज’ (शिवपुरी), देवेन्द्र जैन (राघौगढ़), डाॅ. साधना गंगराडे (भोपाल), पंकज प्रजापत (इंदौर), लकी पाटीदार (सीधी), डाॅ. देवेन्द्र तोमर (मुरैना), डाॅ. दीपेन्द्र शर्मा (धार), अखिलेश राव (इंदौर), वीणा गोयल (शुजालपुर), ग्रीष्मा शाह (शुजालपुर), डाॅ. देवेन्द्र पाठक (हरदा), सोनी सचदेव (इंदौर), सुमित दुुबे (नरसिंहपुर), नरेन्द्र मंडलोई ‘मांडलिक’ (धार), दिनेश पाठक (ग्वालियर), मनोज कुमार तिवारी (बड़ामलहरा-छतरपुर), डाॅ. शोभा जैन (इंदौर), रमेश प्रसाद शर्मा ‘स्वतंत्र’ (इंदौर), आरती दुबे (इंदौर), प्रद्युम्न मालपानी (इंदौर), गिरिराज पुरोहित (नलखेड़ा-आगर मालवा), डाॅ. रेखा मण्डलोई (इंदौर), दीपक शिरालकर (इंदौर), पंडित ललित कुमार त्रिवेदी (इंदौर), पंकज पाठक (भोपाल), विनीता मोटलानी (इंदौर), कल्पेश वाघ (खाचरौद), विश्वास वर्धन गुप्त (ग्वालियर), कृष्णमुरारी त्रिपाठी ‘अटल’ (सतना), कुमार चंदन (भोपाल), सुरभि नोगजा (देवास), नीता सक्सेना (भोपाल), गीतेश्वर बाबू (आष्टा-सीहोर), अमित खरे (सेवढ़ा-दतिया), डाॅ. बनिता वाजपेई (विदिशा), विनीता धाकड़ (रायसेन), कविता नागर (देवास), लालजी गौतम (रीवा), राकेश शेवानी (भोपाल), डाॅ. सुरेश पटेल (इंदौर), सुभाष जाटव (रायसेन), डाॅ. आशा कनेल (बैतूल), प्रेमानंद सरस्वती (इंदौर), गजेन्द्र आर्य (झाबुआ), बुधपाल सिंह ठाकुर ‘वनराज’ (बैतूल), विशाखा राजुरकर (भोपाल) और डाॅ. स्मिता रावत (अलिराजपुर) की पांडुलिपि प्रकाशन सहायता अनुदान के लिए स्वीकृत हुई हैं।
(डाॅ. विकास दवे)
निदेशक, साहित्य अकादमी,
म प्र शासन,भोपाल ]
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Akhilesh Tripathi ने आपत्ति दर्ज कराई कि "काँग्रेचुलेशन" के शुरुआती अक्षरों में कांग्रेस नजर आती है - अतः अब कृपया मोदिचुलेशन या भाजाचुलेशन या संघेचुलेशन ही लिखें, अन्यथा पाकिस्तान या चीन जायें
जय जय सियाराम
जय हिन्दू राष्ट्र
नए शब्द भी बनने चईये कि नई बनने चईये
😜😜😜
[ नोट - इन तीनों शब्दो पर कॉपी राइट मेरा है ]

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