" यार तुम आज टीवी में दिखे थे " - फोन किया लाइवा को मैंने
" हाँ, वो ड्रग ट्रायल में नाम दे दिया था, सोचा रहा बोरिक जॉनसन या बाइडन बुला लेगा तो कउता सुना सुनाकर जान दे दूँगा, पर कम्बख्तों ने सबको रख लिया मौत के आगोश में, सारे कवियों को भगा दिया कमीनो ने, लो बोलो मोदी तक ने नही बुलाया दिल्ली में ......" वो चुप ही नही हो रहा था
कोविड का वाईरस बीमार ही नही करता, कवियों को बर्बाद करता है
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● नत्थू लाल फोटो कॉपी सेंटर
● चंपालाल बीज भंडार
● मयंक बाबू दांत तोड़ू केंद्र
● हीरालाल प्रसुति गृह
● ग्यारसी बाई फैशन केंद्र
● रामलाल नमकीन भंडार
● श्याम लाल नारंगी वाला
● मोहन सेठ नारियल वाले
● चुन्नीलाल फोटोग्राफर
● मुन्नीबाई बुटीक केंद्र
● सतवीर सिंह खेती केंद्र
● मौसम्बी लाल विद्युत शवदाहगृह
● चिमनाबाई कवयित्री की याद
● राधाबाई महानतम कहानीकार
● घसीटेराम आलोचक
● कमलाकर की याद में अनूठा आयोजन
ये कुछ नाम है उनके - जिनके नाम से पेजेस बनें है और लाइक करने के निमंत्रण रोज आते हैं
अरे भाई, मुझे इस सब से क्या करना है - आप गोरखपुर से लेकर लेह - लद्दाख में और तवांग से लेकर सोमनाथ तक में धंधा - पानी चलाओ, पर मुझे क्यों परेशान कर रहे हो, आपकी मोदी से सांठ गांठ हो या ममता से, आप दलित हो या वामी - कामी मुझे क्या करना है आपकी विचारधारा से
ना मुझे लाइक करना है और ना कुछ खरीदना है, मेहरबानी करके अपने आकाओं, धंधा - पानी और पसंद - नापसंद के पेज के इनवाइट भेजना भेज बंद करिए
दूसरा आलतू - फालतू समूह बनाकर, कविता - कहानीकारो और कुत्ते बिल्ली के नाम पर निजी ग्रुप बनाकर जबरन सदस्य बनाना बंद करिए
मुझे नहीं जुड़ना इन सब से और ना आपके पेज लाइक करना है - साला, हर तीसरा नोटिफिकेशन इसी तरह की मूर्खता भरा होता है
और अब सब सामान्य हो गया है, कोरोना का टीका लगवा लें पागलपन खत्म होगा आपका, किसी मनोरोगी की भांति लाइव करना बंद कीजिए और यह भी पागलपन करना है तो करें - मेहरबानी करके मुझे बख़्श दीजिये, मुझे और भी गम है लाइव के सिवाय
होंगे आप गिरगिट, आयएएस, आयपीएस, एसडीएम, कथावाचक, मुल्ला - मौलाना, हलवाई, सफाई वाले, मास्टर, पोस्टमेन, आशाकार्यकर्ता, अधिकारी, प्रोफेसर, किसान, मजदूर, शोधार्थी , एक्टिविस्ट, लेखक, संपादक, पत्तलकार, मास्टर, कवि, उपन्यासकार या संगीतकार, कोई आलतू - फालतू नेता, किसी के पालतू टॉमी या टुच्चे आदमी - मेरे को आपके ना पेज रोटी देते है, ना समूह - इसलिए बन्द करिये और यह भी समझ लें कि आपके अपने नाम से बने पेज तो सबसे बेकार और आत्ममुग्धता के शिखर है उससे घटिया कुछ हो ही नही सकता इसलिये .... समझ रहें है ना
अगर आप फेसबुक पर नए हैं - तो समय रहते निकल लीजिये - अपना जीवन सँवार लें, हम तो नशे की लत में पड़कर बर्बाद हो ही गए है, और यदि पुराने हैं तो यह समझ लीजिए कि आपको अभी तक अक्ल नहीं आई है कि सोशल मीडिया का मतलब क्या है
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कल अजीब सपना देखा - एक गधे ने दो चाभियाँ निगल ली, और एक दरवाजें के बाहर खड़े हम ढेर लोग इकठ्ठे होकर चिंता करते रहें कि क्या करें, अनेक पशु चिकित्सकों को बुलाया, जानकारों को, बड़े बूढ़ों को पूछा, गूगल पर तलाशा, कई जतन किये, गधे को भी पुचकारा और समझाया, पर कोई हल नही निकला
किसी ने ताला तोड़ने की सलाह दी कि गधे के पेट से चाभी निकालना मुश्किल है पर ताला तोड़ना आसान, पर किसी ने कहा कि ताला तोड़ना ज़्यादा दुरूह है - बेहतर है गधे के पेट से वो दो चाभियाँ निकाल लें जिससे इस घर के बाहर वाला और अंदर वाला ताला खुलता है
पूरी रात इसी उहापोह में बीती - अजीब तरह का सपना था, दिमाग अभी भी जड़ है, शून्य है और विस्मित भी - मैं ताक रहा हूँ व्योम में
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घेट्टोदारों - हिम्मत है
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हम सब अपने लिए जीते है, जीना एक दुष्कर कार्य है जिसमें जोखिम, साहस और सबसे ज़्यादा प्रेम की आवश्यकता होती है, और इस सबके लिए हम हर तरह से तैयारी करते है पढ़ने - लिखने से लेकर नौकरी, सुख सुविधाएं जुटाना, शादी ब्याह करके अपना घर बसाना, समाज में जबरन स्थापित होना और पहचान के साथ अस्मिता की तलाश में लगातार "बाहर" देखना बजाय भीतर से परिपक्व हो जाने के और यह सब करते - करते कब हम हर बात पर गर्व करने लग जाते है, पता नही चलता
हमें समझ नही आता - पद , पैसा और प्रतिष्ठा का गुमान हो जाता है, अपने हर छोटे - बड़े संघर्ष का इतना यशगान करते है कि दूसरे सुन - सुनकर ही पक जाते है, आपके जो भी काम है वो आपके अपने लिए है फिर वो नौकरी हो, लेखन हो, सामाजिक नेटवर्किंग हो, यात्राएँ हो, नया सीखना हो या लोगों से रिश्ते रखना हो - यह सब आपकी निज ज़रूरत है और इसका प्रदर्शन कितना खतरनाक है यह समझने के लिए बहुत हिम्मत चाहिये - अपने आपको मारना पड़ता है और खुद को कोसना पड़ता है बारम्बार
जब सोचता हूँ ये जो भी है नौकरी वाले, पद वाले या सम्पत्ति वाले, लिखने - पढ़ने वाले, योजनाकार, नीति निर्माता, मास्टर, प्रोफेसर, डॉक्टर, वकील, टेक्नोक्रेट्स, ब्यूरोक्रेट्स या नाई, मेहतर, हलवाई, कूली या हम्माल - आखिर किस मनोरोग से पीड़ित है और सब कुछ विचारने के बाद समझ आता है कि ये जो भी लिखते पढ़ते है, कमाते धमाते है और झूठी अकड़ में रहते है - ये चोंचले किसके लिए करते है - खुद ही के लिए ना
"अरे सुधर जाओ" से बेहतर है कहना कि समझ जाओ - ये सब तुम्हारा अपना छल, बल और प्रपंच है - इसे अपने पास और अपने तक ही सीमित रखो, ना मुझे इसकी ज़रूरत है और ना तुम्हारे दिखावे, पद, धन, शादी ब्याह के भौंडे प्रदर्शन और घटिया किस्म के नितांत व्यक्तिगत संघर्ष - जो तुम्हारे निज फायदे के लिए है - फिर वो जाति पाँति के हो या ऊंच नीच के, बराबरी के या बैर भाव के - उससे किसी को फर्क नही पड़ता
हाँ फ़र्क जरूर पड़ता है - जब तुम इन भ्रमजालों के वशीभूत और भयानक बेबस होकर अपनी इन सभी बातों का, उलजुलूल हरकतों, अपनी दैहिक ज़रूरतों के संघर्षों को महान सिद्ध करना चाहते हो और खुद ही स्वयं को आत्म मुग्ध होकर इतिहास में अमर बना लेना चाहते हो
एक बार जरा अपने घेट्टो से तो निकलकर बताओ - हिम्मत हो तो
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मैं के रियाँ हूँ कि भाट्सअप, टेलीग्राम, ट्वीटर, मिसेंजर, टिंडर, आईएमओ या कही और भी (भोत सारी डेटिंग साइट्स के नाम नी लिख सकता यहाँ पे - जानम समझा करो) न्यू ईयर बिष करना हो, फूल पत्ती भेजना हो, सूरज - चंदा - नदी - पहाड़ या निर्मल वर्मा, प्रेमचंद, अच्चन - बच्चन की "कउता - कथा -उपन्यास - आलोचना - यायावरी वाले मर्दानगी के किस्से या और कुछ मसाला" भेजना है तो भेज दो, फिरी रात कूँ खम्बा खाली करने के टैंम पे पूरे मोबाइल की झाड़ू लगाऊंगा - भोत भर गया हेगा भिया और भैंजीहूण, ब्रो और हनी बनीज़, आन्ट्स एंड अंकल, सरस् एंड मैडमस, भैयाज़ एंड भाभीज़ - आप सबके ठेले हुए माल से
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