इक चाँद ही है जो भीगी सुबह ले आता है - ईद मुबारक
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इक चाँद आसमान में आने से क्या क्या हो जाता है - करवा चौथ का व्रत टूटता है , महीने भर भूखे रहकर कड़ी धूप में पसीना झेलते रोज़ों की समाप्ति हो जाती है, एक पाक माह में सबके लिए दुआएँ मांगने का सिलसिला यकायक थम जाता है, इस खूबसूरत चाँद को देखकर दिल दुआएँ देने से रुकता नही मानो पूरी कायनात आज चाँद को देखते हुए थम जाएगी और निहारती रहेगी उसकी पाकीज़गी और खूबसूरती को
प्रार्थनाएँ , दुआएँ , प्यार - मुहब्बत की बरसात तो बारहों मास - चौबीसों घंटे होती रहती है, इस प्रकृति में नेक नियत और अमन पसंद लोग ज्यादा है तभी यह धरती सदियों से यूँही है और इस पर बसे फरिश्तों और उनके ईमान और पाकीजगी के कारण ही सूरज और चाँद के साथ अरबों - खरबों सितारें इसे रोशन करते रहते है क्योकि पूरी आकाश गंगा में एक ही जगह है जहां हम रहते है जो भावनाएं समझते भी है और व्यक्त भी करते है
होली दीवाली हो, वाहे गुरु का जन्मदिन, रणजीतसिंह की शहादत हो या दशहरे की खुशियाँ, ईद हो या जीसस का जन्मदिन, पवित्र आग के अग्यारी घर का त्योहार हो या रामदेव ओटले वालों जी का जन्मदिन , गोगादेव की जयंती हो या बिरसा मुंडा का जन्मदिन, राम नवमी सा पवित्र दिन हो या मिलादुन्नबी , गुड फ्राइडे हो या फिर बुद्ध पूर्णिमा , महावीर का जन्मदिन हो या हमारे रग रग में बसे 15 अगस्त या 26 जनवरी - हमें सब प्यारे है और हमें चाहिए भी
इसलिए नही कि ये इसके - उसके त्योहार है और हम ये - वो है, बल्कि इसलिए कि त्योहार हमारे जीवन की भीगी हुई मुस्काती, सुगंधित और सुवास फैलाती मीठी सी सुबह है - जिसके होने से हम थोड़ा और मनुष्य होते है, थोड़ा और एक दूसरे के नज़दीक जाते है , समझते है, साझा करते है सुख और दुख, थोड़ा और लचीले होकर सबको अपने मे समाहित करने का प्रयास करते है और अपने अपने पितृ पुरुषों को याद करते हुए सजदे में सिर झुकाते है कि जो उन्होंने किया हम तो नही कर पाएंगे पर - है ईश्वर, है सर्वशक्तिमान, है खुदा हमें इतनी शक्ति तो दें कि हम जाने से पहले कुछ ऐसा कर लें कि कम से कम एक पीढ़ी हमें प्यार, सम्मान से याद कर मुस्कुरा लें
कुदरत के इस विशाल आंगन में हमने महीन से महीन जीव जंतुओं को देखा, बरगद के विशाल वट वृक्ष देखें, भयावह जानवर देखें पर जितना सामाजिक और स्नेहिल मनुष्य को पाया उतना किसी को नही बस इसी स्नेह और मुस्कुराहट को इस धरा पर गुणानुक्रम में बढाते रहे तो बहुत होगा
एक बार फिर उमस, गर्मी , हलाहल और शोले बरसाते आसमान को चीरकर मिट्टी में सौंधी सुगंध लेकर ईद आई है अपने साथ पीठ पर बादलों को लादे पानी की अमृत बूंदें लेकर आई है , पीछे - पीछे बरसात की बूंदों ने भी चलना शुरू कर दिया है , चातक चकोर से शुरू हो रही प्रणय की बेला इस धरा को आगामी दो तीन माह में तृप्त कर देगी और एक नया संसार हरीतिमा से लहक उठेगा
आइये ईद मनाएं , दिल के सारे दर्द शिकवा गिला और तनाव भूलकर ईद मनाए
सबको ईद मुबारक
खिसियानी बिल्ली प्रशासनिक अधिकारी को भड़काए
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दिल्ली की जंग में केंद्र सरकार को शर्म आना चाहिए कि वे एक चुनी हुई सरकार को काम नही करने दे रही है
इस घटिया और ओछी हरकत का क्या अर्थ है , दूसरा प्रशासनिक सेवा के अफसरों को यह नही भूलना चाहिए कि वे संविधान के लिए प्रतिबद्ध है , जनता के लिए प्रतिबद्ध है ना कि नरेंद्र मोदी के लिए या सरकार के लिए
यह बदला लेने की घातक प्रवृत्ति है जब तमाम तरह के हथकंडे नही चलें और हर बार औंधे मुंह गिरें तो यह घटिया तरीका अपनाया
क्या दिल्ली देश नही है, विपक्ष को खत्म करने का इतना सस्ता और सड़कछाप तरीका ये लोग अपनाएंगे सोचा नही था , प्रशासनिक सेवा के उन अफसरों को जूते मारकर घर बैठा देना चाहिए जो अपने मूल कर्तव्य भूलकर एक राजनैतिक विद्वैष रखने वाली मानसिकता के व्यक्ति और सरकार के कहने में आकर अपनी हेकड़ी में जनता को भूल रहे है
और अब समय आ गया है कि दिल्ली की जनता इन्हें चेम्बर से निकालकर सड़क पर लाएं, चौराहों पर खड़ा कर लाल मिर्च की धूनी दें उल्टा लटकाकर , साले जिस जनता के इनकम टैक्स की कमाई डकारते है और सुविधाएं भकोसते है आज कुत्तों की तरह से पूंछ उठाकर जीभ से चाट रहे है
देश की राजधानी जो किसी देश भी का चेहरा होता है, हजारों विदेशी लोग आते है, देश भर के लोग आते है वहां प्रशासन को पंगु बनाकर क्या दर्शाना चाहती है केंद्र सरकार , एक ओर प्रदूषण की स्थिति नियंत्रण के बाहर है, सुप्रीम कोर्ट की भी परवाह नही है - खैर वो तो वैसे भी बेच खाई है जब से सुप्रीम कोर्ट जैसी संस्था को भी तहस नहस कर दिया , पर लोकतंत्र में लोक का भी महत्व है या नही या इसे भी धता बताकर मूंग दलना चाहते है
इतने दुनिया मे घूमें, ट्रम्प से दोस्ती की , हाल ही की ट्रम्प किंग कांग की मुलाकात देखी फिर भी समझ नही आया कि लोकतंत्र में मतभेद होना अनिवार्य है , हो सकता है अरविंद ने जिस तरह से दो बार पटखनी दी - उससे आपका दर्प चीत्कार उठा हो, अरविंद नाकारा हो, स्कूल अस्पताल जैसे अच्छे कार्य करके आपके वजूद और दृष्टि को चुनौती दी हो और आपके बड़बोलेपन के खिलाफ ठोस और महत्वपूर्ण कार्य जमीन पर सरकारी ढांचे में रहकर समय सीमा में करके दिखा दिया, निश्चित ही आपके गुजरात के हिंसात्मक मॉडल से हजार गुना श्रेष्ठ है और आपमे हिम्मत भी नही कि एक जगह करके दिखा दें , पर मनभेद रखकर इस तरह से प्रशासनिक अमले को इस्तेमाल कर रहे है - धिक्कार है सरकार बहादुर, यह 56 इंची सीना नही बल्कि कायरता पूर्ण कदम है जो दिल्ली सरकार नही, बल्कि लोकतंत्र के खिलाफ है
अनिल बैजल याद करो नजीब जंग का अंत उसको कन्फेशन कर कहना पड़ा था कि वो कठपुतली बन संविधान से खेल गया था और खुदा के दरबार मे उसने अपने गुनाह कुबूल किये , तुम भी अस्थाई हो जिस दिन जनता पागल हो जाएगी उस दिन यह तंत्र ही नही बचेगा और राज्यपाल जैसे पावन पद पर बैठकर तुम भी कठपुतली बन गये, यही योग्यता है तुम्हारी
संघ जो भाजपा का बौद्धिक टैंक है , को समझ नही आ रहा, प्रणब मुखर्जी के सामने तो बड़बोलापन दिखाते भागवत जी बोले थे हम सबको साथ लेकर सबका विकास चाहते है, क्या दिल्ली में स्वयंसेवक नही है या शाखाएं बन्द हो गई या दिल्ली को दिमाग़ से निकाल दिया है कि कभी दिल्ली जीत नही सकेंगे
चार पांच मुख्य मंत्री बैठे है समर्थन में, मुख्यमंत्री राज्यपाल से नही मिल पा रहा तो आम आदमी की क्या औकात है, तमाशा बनाकर रख दिया है - कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका का
आप कहेंगे मुझे क्यों तकलीफ , निवेटिव हूँ तो जनाब होश में आइये ये देश मेरा भी है सिर्फ इन नाटक कम्पनी चलाने वालों का नही
जो भी है - गलत है, और जिस तरह से केंद्र सरकार विभिन्न तरीकों से प्रहसन रचकर घातक और घटिया उदाहरण नसीहत देने के लिए रचती जा रही है वह इतिहास में दर्ज हो रहा है और कोई नही कहेगा फिर कभी कि " एक था मोदी"
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