मनावर - जिला धार, का वो घर जहां पिताजी 1975 से 1985 तक रहें , हम लोग दीवाली और गर्मियों की छुट्टी में यही रहते थे, आज यह घर देखा - बहुत उदास था और जेहन में तस्वीरे बनती बिगड़ती रही मेरे - 45 साल अतीत में लौटना कितना कष्टप्रद होता हो खासकरके तब जब आपके पास स्मृति दोष ना हो और सब कुछ स्वच्छ और निर्मल हो - एकदम ताज़ा और निश्छल मन के साथ
कितना कुछ याद आया और मेला ग्राउण्ड गया तो मेला, पुष्पा टूरिंग टाकीज , हरिजन मुहल्ले का वो पानी का कुआँ जहाँ का पानी पीकर हम बड़े हुए, स्टेट बैंक की बिल्डिंग जो मेरे सामने सम्भवतः 1977 में बनी थी जब संजय गांधी की हवाई दुर्घटना में मृत्यु हुई थी 1980 में तब यही था और उसके ठीक दस दिन पहले इंदिरा गांधी यहां सम्बोधित कर गई थी
यहां आकर बहुत अच्छा भी लगा और दुखी भी हुआ, पिता का अक्स लगातार आंखों से गुजरता रहा और वे बार बार आकर पूछते रहें मेरे बारे में और घर परिवार के बारे में, पिता का घर एक सिर्फ यूँ तो सरकारी आवास था तत्कालीन बीडीओ का , पर हमारा बचपन, हठ, जिद, सपने और वात्सल्य यहां दर्ज था
देर तक खड़ा रहा और जब किसी बच्चे ने यूँ रोते देख पूछा कि क्या हुआ अंकल तो आंसू पोछकर लौट आया , अब यह लिख रहा हूँ तो मोबाइल स्क्रीन भीग रही है बारम्बार और मैं सामान्य नही हो पा रहा हूँ
पिता की स्मृतियाँ यहां होना एक संयोग है और मैं बार बार आता रहूँगा कि ये आँसू जार जार बहें और मेरे अंदर से पिता गुजरते रहें और टटोलकर मुझे ठोंक बजाकर ठीक करते रहें उम्र के हर मोड़ और निर्णय पर
Comments