तुझसे पहले जो यहाँ तख़्तनशी था....
मुगालते तो रावण के भी दूर हुए थे और आज ट्रम्प जैसे नालायक को भी जाना ही पड़ा, आख़िर में कमबख्त को दो बार राजद्रोह का झटका झेलना पड़ा और अब किसी को मुंह दिखाने लायक नही रहा, अगर सड़क पर छोड़ दिया जाए तो जनता नंगा करके मारेगी और यह इसी लायक भी है हरामखोर
सबक क्या मिला - याद रखिये, यह इतिहास हमने सामने घटित होते देखा है कि कैसे एक पागल, सनकी, विक्षप्त, वहशी, अपढ़, गंवार, जिद्दी, अड़ियल, अहंकारी, बदतमीज, खर्चीला, आत्ममुग्ध, प्रचार प्रेमी और कारपोरेट के तानाशाह गुलाम को आख़िर में जिल्लत उठाकर विदा होना पड़ा और अंत में जनता ने सारे वाद और हिंसा को छोड़कर एक राष्ट्र प्रेमी और शांति के पुजारी ( भले ही दिखावटी हो ) महिलाओं के हितैषी को व्हाइट हाउस सौंपा और राक्षस से मुक्ति पाई
सुन रहें हो ना,
कहाँ हो तुम,
तुम्हारे लिए ................
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"एक पत्रिका पिलान कर रियाँ हूँ, दो तीन पुराने दोस्त हेंगे - जो फिलिमि दुनिया मे खपे ई नई, पर थोड़ा भोत लिख लेते है गूगल से कॉपी मार के अपनी भासा में, एक दो इहाँ वहाँ से हकाले हुए लोग हेंगे जिनकू चाकरी की भोत जरूरत है, दो तीन भाड़े के मास्टर - मास्टरनियाँ है जो दिहाड़ी पर बरसो से पढ़ा रहें है, एक दो खब्ती रिटायर्ड मास्टर है - जो निहायत ही निरापद है - कुछ भी बोलो आर्डर पर तुरन्त लिख देंगे, दो चार भयंकर किसिम के चित्रकार है - जिनकू कोई नी छापता - अब वे जो बना दें अरावना - डरावना और उसकूँ बकलोली से प्रमाणित कर दें कि ये मिसोपोटोमिया का है या बेबीलोन सभ्यता के माफ़िक या पौराणिक समय का है या भयंकर आधुनिक है - फ्रांस जर्मनी का - वो बी तैयार हेंगे"
चाय पीकर रुका और फिर बोला - "एक दो आंटियां हेंगी जो घर से और बाकी सबसे निवृत्त हो गई है और दो चार भासा जानती है और अनुवाद कर लेती है - बाकी हिंदी के कुछ रिटायर्ड लोग, कविता के बहाने पुरस्कार जुगाड़ने वाले कवि, ब्यूरोक्रेट्स के साले, जमाई और भाई भी है, बलात्कारी संगीतकारों की बेटियाँ - बहुएँ भी टीम में है इनके पैनल में नाम है और कुछ अन्य, आदि, अनादि लोग है साथ में तो पत्रिका निकल जायेगी झकास"
लाइवा कवि बड़े दिनों बाद आज घर आया था - तो योजना बता रहा था, साथ में दर्जनों अख़बार, सड़ी गली पत्रिकाएँ जिनका नाम भी नही सुना था, अपने साथ लाया था
"तो सम्पादक कौन होगा और रुपया कौन देगा इसका" - बड़ा चकित था मैं यह सब सुनकर
"कुछ लोगों को, कुछ बड़े समूहों को और कुछ एनजीओ को कीड़ा है अमर होने का, जब छपेगी, तो पत्रिका - वत्रिका तो ठीक है, इन सबकी रोजी रोटी भी तो चलेगी, पाँच साल बाद पद्मश्री लेनी है, और सम्पादक मैई रहूँगा नी तो कौन रहेगा " - लाइवा बोला
"मुझे छापोगे" - मेरा सवाल था
"बिल्कुल नई, तुम भेजते रहना, हम सुझाव देंगे और लटका कर रखेंगे फांसी के फंदे पर ईसा के माफ़िक और कार्यवाही कुछ भी नही करेंगे - ना जवाब देंगे, ना छापेंगे और ना बात करेंगे " बेशर्मी से हंसकर बोला
उसके चेहरे पर सम्पादकनुमा घृणित मुस्कान थी और आँखों में हजारों लेखकों के खून करने के वहशी इरादे तैर रहे थे, कह रहा था - "पत्रिकाएँ दोस्त - यारों के कूड़े को, चुके हुए साहित्यकारों के पाप एवं बूढ़ों के वमन और दस्त को छापने के लिये निकाली जाती है - साहित्य की सेवा के लिए नही"
मैं काँप रहा था और चुपचाप घर में लौट आया
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