जितना पढ़ते जाता हूँ यह विश्वास पुख़्ता होते जा रहा है कि लिखना व्यर्थ है एक तरह से और यह समझ बन रही है कि जो लगातार लिख रहे हैं कहानी, कविता यायावरी, लंबे उपन्यास, बकवास किस्म की आलोचनाएं या और भी कुछ अगड़म बगड़म सब उथला होने की निशानी है
और मुझ सहित सभी उथले लोगों पर अब सिर्फ दया ही आती है और अफ़सोस होता है कि हम इन सबका कुछ नही कर सकते, ये लोग अपनी क़िताबों, आलेख, कहानियों, कविताओं के प्रचार प्रसार में इस हद तक जा सकते है कि इंसानियत शर्मा जाये, चिरौरी कर लिखवा लेंगे और निजी अनुभव से कह रहा कि यदि किसी भी किताब, पोस्ट या घटिया चित्र पर हम जैसे लोग दो शब्द भी नही लिखेंगे - उनको ये श्मशान में जाकर जला आयेंगे, ये सुसंस्कृत लोग बहुत संगठित है और देशभर में इनके छर्रे और आका मौजूद है जो हर बात पर खी ख़ी करते है और दिन भर इसी में लगे रहते है
मालवा में कहते है - "पढ़यो पर गुणयो नी"
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अप्रैल में 54 का हो जाऊँगा - जीवन में आज तक सुभाषचन्द्र बोस के बारे में इतना प्रचार प्रसार कभी नही देखा, बोले तो पता ही नही था कि 23 जन को सुभाष बाबू का दिन है, अब समझा साला इसीलिये मैं आयएएस अफसर तो क्या ससुरा पटवारी या अतिथि शिक्षक भी नही बन पाया
जस्ट सोचिंग कि
बंगाल चुनाव है इसलिये
या
आधुनिक नेता जी आज कोलकाता गए है
या
वल्लभ भाई से जी उकता गया
तो अब कुछ "तूफ़ानी और हो जाये" की तर्ज़ पर बापड़े सुभाष बोस सामने पड़ गए
बख़्श दो रे, बख़्श दो बेचारों को- जिनके खून से देश आज़ाद हुआ उस देश को बेचकर - बर्बाद करके काहे नौटँकी कर रहें कम्बख्तों, पटेल, अंबेडकर, गांधी 150 से लेकर अब सुभाष बाबू - इनमें से किसी एक की धूल भी हो जाते तो सौ साल बाद गेंदे के फूल की कोई माला चढ़ा देता, पर इत्ती अक्ल कहाँ है - भड़ैती से फुर्सत मिलें राष्ट्र को तब ना, अभी भी टैंम है सुधर जाओ फर्जी राष्ट्रवादियों, कॉपी पेस्ट मारकर यहाँ चैंपने से महान बनोगे क्या, गज्जब का रायता फैला रहें हो यारां
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तुझसे पहले जो यहाँ तख़्तनशी था....
मुगालते तो रावण के भी दूर हुए थे और आज ट्रम्प जैसे नालायक को भी जाना ही पड़ा, आख़िर में कमबख्त को दो बार राजद्रोह का झटका झेलना पड़ा और अब किसी को मुंह दिखाने लायक नही रहा, अगर सड़क पर छोड़ दिया जाए तो जनता नंगा करके मारेगी और यह इसी लायक भी है हरामखोर
सबक क्या मिला - याद रखिये, यह इतिहास हमने सामने घटित होते देखा है कि कैसे एक पागल, सनकी, विक्षप्त, वहशी, अपढ़, गंवार, जिद्दी, अड़ियल, अहंकारी, बदतमीज, खर्चीला, आत्ममुग्ध, प्रचार प्रेमी और कारपोरेट के तानाशाह गुलाम को आख़िर में जिल्लत उठाकर विदा होना पड़ा और अंत में जनता ने सारे वाद और हिंसा को छोड़कर एक राष्ट्र प्रेमी और शांति के पुजारी ( भले ही दिखावटी हो ) महिलाओं के हितैषी को व्हाइट हाउस सौंपा और राक्षस से मुक्ति पाई
सुन रहें हो ना,
कहाँ हो तुम,
तुम्हारे लिए ................
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पिज्जा को दांत से चबाते हुए सोचा
कि दुनिया को पिज्जा की तरह
नरम और स्वादिष्ट होना चाहिए
- महामात्य उवाच
[ - केदार जी से माफी सहित ]
*** पित्ज़ा की जगह आप किसान भी कह सकते है
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