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70 साल की आज़ादी का जश्न और एक मूल प्रश्न



70 साल की आज़ादी का जश्न और एक मूल प्रश्न 
आजादी का 70 वां साल आ रहा है। तरक्की यह है कि संसद, विधानसभा से लेकर नगर निगम, नगर पालिका, ग्राम पंचायतों और छात्र परिषदों में अपराधियों का प्रतिशत लगभग 60 से 70 है - जिनपर बाकायदा नामजद मुकदमे दर्ज है।
निहालचंद्र जैसे बलात्कारी व्यक्ति जिन्हें पुलिस भी गिरफ़्तार करने से डरती है - डेढ़ साल तक केबिनेट मंत्री बना रहता है। कई राज्यों के अकुशल और अयोग्य लोग - जो कई गम्भीर किस्म के अपराधों मसलन हत्या, नर संहार, दंगे, देश विरोधी गतिविधियों, बलात्कार, बलवा आदि में संलग्न है , आज प्रतिष्ठित पदों पर ससम्मान विराजमान है न्यायालयों से छूट भी गए है और जिले, प्रदेश और देश का मान दुनिया मे बढ़ा रहे है - बस फर्क इतना है कि वे अकुशल और अयोग्य है और कुछ लोग कुशल और दक्ष है जो काम करते है और एक बेहतर समाज बनाना चाहते है।
बहरहाल, अब आगे यह प्रश्न है कि क्या हम इसी तरह से चुन चुनकर अपराधियों को अपनी किस्मत का , हमारे इस देश के भविष्य का निर्णय लेने के लिए इन निर्णायक संस्थाओं में भेजते रहेंगे ?
सवाल इसलिए और बड़ा है कि वरिष्ठ वकील शांति भूषण ने द वायर पर देश के सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ लेने जा रहे जस्टिस दीपक मिश्रा को भी लेकर प्रश्न किये है कि एक अपराधी मुख्य न्यायाधीश कैसे हो सकता है जबकि उस पर ढेरों कानून के उल्लंघन और अपराधों की कहानियां दर्ज है, ऐसे में हम न्याय किससे मांगेंगे और सरकार यानी ये चुने हुए जनप्रतिनिधि बेहद शातिराना तरीके से संगठित तरीकों से नित्य नये उपक्रम कर देश और हमें गर्त में हर पल धकेल रहे है !
सवाल एक ही है कि क्या हम अभी भी अपराधियों को निर्णायक भूमिका में देखते है और उन्हें अपना कर्णधार मानकर अपनी नियति सौंप दे ?
मुझे नही पता, मैं सवाल कर सकता हूँ जवाब विद्वजन दें।

कांग्रेस से 60 साल भयानक भ्रष्टाचार किया, दलाल पैदा किये, देश बेच दिया।

आजादी के आंदोलन में हिस्सेदारी करके देश को आजाद भी कराया और पूरा मूल्य भी वसूल किया पर आखिर लोगों ने हर कोने से उन्हें बाहर कर दिया अब वे बाहर है और संतुष्ट है रोजी रोटी के इतने संकट नही है, लोग भी खुश है कि भ्रष्ट लोग बाहर है।

कुछ लोगों ने आजादी के समानांतर जहर बोने का काम किया - कौमों में , मासूमों में और सियासतों में और 60 साल के कड़े संघर्ष के बाद जहर के अविजित , अभेद्य और अपराक्रमी किलों पर सवार आज वे सर्वस्व हासिल कर सब पा लेना चाहते है।

अफसोस यह नही कि ऐसा क्यों , अफसोस यह है कि नशे की आदतों की तरह बुद्धिजीवी जो काल और समय से परे देखते है, कदमों की आहट पहचानते है और जानते, बुझते और समझते है कि जहर खुरानी के ये विशाल और अपराजेय के वट वृक्ष एक दिन उन्हें भी निगल लेंगे । 

देश , समाज और मनुष्य मात्र की काया में लगी ये दीमकें उन्हें शनै शनै चट कर रही है , उनकी आत्मा के पोर पोर को सूखा देंगी - फिर वे कायल है एक अवतार के, इस जहर बोने  की प्रवृत्ति के इतने हिमायती हो गए है कि अपनी ही संततियों में खुद जहर  बोकर आने वाली पीढ़ियों को विकृत कर रहे है । अपना तन - मन - धन,  अक्ल और सदियों से पार झांक लेने की दृष्टि जो मानव कल्याण के लिए उपजी थी - उसे भी जाया कर रहे है। 

इससे भयानक समय महाभारतीय या रामायण काल मे भी नही रहा होगा। मुझे ऐसे सभी रीढ़विहीन और मजबूर मित्रों से बेहद प्यार हो गया है , वे अपना ऐसा कुछ रचने में व्यस्त है जो उन्हें इस काल मे कालजयी करेगा और अमरता प्रदान करेगा। "समय लिखेगा उनका भी अपराध" ऐसी तटस्थता को मैं प्रणाम करते हुए बेहद आश्वसत हूँ , मुतमईन हूँ कि ऐसे मित्र यह जरूर मानेंगे कि लोक अपने अनुभवों और इतिहासबोध से सीखकर बहुत बड़े परिवर्तन करते है, साथ ही इन जहर खुरानी के ठेकेदारों पर भी स्नेह वर्षा करके पुचकारने और दुलारने का मन करता है कि ये यह नही देख रहें कि कोई और है काल के इसी समय मे जो गर्भस्थ अभिमन्यु की तरह हर प्रकार की युद्ध कलाएं तुम्ही से सीख रहा है और कल ही सामने तनकर खड़ा होगा।

#खरी_खरी


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