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मार्च तपकर सुर्खरू होने का महीना 24 Feb 2019

 मार्च तपकर सुर्खरू होने का महीना 

नया साल शुरू हो चुके हैं दो माह बीत गए हैं , नए साल का उत्साह समाप्त नहीं हुआ है परंतु धीरे-धीरे क्षीण पढ़ते जा रहा है, मार्च की शुरुवात में ही एक लंबी यात्रा पर निकलता हूं तो देखता हूं - वसंत ऋतु खत्म हो रही है और पतझड़ की शुरुआत हो चुकी है, कोलतार की लंबी सड़कों पर चलते हुए जब गांव की पगडंडी पर आहिस्ता आहिस्ता पैर जमाते हुए अपने लक्ष्य की ओर बढ़ती दूरी तय करता हूं तो आंखों के सामने अंधड भर आते हैं इस अंधड़ में धूल है,  पत्तियां और बहुत छोटे-छोटे कंकड़ - पत्थर हैं जिन्हें हवा ने जमीन से उछालकर अपने साथ मिला लिया है और गोल गोल घुमाकर ऊपर ले आई है, घबरा कर अपनी आंखें बंद करता हूं और सिर पर एक गमछा डाल कर आगे बढ़ता हूं 

हवा अपनी मदमस्त मदहोशी में बढ़ते जा रही है , वह दोपहर होते-होते शीतल से तेज आंच में बदल जाती है और काटने को दौड़ती है , लगता है कि सूरज ने अपनी समस्त रश्मि किरणों को इसके हवाले कर सुस्ताने चल पड़ा है,  मेरे पास रखा पीने का पानी खत्म हो गया है और कोलतार की सड़क पर मृगतृष्णा के दृश्य दिखाई पड़ने लगते हैं, यह मार्च है - मार्च , जिसका अर्थ है वसंत का खात्मा और पतझड़ की शुरुआत ताकि नया कुछ हो सके, सब कुछ क्षरित होकर ही नया कुछ उगने की संभावना बनी रहती है और जब तक सब कुछ खत्म नहीं होगा तब तक नया सृजित करना बहुत मुश्किल होगा - यह संदेश है बार-बार ना जाने क्यों मन में गूंजता है  

एक आवाज आती है कि शीत ऋतु के बाद ऋतुराज वसंत आया और वसंत के बाद यह पतझड़ जो मन को कहीं उदास करता है परंतु सामने देखता हूं पहाड़ियों की एक लंबी कतार है  सड़क के दोनों और पगडंडियों के किनारे दूर तक फैले हुए जंगल हैं जहाँ पलाश के पेड़ दूर-दूर तक नजर आते हैं, कहीं बीच में दूर तक जा फैले गुलमोहर भी नजर आ जाते है,  दोपहरी में गेहूं काटकर कड़ी धूप में एक आदिवासी परिवार है जो किसी हरे गुलमोहर की छाँह तले कपड़े की गठरी खोल कर सूखी रोटियां निकाल रहा है लहसुन और लाल मिर्च की चटनी के साथ हुए खाना खाता है , पास रखी पानी की मटकी से अपनी प्यास बुझा कर आसमान ताकता है और एक झपकी में खो जाता है

दूर कहीं गुलमोहर की डगालियों में लाल फूल की कलियां खिलने लगी है , टेसू के पेड़ों पर पीले और सुर्ख चटख लाल फूल निकलने लगे हैं जंगल में चारों ओर सांय सांय करती हवा बौराई सी फिरने लगी है, एक आवाज गूंज रही है पहाड़ों के पार से - जब सूरज डूबता है तो फाग की थाप सुनाई देती है, दूर कहीं झोपड़ियों में मांदल और ढोल के स्वरों में गीत -  संगीत के आप्त स्वर सुनाई देते है , जवान धड़कनों से धरती की छाती पर झूमते हुए कदमों से नृत्य की अनुशासित झनकार सुनाई दे रही हैं और युवा मन धड़क रहा है - यही मौसम है जब वह अपने मनपसंद मीत को चुनकर जीवन साथी बना लेगा, उनकी आंखों में शरारत है , मस्ती है , प्रेम है और आशाओं का लहलहाता समुद्र है जो उन्हें दूर तक ले जाएगा और यही फाग,यही गुलमोहर और टेसू के सुर्ख रंग प्रेम की तरह से उनके जीवन में अमिट बने रहेंगे 

यह समय है जब हम अपने आप को तैयार कर रहे हैं कि आने वाले समय में सूरज अपने रथ पर सवार होकर और ताप देगा इतना कि धरती के अंतस से पानी की आखिरी बूंद भी चोर लेगा और ये सारी बूंदें आसमान में जमा होती जाएंगी और एक दिन खूब जमकर बरसेगी - सूखी और तिराड़ पाड़ती हुई धरती पर , तब वसुंधरा ज्यादा सुखी होगी 

मार्च माह का नाम रोमन देवता के नाम है 'मार्स' के नाम पर मार्च महीने का नाम रखा गया है, रोमन वर्ष का प्रारंभ इसी महीने से होता था, यहां पर जाड़े के बाद शत्रुओं के आक्रमण की शुरुआत होने की वजह से भी ये नाम रखा गया

मार्च माह सिर्फ वसंत और पतझड़ के बीच का संगम बिंदु ही नहीं बल्कि व्यवहार में वित्तीय वर्ष का अंत भी है और इसके बाद हम अपने  बीते हुए सारे लेन देन को खत्म कर आने वाले माह से नए लेनदेन की शुरुआत करते हैं नए खाते बही खोले जाते हैं और इसी के साथ जीवन की परीक्षाओं का भी अंतिम यही होता है जिनमें सफल और असफल होकर हम आने वाले कल के लिए अपनी मंजिलें तय करते हैं , मार्च माह सिर्फ फाग में मस्ती करने और लेनदेन को समाप्त करने का नहीं है बल्कि अपने अंतर में रंग बिरंगे रंगो में डूब कर प्रकृति की व्यवस्था को एकसार करने का भी है ताकि हम सिर्फ एक रंग में ना रंग कर विविध पूर्ण तरीके से जीवन में जो आ रहा है जो आस पास उपलब्ध है और जो हमें संपूर्णता में दिखाई देता है - उस सब में घुल मिलकर एक हो जाए और एकात्म भाव से इन्हीं रंगो को अपने जीवन में घोलें और अपने आसपास के लोगों को भी रंगों में सरोबार कर सबको माफ करते हुए नए की शुरुआत करें -  यही नयापन , ये ही रंग जब मैल उतारकर ले जाते है तो हमें साफ धुलकर नए हो जाते है, मार्च में जब हम सुबह उठे तो जीवन को परिपक्व बना सके और भीषण गर्मी में भी गुलमोहर टेसू के फूलों की तरह महक कर सबको सुख दे सके जितना तपेंगे धूप में उतने ही सुर्खरू होंगें लेंगे
Image may contain: Sandip Naik, smiling, text

नई दुनिया 3 मार्च 2019 

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