किसी को फेसबुक में जोड़िए तो ;-----
# आपको बिना बताए ग्रुप में जोड़ लेगा
# अपना पेज लाइक करने को बुला लेगा
# टैग करना शुरू कर देगा
# इनबॉक्स में आकर धे वीडियो पेलेगा
# पोस्ट पर कमेंट लाइक करने के लिए आग्रह करेगा
# अपनी किताब खरीदने के अमेज़ॉन लिंक देने लगेगा
# रहेगा साला झुमरी तलैया में और इवेंट में बुलायेगा न्यूयार्क के
# अपनी दुकान से लेकर बीबी बच्चो को लाइक करने का आग्रह करेगा
# अपनी शादी, बर्बादी के जश्नों, वर्षगाँठों में आपकी टिप्पणी की मांग करेगा
किसी को मोबाइल नम्बर दिया तो ;----
# वाट्स एप पर सुबह शाम गुड़ मॉर्निंग से लेकर तमाम रँग बिरंगे ज्ञान के कॉपी पेस्ट मेसेज शुरू कर देगा
# सदियों पुराने सन्देश, खबरें और चित्र भेजेगा
# तमाम तरह के वीडियो भेजेगा जो प्रकृति में अनूठे है भले खुद ना देखें हो पर आपको ठेल देगा
# साहित्य, संस्कृति, धर्म कर्म से लेकर पोर्नोग्राफी वाले समूह में जोड़ कर आपके जीवन का सत्यानाश कर देगा
# वीडियो कॉल करके भी आपकी नींद गाहे बगाहे हराम करेगा
# घटिया कविताएं प्रेमचन्द से लेकर गुलजार और बच्चन तक की पिलाता रहेगा
# टट्टी दस्त से लेकर एड्स कैन्सर की दवाएं आपको परोसता रहेगा
# समूहों में फुर्सत में बैठे बुड्ढे ठुड्ढे , महिलाएं दिन भर जुगाली करती रहेंगी कविता कहानी और फिल्मों से लेकर पापड़ बड़ी अचार तक
साला क्या नौटन्की है - आदमी करें तो क्या करें
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बात गौर करने लायक है कि प्रणव मुखर्जी संघियों को दीक्षांत समारोह में बौद्धिक देंगे
मोहन भागवत जी विद्वान है और मौका नही चूकेंगे, देश और जमीनी हालत से संघ ज़्यादा वाकिफ है बजाय भक्तों के
राज काज में अपनों को भी कई बार निपटाना ही पड़ता है और फिर हम तो है ही महाभारत रामायण जैसे छलकपट से राज्य हथियाने की सीख देने वाले महान राष्ट्र
संघ भी मोदी से पीछा छुड़वा लेगा, अमित शाह से भी और बाकी सारे काले कारनामों से
संविधान में कही लिखा नही कि पूर्व राष्ट्रपति प्रधान सेवक नही बन सकता और फिर इस बहाने बंगाल भी सधेगा बहुत इच्छा है कि लाल हटाकर केसरिया भगवा रंग कोलकाता पर हो
इस बहाने नार्थ ईस्ट, रोहिंग्या मुसलमान और बंगलादेशी शरणार्थी भी निपटाए जा सकेंगे
प्रणब दा की भी हसरत पूरी हो जाएगी जो मनमोहन के अनायास बीच मे आने से रह गई थी
बस आडवाणी जी का खून और खत्म होगा, मोदी जी तो चल ही देंगे झोला उठाकर चाय और पकौड़ा बेचने और अमित शाह के लिए दीपक मिश्रा के रिटायर्ड मेन्ट के बाद कही रिसोर्ट बन ही रहा है
संघम शरणम गच्छामि
[ मैं भी अच्छा बौद्धिक देता हूँ भागवत जी एक नजर इधर भी मार लीजिये बन्दा सूचना प्रसारण मंत्री तो बन ही सकता है , मानव संसाधन मंत्री भी बन सकता हूँ क्योकि सशिम में आचार्य रहा हूँ 3 साल और विद्या भारती , देवपुत्र में बहुत काम किया था कसम से ]
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आज भीड़ भरे बाजार में बैंगन, सड़े आलू , सूखी भिंडी और खूब मोटी लौकी जैसी सब्जियों के लिए जितने रुपये देकर आया और सब्जी वालों की घटिया बदतमीजी और तुनकमिजाजी सहकर आया हूँ - वह बहुत ही दुखद था
घर आकर झोला पलटा और बटुए का हिसाब किया तो लगा कि यदि यही हाल बारहों मास बना रहे तो ऐसी हड़ताल की जरूरत पड़ेगी - इतना खर्च करके भी किसान को वास्तव में मिल जाएं तो हड़ताल की जरूरत ही नही पड़ेगी और इन सब्जी वाले दल्लों को भी ठीक करने की जरूरत है बल्कि ठोकने की जो ग्राहक और किसान के बीच इतना मार्जिन रख लेते है कि समझ नही आता कि इनका गणित क्या है
ख़ैर , क्यों आखिर - देख रहा हूँ पूरा देश हड़ताल पर है बैंक से लेकर शिक्षक, स्वास्थ्य कर्मी और अब किसान भी
करो भाई , करो - सबका संविधानिक हक है पर जो मांगें है सबकी वो अगर कोई भी सरकार पूरी करने लग जायेगी तो दुनिया के खजाने कम पड़ जाएंगे
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सही समय है जब अमित शाह और योगी से इस्तीफा ले लिया जाए
मोहन भागवत जी समझ रहे है आप, 2022 के सपनों और 2024 में संघ के सौ बरस पूरे होने का जश्न नही मनेगा और हिन्दू राष्ट्र भी घोषित नही होगा
2019 के लिए मोदी के बदले सुषमा जी को प्लांट करिये अन्यथा कुछ नही हाथ आएगा
अपनी आई टी सेल को बोलो पप्पू से लेकर मायावती तक का मजाक उड़ाना बन्द करें, सीबीआई नामक तोते को फ्री हेंड दें वरना लालू के सफलता के रथ को पकड़ना मुश्किल होगा क्योकि अब उसके बेटे भी राजनीति में पारंगत है नीतीश चचा को आज धूल चटा दी है और नीतीश जैसे आस्तीन के सांपों से दूर रहें भाजपा
यदि ये सब अभी नही किया तो 5 माह बाद मप्र, राज और छग में घण्टी बजाना पडेगी और चायवाला फकीर आप सबको पकौड़े की दुकान के लिए कंगाल हो चुके बैंकों से ऋण भी नही दिलवा पायेगा
परिणाम सामने है, कुतर्कों का कोई अर्थ नही है अब और बकर के माहिर लोगों से हुज्जत नही करता मैं
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हम लज्जित है - मगर पराजित नही
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नैतिक कौन है - जो बात नैतिकता की करें और जीवन के काम अनैतिकता से करें चाहे बात आजीविका की हो या जीवन यापन की या कर्म वाचा या लेखन की
आजकल समाज से लेकर आर्थिक और राजनीति में नैतिकता के मायने ही बदल गए है अपने को जिंदा रखने की खातिर, अपना ही यश , गुणगान और कीर्ति पताकाएं चहूँ ओर पहुंचाने की खातिर बड़े बड़े नैतिकता के ढोल लेकर लोग पीट रहे है
हर कही से, किसी भी तरह से कुछ भी आ जाये बस ताकि मैं बना रहूं और अजर अमर रहूं यह बात सिद्ध ही नही करनी बल्कि इसके लिए तमाम अनैतिक हथकंडे अपनाना है और भले ही फिर झूठ, फरेब या छल का सहारा लिया जाये
पत्रकारिता, समाज सेवा, संस्कृति और साहित्य में ऐसे बहुतेरे मिल जाएंगे जो नैतिक दिखने और बनने के लिए तमाम तरह की अघोरी संकल्पनाओं को अपनाकर दुनिया भर के खट करम करके नैतिक होने के भरम भी पाल लेते है और समाज मे बन भी जाते है पर एक दिन ऐसी हवा निकलती है कि अपयश को भी शर्म आती है और वह इन्हें दुलत्ती मारकर निकल जाता है
जब इंसान मूल्य खो दें और सारी शर्मो हया छोड़कर नीचता पर उतर आता है तो फिर कुछ कहना मुश्किल हो जाता है और अंत मे सिर्फ यही बचता है कि उघाड़ने की प्रक्रिया आरम्भ की जाए ताकि समाज मे नसीहत देने को उदाहरण बने रहें
आज के हालात में ये दिक्कत शिक्षितों और अनुभवी लोगों के साथ ज़्यादा है जिन्होंने सब छोड़कर , ईमान और लाज गिरवी रखकर अपने को स्थापित करने के लिए ये धत करम किये है ; राजनीति, उद्योग में यह स्पष्ट रूप से दिखता है - समाज , संस्कृति, संगीत या साहित्य में देखने के लिए आपको उस गहराई तक उतरना होगा - जितने अंधे कुएं में ये उतर गए है या यूं कहूँ कि उस पतन बिंदु पर जाना होगा जहां तक इनके क्षुद्र स्वार्थ धँसे हुए है
बहरहाल , नैतिकता के मायने अब अलग है - सारे पाप, झूठ , व्याभिचार और अपना मूल काम ना करके भी आप श्रेष्ठ बनें रहना चाहते है और इसी गन्द और गोबर में लिपटे हुए सदाचार के ताबीज बेचकर सारे पुरस्कार हासिल करना चाहते है - तो बनें रहिये इस पायदान , पर मुक्तिबोध को याद करते हुए हम तो दुनिया को बेहतर बनाने के लिए मेहतर बनने को तैयार है और तुम्हारे सारे अपयश और पाप के किस्से फैलाकर समाज मे ज्योत जलाते रहेंगे - क्योकि हमने ना चापलूसी सीखी, ना व्यसन है और ना अजर अमर होने की भूख , और ना हरि नाम को भजने के लिए भौंथरे हथियार रखे है , अंदर से काले और ऊपर से धवल नही और ना ही नवनीत जो पिघलते रहे माया महाठगिनियों को देखकर ही
अफसोस यह होता है कि इन नैतिकता वादी आतताईयों के बीच जीवन का लंबा सफर निकल गया जो गरीबी, मुफलिसी, अज्ञानता और श्रेष्ठता का बोध छाती पर बाँधे बींधते रहें , कीलें ठोकते रहें और पीढियां गुजर गई पता नही चला और जब तक पता चला तब गाना पड़ा प्रभुजी राखो म्हारी लाज, क्योकि इन्हें तो शर्म नही थी देश, समाज और अर्थ की हालत रसातल में थी और ये नरपुंग ढीटता से अपने जहर भरे पाँव जमा चुके थे, फिर भी बकौल दुष्यंत - "हम लज्जित है मगर पराजित नही" मैं एक नही दसियों सांपनाथों और नागनाथों को जानता हूँ जिन्हें दूध पिलाने से उनका जहर ही बढ़ा है और अब समय आ गया है कि वक्त वक्त पर इन्हें इनके असली विराट स्वरूप में लाया जाये इसलिए कि समाज, राजनीति, संस्कृति, संगीत और साहित्य की दुनिया वाकिफ तो हो इनके आचरण, दुराचार और हवस की प्रवृत्ति से
फिर भी जय हो, जय हो, जय हो नैतिकता और शुचितावादियों की
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