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26 जनवरी 1950 और 26 जनवरी 2021- Kisan Aandolan of 26 th Jan 2021

आज जनपथ पर उत्तर प्रदेश ने श्रीराम मंदिर की झाँकी निकाली जो कि एक पंथ निरपेक्ष राज्य में (संविधान के हिसाब से गलत होता) किसी ने पूछा कि "श्री राम देश के आदर्श है और श्री राम की झांकी भारत मे नही तो कहा दिखाई देगी", मैंने कहा खूब निकालो, सारे भक्तों की भी निकालो पर शासकीय रुपयों को खर्च करके नही और यह भी कि

सब धर्मों को मानने का हमने संविधान में संकल्प लिया है - इसलिये मरियम, ईसा, राम, कृष्ण, रावण, बाली, सुग्रीव, सारे ऋषिगण, ब्रह्मा - विष्णु - महेश, घासीदास, पैगम्बर, गुरुनानक से लेकर तेजाजी महाराज या गोगादेव सब आदर्श है, पर कल्याणकारी राज्य और पंथ निरपेक्षता इस सबसे बड़ी है क्योंकि देश "संविधान से चलता है किसी धर्म ग्रँथ से नही" - यह याद रखा जाना ज़रूरी है और यदि नही तो बन्द कीजिये लोकतंत्र का नाटक और गुंडागर्दी चुनावों के नाम पर तानाशाह घोषित कर सत्ता पर काबिज़ हो जाईये
समय संविधान की उद्देशयिका को लागू करने का है, समता, स्वतंत्रता और भ्रातृत्व जैसे मूल्यों को फैलाने का है और यह जान लीजिये कि झाँकी से दिक्कत नही - झाँकीबाजों से है जो देश की गंगा - जमनी तहज़ीब को बर्बाद कर देश को बेचना चाहते है बल्कि बेच चुके है और इन लोगों में राम का एक गुण हो तो बताओ - रावण भी इनसे ज्यादा गुणी था
और यह भी सुन लो कि उत्तर प्रदेश में ही श्रीराम से ज्यादा कृष्ण और अंबेडकर या मायावती के अनुयायी है, योगी खुद राम के नही - नाथ सम्प्रदाय के महंत है - जरा शोध कर लेना जिसको अक्ल नही है या ज्यादा ज्ञानी है और नाथ सम्प्रदाय का राम से क्या लेना देना है यह भी पढ़ समझ लेना फिर आना बहस करने, और राम राज्य की धूल भी देश या उत्तर प्रदेश को बना पायें तो धन्य समझूँगा, उन्होंने तो बंदरों और आदिवासियों के साथ लंबे समय तक संवेदनशीलता के साथ काम किया और तुम लोग इंसानों को भी नही निभा पा रहें हो क्या खाक रामराज्य लाओगे
श्रीराम भगवान को सत्ता में खींचकर सत्ता में बने रहने की कांग्रेसी राजनीति थी जिसे भाजपा ने भुनाकर सत्ता हासिल की वो भी रथ यात्रा से लेकर 1992 के दंगों से लेकर भिवंडी, मुज्जफरनगर, गुजरात नर संहार जैसे बड़े नर संहारों का सहारा लेकर बड़ा खेल खेला गया इसमें वामपंथी भी शामिल है और सपाई, बसपाई भी कुल मिलाकर श्रीराम का इस्तेमाल एक घटिया राजनीति थी जो अब खत्म हो गई है, अब संघियो और भाजपाइयों के पास दंगे, लव जेहाद, चुनाव और सत्ता के नाम पर लोगों को भड़काने के अलावा कुछ बचा नही है
एक बार मोहन भागवत या किसी संघी या नितिन गडकरी या राजनाथ सिंह या शिवराज सिंह चौहान जी से पूछ लेना - मोदी, शाह या योगी का स्कोर कार्ड - पूरी झाँकी निकाल कर बता देंगे
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दो माह से ज्यादा चले आंदोलन, हल ना निकाल पाना, किसानों के साथ मार पीट, रैली को षडयंत्र कर फेल करवाने की साज़िश और अब 1 फर को संसद का भी घेराव करने की बात आ रही है, किसान - आंदोलन जो भी हो, 138 करोड़ की चुनी हुई सरकार फेल हुई है
इस सबके लिए सिर्फ दो लोग जिम्मेदार है और नैतिकता का तकाज़ा तो यह है कि मोदी, अमित शाह और तोमर को आज के हंगामे और आंदोलन को बनाये रखने की साजिश की जिम्मेदारी लेते हुए तत्काल प्रभाव से इस्तीफ़ा देना चाहिए
पर हम जानते है कि ये पाँचवी कक्षा के चुनाव लड़ने में सामने आ जाएंगे इस्तीफा देना तो बहुत दूर की बात है, चिंता मत करिए इन्ही की पार्टी का कोई व्यक्ति जल्दी ही इनके सर हाथ रखेगा और सारा दर्प भस्म करेगा
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एक पंथ निरपेक्ष राष्ट्र में उत्तर प्रदेश ने गणतंत्र दिवस पर राम मंदिर की झाँकी निकाली और राष्ट्रपति सहित तमाम सरकार और दुनिया ताकती रही, जाहिर झाँकी बनाने का खर्च सरकारी कोष से गया होगा, पर किसी हरामखोर के कहने पर और किसान आंदोलन को बदनाम करने के लिए किसी ने खालसा पंथ का झंडा लाल किले पर लगा दिया तो लोग बवाल काट रहें हैं, राष्ट्रपति ने मन्दिर निर्माण में चंदा दिया किस हैसियत से व्यक्ति या पदेन राष्ट्रपति तो फिर कहाँ गया संविधान
गज्जब की दोगलाई फ़ैला रहे हो संतरों
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अब तो किसानों के साथ जनता को इस अराजक और तानाशाह सरकार अर्थात दो लोगों के ख़िलाफ़ सड़कों पर आना चाहिये जब तक ये महंगाई, कृषि बिल, रोजगार और जनहित के मुद्दों पर बात नही करते तब तक चुप नही बैठना चाहिये
बहुत सह लिया जनता ने, हर बार कंगाल ही किया है इन्होंने, नोटबन्दी, जीएसटी, दंगे, कोविड या लॉक डाउन और चंदे के नाम पर खुले आम लूट रहें हैं
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है
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लाल किले में पीला झंडा किसी शातिर और हरामी आदमी का प्रायोजित काम लग रहा है, सिखों को हमने दो माह देखा है और वे यह कृत्य बिल्कुल नही करेंगे - यह पूरे देश का विश्वास है - तिरंगे से बड़ा कोई झंडा नही है - ना हरा, ना पीला, ना लाल और ना भगवा, यह बात ध्यान रहें
आंदोलन में भाड़े के लोग आये या मंगवाए है यह पक्का है, सरकार असल में बिल वापिस नही लेना चाहती और जनता, किसान, जवान, महिलाएं, बुजुर्ग या बच्चे प्राथमिकता ही नही है - जो है वो बस अम्बानी और अडानी है
बाकी जो है - हइये है
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दिल्ली घिरी एक बार फिर, इस बार मुगल नही, अंग्रेज नही अपने ही लोगों ने अपनी चुनी हुई सरकार को घेरा है और यह अब अति हो गई है पर बेशर्मों को कोई फिक्र नही है - नख़रे पट्टे में व्यस्त है देश का प्रधान
इन्हे सरकार कहना भी बेमानी है, ये महज दो कार्पोरेट्स के कठपुतलियों के जिद्दीपन, अड़ियल रवैये, तानाशाही और दो गुज्जुओं की कहानी है - जो देश बर्बाद कर बैठे है और अब आज इन्हे समझ आएगा कि देश, गणतंत्र और लोग क्या होता है
यह विरोध, बगावत और प्रदर्शन समझ नही आया तो लानत है इन कुपढ़ अनपढ़ और फर्जी लोगों को अब जनता रास्ता दिखाएगी
सबसे ज़्यादा मुझे राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट नामक संविधानिक संस्थाओं से है - जो इस समय चुप है और अपनी अक्ल और समझ गिरवी रखकर बैठे है
अब भी मीडिया नही बोलता तो बॉय कॉट करो ऐसे भ्रष्ट और गोदी मीडिया का भी
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26 जनवरी 1950 और 26 जनवरी 2021
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एक चुनी हुई बहुमत वाली सरकार के ख़िलाफ़ आक्रोश है देशभर में, किसान रैली निकाल रहें है - झूठ, मक्कारी, दम्भ, भ्रष्टाचार, दो कार्पोरेट्स के दम पर सबका मुंह बन्द करने वाली और सबको लगातार बर्बाद करने वाली सरकार हमारे 71 वर्ष का कुल जमा हासिल है
क्या बधाई दूँ , फिर भी मंगल कामनाएँ गणतंत्र दिवस की उस गण को जो इस हठीली, जिद्दी और अड़ियल सरकार की छाती पर बैठकर आज अपनी बात मनवाने के लिए दो माह से लड़ भिड़ रहें है और लानत उन कम्बख्तों पर जो आज़ादी के वक्त पैदा हुए, जीवनभर हरामखोरी की नौकरियां की और आज पेंशन खाकर जिंदा है और इन्ही किसानों को कोस रहे है
लानत उन सबको जो इस बिकी हुई सरकार के संग खड़े है - मीडिया, व्यवस्था, ब्यूरोक्रेसी, साहित्यकार, पत्रकार, मध्यमवर्ग और वो सब जिसे वृहद रूप से भक्त कहते है
आज जो रोज़ रैली निकल रही है देशभर में जो विरोध हो रहा है वह लोकतंत्र की शवयात्रा है यह बताने को कि हम कहाँ आ गए है, अमेरिका जाने के ख्वाब तो सब देखते है पर वहाँ से सीखना कोई नही चाहता ऐसे तो दोगले है हम
बहरहाल, मुझे शर्म आयी है आज, आपको गणतंत्र मुबारक इस भेड़चाल का

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