Skip to main content

Posts of 4,5 and 6 Nov 2019

Bring Back Pride to the Govt Hospitals
◆◆◆

इंदौर में एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी हैं जो बहुत संवेदनशील व्यक्ति हैं और बहुत अच्छे मित्र हैं
उनके बुजुर्ग पिताजी को कुछ तकलीफ थी वह इंदौर के एक निजी अस्पताल में ले गए क्योंकि इमरजेंसी थी - अस्पताल ने उनकी जांच की और फिर बताया कि एंजियोग्राफी करना होगी, एंजियोग्राफी के बाद उन्होंने बोला कि एंजियोप्लास्टी भी करना पड़ेगी, वह भी हो गई, बाद में अचानक पिताजी का पेट फूल गया, हारकर डाक्टर को बुलाया, वे बहुत परेशान रहे - ना गैस्ट्रो का डॉक्टर पलट कर आया, ना कार्डियोलॉजिस्ट पलट कर देखने आया, लिहाजा मित्र ने कल देर रात अपने पिताजी को बॉम्बे हॉस्पिटल में एडमिट करवाया

वहां जाकर जब सम्बंधित डॉक्टर्स ने जांचे देखी और एंजियोप्लास्टी की सीडी देखी तो समझ में आया कि वह जबरदस्ती कर दी गई है ,असली दिक्कत पथरी की थी - उसका इलाज नहीं किया गया, आखिर आज दोपहर दो बजे से पेट की जांच करके ऑपरेशन हुआ है, अब वे थोड़ी राहत महसूस कर रहे हैं, आज रात भर पिताजी को ऑब्जर्वेशन में रखा जाएगा
यह हाल है निजी अस्पतालों का, एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी के साथ इस तरह की घटना हो सकती है तो आप बताइए कि इंदौर शहर में जहां दूरदराज के ग्रामीण और आदिवासी इलाकों के लोग या कोई और भी लोग इलाज कराने आते हैं - उनसे ये डॉक्टर कितनी लूटपाट करते होंगे सोचिए
मित्र से अभी बात की तो उन्होंने अपना पक्ष रखा, मैं यह सारी कहानी सुनकर इतना क्षुब्ध हूँ कि समझ नहीं आ रहा क्या किया जाए - मतलब हद यह है कि इन डॉक्टरों ने एक बुजुर्ग व्यक्ति की भी परवाह नही की कि कितना कष्ट होगा शरीर को और उनका ऑपरेशन कर दिया , एंजियोप्लास्टी कर दी हृदय की , कितना बड़ा रिस्क लेकर - जबकि वहां पर ऑपरेशन की जरूरत बिल्कुल नहीं थी
क्या कोई मेडिकल प्रोटोकॉल है , क्या इसी के लिए सरकारी अस्पतालों को हम खराब करके आयुष्मान भारत के तहत पांच लाख खर्च करके निजी अस्पतालों को ठेके दे रहे हैं - क्या यही हाल हम स्वास्थ्य का करना चाहते हैं, बेहद शर्मनाक है और दुखद भी, आखिर पढ़े - लिखे, ज्ञानी, प्रशासनिक पदों पर बैठे हुए लोग और जानकार लोगों के साथ निजी अस्पताल और डॉक्टर इस तरह का भद्दा मजाक कर सकते हैं तो आम लोगों का क्या होता होगा
सन 1987 से मैं, अस्पताल, लेबोरेटरी और दवाओं के दुष्चक्र को बहुत बारीकी से देख रहा हूं - मेरे स्वर्गीय पिता को टीबी थी और डाक्टर लोग हार्ट का इलाज करते रहें, आखिर एक कम्पाउंडर ने कहा कि जरा बलगम दीजिये टेस्ट करते है - वो भला आदमी उन्हें इन्सुलिन लगाने आता था, उसने जाँच कर देवास के एक लोकप्रिय डाक्टर को रिपोर्ट दी - तब डाकसाब का धंधा समझ आया था, फिर हमने इंदौर क्लॉथ मार्केट अस्पताल की राह पकड़ी थी अफसोस होता है कि चिकित्सा पवित्र पेशे में यह लूटपाट का आलम है, क्या स्मार्ट सीटी है मतलब ग़ज़ब
लगता है अब एके 47 हाथ मे लेकर इलाज करवाने जाना चाहिए , यहां उन तमाम डॉक्टर्स, नर्सिंग होम के नाम लिखना चाहता हूँ पर कोई असर नही होगा क्योंकि इनके हाथ बड़े लंबे है
***
सोच लीजिये गुण्डा कौन है, अनुशासित कौन है - लोकतंत्र अब समझ आएगा इन्हें
नेता या पुलिस या वकील या न्यायपालिका या प्रशासन या समूचा तंत्र या जनता जो शोषित पीड़ित है
और इसके पीछे आप आगामी 15 से 17 नवम्बर की एक भयानक तैयारी के रूप में देख लीजिये - अदालत का फैसला आने के बाद जनता के पास कोई नही रहेगा
संयत रहें, धैर्य रखें और विवेक मत खोईयेगा क्योंकि हम जानते हैं कि "जब नाश मनुज पर छाता है - विवेक सबसे पहले मर जाता है"
यह पुलिस की बगावत नही, कम तनख्वाह और कमर तोड़ महंगाई के बीच शोषित वर्ग की बगावत है और आजाद भारत की सबसे बदरंग तस्वीर है
अच्छा लग रहा है कि सरकार के सबसे संगठित और बड़े वर्ग ने सुरक्षा के नाम पर सरकार और इस सरकार की नीतियों पर खुलकर बगावत की और मैदान में सामने आए है
यह झांकी है, अब इससे हौंसला मिलेगा - उन सबको जो सेवा के नाम पर संविदा, ठेके पर, आउट सोर्स के नाम पर, अनुशासन के नाम पर अब तक चुप और शोषित है, बहुत खुश हूं कि अभी सरकार को 6 माह भी पूरे नही हुए और हिन्दू राष्ट्र के मैदान कितने रोमांचक और उत्तेजनाओं से भरे हुए है
आज कानून, पुलिस और प्रशासन की धज्जियाँ उड़ गई है - विश्वास रखिये थैयमान चौक सिर्फ चीन में नही होते, रूसी क्रांति या फ्रांस क्रांति वही घटित नही होती - हम भी इंसान ही है और दर्द हमें भी होता है
आओ मिलकर देखें इस क्रांति को और अब युवाओं का इंतज़ार करें , छोटे दुकानदारों का इंतजार करें, महिलाओं, युवतियों का इंतज़ार करें, शिक्षक, मजदूर, कामगार, डॉक्टर्स , इंजीनियर्स का इंतजार करें
याद करें साहिर को जो कहते थे
●●●
जब धरती करवट बदलेगी जब कैदी कैद से छूटेंगे
जब पाप घरौंदे फ़ूटेंगे जब जुल्म के बंधन टूटेंगे

संसार के सारे मेहनतकश खेतों से, मिलो से निकलेंगे
बेघर, बेदर, बेबस इंसा तारीख बिलों से निकलेंगे

जब एक अनोखी दुनिया की बुनियाद उठाई जाएगी
वह सुबह कभी तो आएगी, वह सुबह हमी से आएगी

नीचे के ये दो पत्र पढ़ लीजिये आपको समझ आ जायेगा कि मुआमला गम्भीर है
Image may contain: text

No photo description available.
***
विश्वरंग मंच को कोसना बेकार है , हिंदी के तमाम जलेस, प्रलेस और जसम के वरिष्ठ, गरिष्ठ, मध्य आयु वर्ग के और ग्राइप वाटर पीने वाले युवा, दूध टूटे दाँतों के चुके और बिके हुए लेखक जिसमे कवि, कहानीकार, उपन्यासकार ₹ 500 के पुरस्कार के लिए धोती, फैब इंडिया का झब्बा या बरमुड़ा पहनकर कही भी जाने को तैयार है
क्या बात है कि जिन्होंने पिछले 10 - 15 वर्षों में कुछ नही किया वे पुरस्कारों की भीड़ में बटुक बनकर भिक्षानदेही कर रहें है, दलितों के नाम पर पैरवी करने वाले तमाम लेखक संगठनों में पांव लटकाए बैठे है और पद नही छूट रहें इन मानवीय सरोकारों के चितेरों से और कोई भी बुला लें - हर जगह चले जाते है ट्रेन में, बस में , टेम्पो में अपने एक दो हनुमान टाँगे हुए बगल में
बुड्ढे इसलिए कि मरने के पहले बटोर लें - जो भी मिलें चाहे - कोई श्राद्ध के रूप में भी दे दें माँ - बाप के नाम, युवा इसलिये कि कोई अपनी बिच , डॉग या हैंम के नाम दे दें - कुछ नही तो दारू पानी का खर्च निकलेगा, गाइड के घर की सब्जी भी भिजवाना होती ही है आखिर और मध्य आयु वर्ग के इसलिए कि परिवार के गुजर बसर के लिए नौकरी से मिला पर्याप्त नही होता और फिर भ्रष्टाचार करके सौ - पांच सौ की आदत लग गई है जो हजारों लाखों की डील तक ले जाती है - साहित्य में भी तो यही है कुछ अलग नही
और आत्म मुग्धता तो पूछो ही मत, जो लोग अपुन को फेसबुकिया बोलते थे, अब अपनी औकात पर आ गए है और 24 x 7 यहां उपस्थित है अपनी लिखी पढ़ी हर बात को और तर्क कुतर्क को पेलते रहते है, तमन्ना यह भी है "काश मैं मेरे ही मरने के बाद अपने उठावने के लाईक और कमेंट्स देख पाता कि आत्मा तृप्त हो जाती और अगले जन्म मार्क जुकरबर्ग के घर ही पैदा करते प्रभु"
ख़ैर, भूकम्प अभी आया नही - आएगा
***
दो काम करो
◆ किसी की किसी भी पोस्ट पर लाईक कमेंट मत करो, कम से कम 3 माह तक
या
◆ किसी की वाल पर जाओ और तीन से चार मिनिट्स में दो तीन महीने में लिखी सारी पोस्ट लाइक कर दो - डेढ़ दो सौ तो होंगी ही
बन्दा, बंदी परेशान हो जाएगा नोटिफिकेशन देखते देखते, खासकरके हिंदी की कवि ( महिला पुरुष दोनों ) जिन्हें अक्सर डर रहता है कि कोई आड़ा - टेढ़ा कमेंट ना कर दें
बस बहुत शांति होगी आपकी वाल पर
***

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी व...