न्यायपालिका का दिमाग़ और इनमें बैठे माननीय जजों को गाय, भैंस और लव जेहाद के अलावा कुछ दिखता हैं या नही, लोगों को जीना मुश्किल हो रहा है - अन्न के एक एक दाने के लिए लोग तरस रहें है और ये सफेद हाथी गाय, गौमूत्र, गोबर में ही उलझे है
इलाहाबाद हाईकोर्ट के विद्वान न्यायमूर्ति शेखर यादव की टिप्पणी और सुझाव विशुद्ध राजनीति से पीड़ित है ; या तो उन्होंने किसी राजनैतिक दबाव में बात कही है या फिर वो समाज की क्रूर सच्चाई, गरीबी, भुखमरी और रोज बढ़ती महंगाई से अनजान है और कोर्ट रूम और बंगले के अलावा उन्हें कुछ मालूम नही है या फिर रिटायर्डमेंट के बाद अपना जातिगत पैतृक व्यवसाय करने का इरादा रखते है
इन्हें जनहित की याचिकाओं को ख़ारिज करने में मजा आता है - जहाँ बेबस लोगों या पर्यावरण या जल - जंगल - जमीन या शिक्षा - स्वास्थ्य - रोज़गार की बात होती है, पर ऐसे राजनैतिक मुद्दों पर बात करने में बहुत मजा भी आता है और इनके पास समय भी है - इको सिस्टम में हर स्तर पर हर प्राणी का महत्व है यह बुनियादी समझ तो होगी ही यादव जी की, फिर एक मात्र प्राणी पर दया क्यों बजाय इसके वो कहते कि एक भी नवजात की या गर्भवती महिला की मृत्यु जिस भी जिले में होगी - वहाँ के कलेक्टर, विधायक और सांसद को आजीवन कारावास की सजा दी जाए या जहाँ कोई युवा बेरोजगार होगा या कोई किसान आत्महत्या करेगा - वहां के शासन प्रशासन को कड़ी से कड़ी सज़ा दी जाएगी
पर यह बोलने की हिम्मत इनकी हाई कोर्ट में बैठकर भी नही हो रही ना, और फिर गोगोई ने राज्यसभा का रास्ता दिखाकर इन सबको बावरा कर दिया है - लिहाज़ा सत्ता की भाषा बोलने में सिद्धहस्त हो गए है - एकदम निष्णात और पारंगत
बेहद दुखद
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इसका ब्याह होता और घर चलाना पड़ता तब समझ आती, जिंदगी भर दूसरों के घरों में झाँक - झाँककर खाया, बाद में मलाई लगी मशरूम की रोटी तो ये क्या जाने गैस और तेल नून का भाव, आग लगे ऐसी सरकार को - मरेगा तो तो कीड़े पड़ेंगे - कीड़े, घर में लड़के की नौकरी छूट गई क्या करूँ , कैसे खिलाऊँ ऊपर से ये निकम्मी सरकार रोज भाव बढ़ा रही है - अब तो जहर ही खाना पड़ेगा और कुछ बचा ही नही है
[ मुम्बई में एक काम वाली बाई की पीड़ा - आज पुनः गैस रीफिल के ₹ 25/- बढ़ गए, अब टँकी 990/- है ]
क्या यह सामूहिक पीड़ा है समाज की ?
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