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Showing posts from April, 2018

मौत का एक दिन मुअय्यन है ग़ालिब भारतीय ध्वनी प्रदुषण और हम सब नपुंसक 29 April 2018

बरात में बैंड की शुरुवात जगराता से होती है पंखिड़ा रे उडी ने जाजो , फिर तूने मुझे बुलाया और फिर असली गाने शू होते है जो काले कव्वे से लेकर तमाम तरह के भौंडे नृत्य तक जाते है, सडकों पर बेतहाशा भीड़ है - ट्राफिक की, बारातियों की और देखने वालों की सब कुछ अस्त व्यस्त है बैंड, ढोल और ताशे वाले कर्कश स्वर में प्रतियोगिता की तरह से एक दूसरे से आगे निकलने के चक्कर में सारी हदों को पार गए है, अब गाना है गंगा तेरा पानी अमृत, फिर बहारों फूल बरसाओ और अंत में 'गाडी वाला आया ज़रा कचरा निकाल' और दुल्हा सड़क पर खड़ा तोरण तोड़ रहा है और दुल्हन निकल कर वरमाला पहना रही है सच में हम कहाँ आ गए है - परिवार और विवाह नाम की संस्था सड़ गल चुकी है फिर भी हम ढो रहे है. शादियों में जा रहा हूँ तो देख रहा हूँ अन्न की इतनी भयानक बर्बादी है कि आधा हिन्दुस्तान भरपेट खा सकता है इन सारी शादियों से और फेंके गए अन्न से पर किसी को शर्म है - ना आयोजकों को, ना खाने वालों को, ना फेंकने वालों को और ना वहाँ खड़े उठाकर खाने वालों को और फिर हम रोते रहें कि हम गरीब मुल्क है डीजे नामक बीमारी इतनी भयानक हो गई है कि कलेक...