बूमरेंग
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और हमें लग रहा था कि हम सिर्फ मुस्लिम को मारेंगे 47 के विभाजन में, भिवंडी में, मुज्जफरपुर में, गोधरा में, बाबरी मस्जिद ढहाने के बाद, और तमाम तरह के लिंचिंग करके , हम सिर्फ सिखों को मारेंगे 1984 मे
1947 के पहले से जो जहर हमने बोया था , जो जाति सम्प्रदाय के इंजेक्शन खून में लगा दिए थे आखिर उनका रंग रुप तो एक सीन सामने आना ही था - बहुसंख्यक भीड़ आवारा होती है जो ना साधु देखती है ना पहरेदार सुबोध सिंह - उसे अपनी खून की प्यास और वर्चस्व की भूख मिटाने को टारगेट चाहिये और हमने यह अच्छे से सीख लिया है कि कैसे संगठित होकर जन भावनाएं भड़काकर हत्याएं की जायें
पैटर्न देखिये और समझने की कोशिश करिये - कही भी कहा नही जाता कि जुलूस निकालो पर निकलते है, कोई नही कहता कि जय सियाराम के नारे लगाओ पर विक्षप्तों की तरह से अंधेरे में लोग चिल्लाते है, कोई नही कहता कि घर की अराजकों की तरह निकल पडों पर लोग चल देते है
हमने 73 सालों में सीखें अनुशासन, पक्का इरादा, दृढ़ संकल्प, गरिमा, दृष्टि सब खो दिया है, हमारा कोई चरित्र नही, हम सब दृष्ट दुराचारी, व्याभिचारी, निरंकुश और अराजक है - और इसके लिए ना संघ को दोष दीजिये ना भाजपा को, ना कांग्रेस या क्षेत्रीय दलों को - जब मायावती की रैली होती है तो ट्रेन ।के आप घुस नही सकते, कोलकाता में ममता की रैली में दुकान बंद करना ही बेहतर है, आरती और अजान के लिए भोंपूओं के खिलाफ आप ना बोलें तो ही बेहतर है
ये दो साधु रूपी विधायिका एवं कार्यपालिका और न्याय रूपी ड्राईवर की आजाद हिंदुस्तान की आवारा भीड़ द्वारा की गई हत्या है सामूहिक जानते बुझते हुए खुली आँखों से प्रायोजित हत्या और चौथा स्तम्भ वो कार है जो क्षतिग्रस्त है जिसमे से खींचकर भीड़ ने इन तीनों को निकाला है और गलती इन तीनों की भी है जो कड़े कानून और लागू नियम के बावजूद कार में लोकतंत्र के अंतिम संस्कार में हिस्सेदारी करने जा रहें थे
अभी भी हमें ना समझ आएगा ना हमारे नियंताओं को - एक दिन ये भीड़ दिल्ली और अपनी अपनी राजधानियों पर चढ़ाई करेंगी और कुचलकर रख देगी जैसे राजस्थान के हाई कोर्ट पर झंडा लहरा दिया था , या बसों और सार्वजनिक सम्पत्ति को पलभर में जलाकर राख कर देती है
पर शर्म मगर हमको आती नही है, मुस्लिम तो 25 -30 करोड़ है साला एक घँटे में निपटा देंगे पर ये जो 100 करोड़ हिन्दू सिख ईसाई और तमाम दलित आदि है इनका नम्बर नही आएगा क्या - आज दो वृद्ध पूजनीय साधु मरे है कल आपका भी नम्बर आएगा और दूसरा कोई नही आपका बेटा ही आपको भीड़ में ले जाकर आपका वध करेगा - इंतज़ार करिये - क्योकि आप कुछ बोलते नही उसे और प्रश्रय देते है
सबका टाईम आएगा - आज नही तो कल
[ बूमरेंग - गुलेल नुमा होता है जो खेलते समय फेंकने वाले की तरफ दोहरी गति से पलटकर आता है और भयानक रूप से चोट देता है ]
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