Punarvasu Joshi V/S Prabhu Joshi V/S Sandip Naik and Devil's Advocate Shashi Bhushan
अभी परसो 12 अगस्त को ही मैं, बहादुर और मनीष उज्जैन गए थे और देवताले जी के घर पहुंचे थे परंतु राजेश सक्सेना जी ने बताया कि वे दिल्ली में है।
उज्जैन जाएं और उनसे ना मिले तो फिर कुछ जाने का मतलब नही है।
असंख्य स्मृतियां है और असंख्य तस्वीरें । जितेंद्र श्रीवास्तव के साथ या मदन कश्यप जी के साथ या हम लोगों की उनके साथ की लंबी मुलाकातें और उनका अधिकार के साथ देर तक रोककर रखना , कचोरी खिलाना या कविता पर चर्चा । शब्द धुँधले पड़ रहे है और दिमाग़ ने काम करना बंद कर दिया है ।
चन्द्रकान्त देवताले जी का यूँ गुजर जाना हिंदी कविता के एक युग की समाप्ति है, एक व्यक्ति अपने आप मे कविता का कोष था और साफ़ दृष्टि और बगैर किसी लाग लपेट के अपनी बात निष्पक्ष होकर कहता था। वह शख्स हम सबको रिक्त कर खुद अपनी झोली में हम सबकी दुआएं लेकर चला गया। पिछले दिनों उन्होंने मुझे कम से कम 15- 20 पौधे दिए थे जो मैंने बहुत प्यार से सँवारकर रखे है । ये पौधे ही अब कविता है, चन्द्रकान्त देवताले है और मेरी धरोहर है।
आपके लिए शरीर का छूट जाना अच्छा हुआ क्योकि इलाज की पीड़ा भयावह थी, आखिरी दिनों में कृशकाय और दुर्बल काया, कमजोर पड़ती स्मृति के साथ लोगों से मिलने में भी परहेज करने लगे थे आप।
आपको नमन करूँगा, श्रद्धांजलि नही दूँगा क्योकि आप मरे कहां है - मरिहै संसार !!! दुखी हूं यह भी नही कहूंगा क्योकि आपसे जी भरकर मिला हूँ , बातें की है, ठहाके लगाए है और कविता पर समझ बनाई है, आपके फोन आने पर आपकी चुहल याद है कि " नाईक , मैं मुक्तिबोध बोल रहा हूँ" आपके साथ एक जमाने मे 60 मिली के दो दो पेग लगाए है। स्व श्रीमती कमल देवताले जी के साथ काम किया है उनकी मृत्यु पर भी आपका दुख साझा किया है आपको अपनी बेटियों की हिम्मत बढ़ातेे देखा है और फिर आपके साथ अपने जीवन के बेहतरीन क्षण बिताए है।
अगस्त तुम सच में जल्लाद हो जो उज्जैन में स्थित हिंदी कविता के महांकाल को भी लील गए !!!
हिंदी के कवि चन्द्रकान्त देवताले को पुष्पांजलि देते हुए प्रभु जोशी जी ने नई दुनिया मे 16 अगस्त को एक आलेख लिखा था। उनके सुयोग्य पुत्र पुनर्वसु जोशी , जो गत 18 वर्षों से अमेरिका में रहकर पढ़ रहे थे , ने 17 अगस्त को वह आलेख फेसबुक पर शेयर किया था। मैंने उस पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि एक विजिट के आधार पर इतना बड़ा अतिशयोक्ति पूर्ण विवरण लिखकर कवि के बारे में लिखना सिर्फ शब्दों की बाजीगरी है।
दूसरा देवताले जी खुद अपनी बीमारी के बारे में बात करने से बचते थे, आखिरी दिनों में वे मिलने से भी कतराते थे। बेहतर होता कि प्रभु जोशी जी उनके साहित्यिक अवदान की , कविता की चर्चा मुक्तिबोध, निराला, त्रिलोचन या अन्य बड़े कवियों के बरक्स करते।
उसी समय मैंने Shashi Bhooshan से भी फोन पर यही बातें की।
कल उज्जैन में देवताले जी की स्मृति में एक श्रद्धांजलि कार्यक्रम रखा गया था तो एक तथाकथित पत्रकार उर्फ फर्जी साहित्यकार उर्फ आत्म मुग्ध और दुनिया मे सबसे ज्यादा ब्लॉक करने वाले फेसबुकिया चरित्र के व्यक्ति के आलेख की बात हुई, पुनर्वसु के आलेख की भी बात हुई। तो मैने अपनी बात मित्रों से कही । जब टिप्पणी खोजने गया तो मिली नही तब समझ आया कि 18 वर्ष अमेरिका जैसे खुले देश मे रहकर आने के बाद हरि भटनागर के लिए मानकीकृत हिंदी में बड़े विदेशी लेखकों का अनुवाद करने वाले हिंदी प्रेमी और अपनी बड़ी बड़ी टिप्पणियों से मात्र 37 साल के इस युवा ने मुझे ब्लाक कर दिया ।
भला हुआ जो मेरी गगरी फूटी की तर्ज पर अब माजरा समझ आया कि वो आई डी कौन चला रहा था क्योंकि शक तो पहले ही था कि हिंदी जब मैं 51 बरस यहां रहकर नही सीख पाया तो 18 वर्ष अमेरिका में रहकर आया खुले दिल दिमाग का व्यक्ति हिंदी के ऐतिहासिक सन्दर्भों और प्राचीनतम लेखकों के बारे में साधिकार लेखन, अनुवाद और प्रसंगों को कैसे याद करके लिख लेता है।
खैर शुक्र है अपुन ब्लॉक हो गए , वरना फर्जी प्रोफाइलों में उलझकर जीवन वैसे ही नष्ट हो रहा है । लोकतंत्र और खुले दिमाग के लोग जब इतने संकुचित हो जाये कि आलोचना ना सह सके और आत्म मुग्ध रहे तो मेरे ठेंगे से !!!
Shashi Bhushan - हम सब बर्दाश्त नहीं कर पाने में चले गए हैं। कोई कुछ भी बर्दाश्त नहीं कर पा रहा है। लोगों में किसी क्रिया की प्रतिक्रिया देखता हूँ तो बुरी तरह डर जाता हूं। अनुकूलन को लोगों ने सुखकर या प्रीतिकर होना ही चाहिए मान लिया है।
मैंने अपनी प्रतिक्रिया आपको बतायी थी। पुनर्वसु के यहां मैंने उसे लिखा भी है। वह होगी।
वह स्मृति लेख मुझे व्यक्तिगत रूप से अच्छा लगा था। मैने उसे विद्यालय में सुनाया भी था। कविता को भी सुनाया। उसने कहा यह जाबिर हुसैन पर लेख की तरह है या वैसा जैसा हजारी प्रसाद द्विवेदी ने टैगोर पर लिखा। यह उसकी राय है।
मेरी स्पष्ट राय है कि लेखन एक संवाद होता है। यदि किसी लेखक के बारे में हमारी धारणा ठीक न हो या हममें पूर्वाग्रह हों तो यह संवाद नहीं हो पाता। मैं आपको समझता हूं इसलिए तब भी कहा था आज भी कह रहा।
प्रभु जोशी को मैं बहुत बड़ा कलाकार लेखक और चिंतक मानता हूं। मैं कह सकता हूँ कि जो बातें उन्होंने 2007 के आसपास बातचीत में यों ही कही होंगी वही बातें आठ दस साल बाद या तो टीवी में किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति से सभा सेमिनार में सुनने को मिलती हैं। उस दिन जो गणेश देवी रवीश जी से कह रहे थे वो सब बातें जोशी जी सालों से कह रहे हैं।
लेकिन प्रभु जोशी अब इंदौर में एक स्वायत्त द्वीप है। उनसे प्रतिस्पर्धा वाले लोग काफी हो गए हैं। मुझे नहीं मालूम कि अपना दुखड़ा रोने के लिए भी उनके पास वक़्त है। मैं या उनके शुभचिंतक यह चाहते भी हैं कि उन्हें यह सब दिखाई सुनाई न दे। उन्हें अपने अधूरे काम करने का एकांत और शांति दी जानी चाहिए।
पुनर्वसु भारत का ऐसा प्रतिभाशाली युवा है जिसके लिए मेरे दिल में गहरा प्रेम है। वह बहुत पढ़ा लिखा और कई मसलों में अपने बाप का बाप है। काश उसने भी हम लोगों की तरह कुछ सफलताएं और नौकरी चाही होती। काश वह इतना प्रतिभाशाली न होता। काश उसकी धारिता का काम भारत में होता। वह पढ़ लिखकर अपने घर लौट आया है तो हम उस पर लानत भेज रहे हैं और हम वही लोग हैं जो मुम्बई की एक माँ के लिए जार जार रो रहे हैं। हम किसी भी घर के लिए कितने बाहरी होते जा रहे लोग हैं!!!
मैं आपको इतना जवाब इसलिए दे रहा हूँ कि आपको जानता हूँ, आपका टोन मुझे पता है।
लेकिन यह सबको नहीं पता होगा। कुछेक कह सकते हैं मैंने आपको अच्छा जवाब दे दिया है। कुछ तो यह भी बोल सकते हैं प्रभु ने ही डिक्टेट कराया होगा। कुछ लोग हमेशा बड़े कमाल के होते हैं।
कितना अच्छा होता कि आपने ही बर्दाश्त कर लिया होता। क्या फर्क पड़ता है किसने ब्लॉक कर दिया। मुझे भी अन्फ़्रेंड करते रहते हैं लोग।
लेकिन एक बात कहूँगा देवताले जी के बारे में प्रभु जोशी के विचार बड़े मानीखेज और साहित्यिक महत्व के हैं। आखिर प्रभु जोशी ने उनका पोर्ट्रेट बनाया। क्यों बनाया होगा? क्या दिया होगा देवताले जी ने उन्हें?
स्वेटर बनाने वाली औरतों के बारे में आप जानते होंगे। वे पहननेवालों को बद्दुआ नहीं देतीं। प्रभु जोशी तो फिर भी चित्रकार हैं।
इंदौर कई स्तरों पर बिखर चुका है भाई साहब। नोट कीजिये। अब वहां प्रभु जोशी जैसे लोग किसी प्राचीन स्मारक की ही तरह हैं।
अभी इतना ही
Sandip Naik - तुमने लिखा यह सही है पर प्रभु जोशी जी ने व्यक्तिगत बातचीत में कई लोगों को और पिछले वर्ष प्रेमचंद जयंती पर अपने उद्बोधन में कहा कि उनके होनहार बेटे को नैनो टेक्नोलॉजी में पी एच डी करने पर नौकरी नही मिली और भारत मे उसके लायक नौकरी नही है। लौटता कौन है यह सब जानते है खैर वह व्यक्तिगत मसला है उनका।
मुझे ब्लॉक होने का दुख नही , असहिष्णु होने और आत्म मुग्ध होने का दुख है इस उम्र में (दोनों के लिए) यदि हम बर्दाश्त ना कर पाएं तो क्या अर्थ है। और मैंने तो जिक्र जानबूझकर किया ताकि सनद रहे और लोग जो हिंदी पूजकों को पूजते है वे भी समझे कि खेल क्या है मोहरें क्या है और सहिष्णुता और आत्म मुगद्धता के बरक्स असली नकली प्रोफ़ाइल के मायने क्या है।
और ये सिर्फ मेरी प्रतिक्रिया नही इंदौर के बड़े छोटे कवि, कहानीकार और पत्रकार भी जानते है कि किस तरह से कौन किसे प्लांट कर रहा है और क्यों ? यह दीगर बात है कि वे पीठ पीछे देवास , उज्जैन, इलाहाबाद या गांधीनगर या दिल्ली में बोलते है खिल्ली उड़ाते है और मैं बगैर भय के साहस से बोलता हूँ क्योकि मैं तो कबीर पंथी हूँ। सच्चाई तुम भी जानते हो और स्पष्ट रूप से पूछूं तो बताओ इतने बरसों से हिंदी सीखा रहे है कितने ऐसे सुयोग्य बना दिये जो अनुवाद से लेकर हिंदी का इतिहास साधिकार लिख दें ?
प्रतिभाशाली होना सबके लिए सम्भव है और हिंदी में इस समय अपने दम पर बहुत प्रतिभाशाली है कविता से लेकर आलोचना तक और वे शुद्ध देशी और हिंदी भाषी समाज से गौ पट्टी से आते है और पी एच डी कर रहे है अभी। मैं उन सबको प्यार करता हूँ और उन्ही से आशाएं है , मुतमईन हूँ कि वे हिंदी में नया रच रहे है और रचेंगे ।
तुमने लिखा , कहा - आभार और अंत मे इतना कि मेरी क्या मजाल कि किसी के एकांत में खलल डालूँ या विचलित करूँ मैं तो खुद निजीपन का हिमायती हूँ ।
प्रभु दा ने देवताले जी को मसखरा कहा था सनद रहे और यह भी कि पोट्रेट बनाया है।
Shashi Bhushan - मैं खुशनसीब हूँ कि इंदौर, उज्जैन, देवास के साहित्यकारों और संस्कृतिकर्मियों से मुझे परिचित होने का अवसर मिला।
उज्जैन में रहता हूँ और इंदौर आता जाता रहता हूँ।
उज्जैन में देवताले जी से नहीं मिल पाया। जिस गोष्ठी की आप बता रहे वहाँ भी नहीं पहुंच पाया।
अपने विचार बदलने का अवसर मिले तो अवश्य बदलना चाहिए।
आपकी इतनी बड़ी आवाजाही है। कहाँ कहाँ अटक जाते हैं?
फिर बात करेंगे
अभी ग्वालियर हूँ
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