लिखना है तो साहित्यकार से दूर रहो
सोशल मीडिया के घसियारों से दूर रहो, बूढ़े और चुके चौहानों से दूर रहो, सम्पादकों से दूर रहो, प्रकाशकों को लिस्ट से हकाल दो, पीएचडी स्कालर्स को ब्लॉक कर दो, बेरोजगारी के दंश झेलकर ब्राह्मणों को जबरन कोस रहे दलितों के नाम पर ऐयाशी करने वाले धूर्त और हारमखोर कवियों - कहानीकारों को जूते मारकर निकाल दो लिस्ट से, पत्रकारों को घास मत डालों, अपने कस्बे - मुहल्लों और शहर के रचनाकारों को भगाओ
साहित्य के किसी भी अच्छे या घटिया आयोजन में मत जाओ - जहाँ ये कार्यक्रम कम सेटिंग भिड़ाने और कुत्तों - कुतियाओं को दूध रोटी देने के धत करम ज़्यादा करते है, महिला रचनाकारों को तो बिल्कुल भी भाव मत दो - वरना वे बर्बाद कर देंगी आपको तारीफ कर- करके, हो सकता है पति छोड़कर आपसे ब्याह करके आपको तबाही तक भी ले आये - ये सब देखा-भाला अनुभव और निचोड़ है 40 वर्ष की हिंदी साहित्य यात्रा का
इस सबको छोड़ोगे तभी सार्थक, कालजयी और सुंदर रच पाओगे
#दृष्ट_कवि
#कागज़2
अमेजॉन प्राइम पर है, मुद्दा पुराना है पर स्व सतीश कौशिक और अनुपम खैर के साथ नीना गुप्ता की छोटी सी भूमिका ने इस फ़िल्म को अप्रतिम बना दिया है,बाकी तो सब बकवास है
सुप्रीम कोर्ट लाख आदेश दे दें - रैली, धरना, बन्द या ध्वनि प्रदूषण की रोक के लिये पर गुंडों, मवालियों, नेताओं और धार्मिक गुंडों जैसे लोगों से कौन उलझेगा, अजान पर चीखने वाले मुल्लों और पुराण बाँचने वाले उजबकों को कौन समझायेगा, पुलिस तक नाकाबिल साबित होती है - बस यही मुद्दा है
पर ये सब इस अंधभक्ति काल में सम्भव नही
आप सिर्फ फ़िल्म देखिये अदभुत संवेदनाओं और एक आदमी की पीड़ा और अंत में सतीश कौशिक के हाई कोर्ट में दिए गए बयान के लिये
मेरी ओर से ****
नीच पुराण
किसी मॉल में ना घुसने देना, रेल - बस - हवाई यात्रा में बगैर प्रमाणपत्र के नही घुसने देना, निजी होटल में भी घुसना मुश्किल था, राशन नही देना, ट्रैफिक वाले तक प्रमाणपत्र देख रहें थे, और हर जगह यह जरूरी था
बच्चों तक को नही छोड़ा, मैं उस समय से कह रहा था पर अंधभक्तों को तो थाली पीटने से फुर्सत नही थी ढपोरशंख जो कह रहा था - कितनी जान ले ली इन्होंने अंधविश्वासी, कुपढ और अनपढ़ गंवारों ने, अभी तो रामदेव आया है पकड़ में, जिस दिन ये धूर्त धरे जाएंगे तब असली भांडा फूटेगा
और इसे अब कह रहे टीका कानूनी बाध्यता नही था
बेशर्मों लाखों लोगों की हत्या कर शर्म नही आती सिर्फ़ देश ही नही बेचा, ज़मीर ही नही बेचा तुमने - बल्कि मौत के पक्के सौदागर हो
नीचता और किसे कहते है
अभी भी समय है, तीन चक्र बाकी है, भगाओ इस सरकार को, सरकार राष्ट्र नही होता, दो घटिया कार्पोरेट्स के गुलाम और व्यापारी लोग राष्ट्र नही होते - यह कब समझेंगे, मन्दिर - मस्जिद नही, हमें वैज्ञानिक समझ चाहिये, नैतिक और ईमानदार लोग चाहिये
#खरी_खरी
जो मर गए उसका क्या
और अब इलाज क्या उसकी बात हो
मोदी के अधिवक्ता ने तो सुप्रीम कोर्ट में कह दिया था कि सरकार ने कोई जोर जबरदस्ती नहीं की और लोगों ने स्वेच्छा से टीके लगवाएँ , जबकि हर जगह पर कोविड के प्रमाण पत्र जरूरी थे
इन नीच लोगों ने आधार पुणेवालों को अरबों रुपया देकर देश से भागने में मदद की, अब इन सारी मौतों के लिए कानूनी तौर पर भारत की सरकार और राज्य सरकार है अपराधिक तौर पर जिम्मेदार है और इसके लिए सुप्रीम कोर्ट को स्वतः संज्ञान लेकर इनके खिलाफ कार्रवाई करना चाहिए पर सवाल यह है कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बाँधेगा
29/4/24
सूरत, चंडीगढ़ और इंदौर में जिस तरह से भाजपा ने खेल खेला है वह शर्मानाक ही नहीं निंदनीय है
सरकार के करोड़ों रुपए चुनाव प्रशिक्षण, पुलिस सुरक्षा और तमाम तरह के प्रकाशन में व्यर्थ हुए हैं और अंतत यह सारा पैसा मेरे और आपकी जेब से ही गया है
क्यों ना सुप्रीम कोर्ट यह व्यवस्था दे चुनाव आयोग के माध्यम से कि ऐसे हादसे होने पर जीतने वाला उम्मीदवार इस सारे खर्चे की भरपाई करें अन्यथा उसे भी चुनाव से बाहर रख दिया जाए और उसे शहर विशेष में चुनाव हो ही ना 5 वर्ष तक
जनता को भी सजा मिलनी ही चाहिए जो इन दो कौड़ी के अपढ़ - कुपढ़ और नालायक नेताओं को सर माथे पर बिठाकर रखती है
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इंदौर के संत और परम पूज्य श्रीमान कैलाश विजयवर्गीय जी को अग्रिम बधाई और शुभेच्छाएँ कि वे 4 जून के बाद मप्र के मुख्यमंत्री का पद ग्रहण करने जाये और प्रदेश का कल्याण करें
आज का कार्य स्तुत्य है और मोगेम्बो की ओर से इनाम तो बनता है
क्यों DrRakesh Pathak जी, लिख के रख लूँ ताकि सनद रहे
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आपको अभी भी लगता है कि आप लोकतांत्रिक देश में है जहां एक संविधान है तो आपसे बड़ा कोई मूर्ख नहीं है, आपको लगता है कि आप अभी भी लोकतांत्रिक समाजवादी देश में रह रहे हैं, अखंडता, संप्रभुता और समता, बराबरी, भ्रातृत्व मूल्यों जैसे देश में रह रहे हैं तो आप मुगालते में हैं, 2014 के बाद जिस तरह से देश तानाशाही में जी रहा है - उसमें अच्छे दिन आएंगे, यह कल्पना अगर आपके दिमाग में है तो आपसे बड़ा भोला इंसान कोई नहीं है और इसके लिए कोई और जिम्मेदार नहीं आप खुद हैं - और अभी भी आपको होश नहीं कि आप कहां हैं, आप क्या कर रहे हैं, आप क्या सोच रहे हैं और अपना तो छोड़िए दो-चार साल में मर जाएंगे पर आपके बाल बच्चों का क्या होगा - उनका एक बार सोच कर देखिए - अगर आपकी रूह नहीं कांप रही है तो फिर आपको भी डूब के मर जाना चाहिए - जैसे आज लोकतंत्र की अर्थी उठी है इंदौर में, और इस तरह आपको भी हम भारत के लोग नामक जो संविधान में स्लोगन है उसे भूल जाना चाहिए
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शर्मनाक
इस पर पहले से ही शक था, यह भरोसे लायक था ही नही
सूरत की पुनरावृत्ति हुई
यह नीचता का खेल कब खत्म होगा
पर इस पूरे गोरख धंधे में पाँच सालों में एक बार मत देने वाले वोटर्स का "मतदान करने का अधिकार प्रभावित हो रहा है"
सूरत का उम्मीदवार हो या यह अक्षय बम इन पर #सुप्रीमकोर्ट को स्वतः संज्ञान लेकर कड़ी सजा देना चाहिये यह सँविधान का अपमान और मतदाताओं के साथ खिलवाड़ है
भाजपा ने नीचता और शर्म की सारी हदें पार कर दी है और ये अपने आप को लोकतांत्रिक बताते है, कौन नही कहेगा कि यह सब रुपयों का खेल है और दो जोकर्स कार्पोरेट्स के गुलाम है
आपको अभी भी लगता है कि 2024 के बाद इस देश में चुनाव होंगे और ये लोग 4 जून के बाद सँविधान नही बदलेंगे और आरक्षण खत्म नही करेंगे - आइये सड़कों पर और जय श्रीराम के नारे लगाये और हिन्दू राष्ट्र के गुणगान करें
माननीय सुप्रीम कोर्ट एवं चुनाव आयोग आपके पास ऐसी स्थिति में मतदाताओं के वोट के अधिकार सुनिश्चित करने का क्या प्रावधान है, मेरी राय में यहाँ चुनाव स्थगित कर दोबारा प्रक्रिया अपनाना चाहिये और महामहिम #राष्ट्रपति तो कुछ बोलेंगी नही यह यकीन है जबकि प्रथम नागरिक होने के नाते यह उनकी जिम्मेदारी है कि लोगों के अधिकार सुनिश्चित हो
#खरी_खरी
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28/4/24
बहुत बढ़िया कविताएं बेरोजगारी को लेकर यहां वहां चर्चा में है युवा कवि लिख रहे हैं और जबरदस्त वाहवाही हो रही है, मुद्दे बहुत अच्छे हैं, बेरोजगारी सच में बड़ी समस्या है और पढ़े-लिखे लोगों के साथ में बेरोजगारी का अपना एक तालमेल और समन्वय है, मज़ेदार यह है कि इन्हीं बेरोजगारों ने भक्ति को समर्पण तक निभाया, सड़कों पर जॉम्बी बन घूम रहें हैं
पर बहुत दिनों से सोच रहा हूँ कि बीएचयू, अलीगढ़, दिल्ली, जामिया, सागर, पांडिचेरी, हैदराबाद और जेएनयू से शोध करने के बाद नौकरी नही यह पीड़ा प्रदर्शन हिंदी के युवाओं का ज़्यादा है - अंग्रेज़ी, विज्ञान, समाज शास्त्र, दीगर भाषाओं के युवाओं का नही है, ये अन्य विषय वाले विकल्प खोजकर काम में लग जाते है, नेतागिरी, लफंगाई या फालतू जगह दिमाग़ नही लगाते
इतनी पढ़ाई के बाद इतनी निराशा और पूरे तंत्र, व्यवस्था, धर्म आदि के प्रति विद्रोह क्या सही है, मैं नही कह रहा कि धार्मिक हो जाओ, मैं खुद नही हूँ, पर जबरन के विवाद करने के बजाय कुछ सार्थक क्यों नही करते
क्या पढ़ाई का अर्थ सिर्फ़ सरकारी नौकरी है वो भी केंद्रीय विवि में और प्रोफ़ेसरी करना मात्र है या कुछ और भी
क्या पढ़ाई का अर्थ व्यक्तिगत पूर्वाग्रहों - सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, जातिगत, आरक्षण, सामंतवाद, नेपोटिज़्म, अनार्की या आदि को किसी भी साहित्यिक माध्यम से सामने लाना है
अगर पढ़ाई आपको वृहद दायरा और समझ नही देती तो क्या मतलब पीएचडी का या उच्च शिक्षा का , इससे तो हमारा अनपढ़ किसान गया कामगार वर्ग है जो खुला तो है - बन्द और संकुचित नही
ये बातें इन कविताओं के सन्दर्भ में नही या कवि के नही, पर सारे इस तरह के शोधार्थियों के लिये है
रोज कई मित्रों से मिलता हूँ और पिछले दो दशक में कई क्रांतिकारी कवियों को देखा जो सरकारी नौकरी के बाद गायब हो गए, शादी ब्याह कर दुम दबाकर राज्य के गुलाम हो गए और अब विभागाध्यक्ष से लेकर सरकार की दूदुम्भी बजा रहें है
आज जेएनयू के कितने लोग गाँव देहात में जाकर बदलाव का काम कर रहे है जो 70 के दशक से 90 के दशक तक होता रहा
कमाल यह कि हर पीएचडी को प्रोफ़ेसरी का चस्का है भले ही बोलना ना आता हो या पैजामे का नाड़ा बाँधना ना आता हो, नाक बह रही हो पर बनना माड़साब ही है
बेरोजगार है, पर ठसक गज्जबै ही होती है इनकी, देर रात तक दारू, सुट्टा, यारबाशी, टशन, और देशभर में भ्रमण - कैसे होता है यह सब, 5-7 साल जो JRF, SRF लिया - उसकी बचत है क्या दोस्तों या कुछ और
और अंत में क्या ये पीड़ा समाज के सभी वर्ग के युवाओं की नही - फिर एक वर्ग विशेष का विक्टिम कार्ड क्यों
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कृपया जिसे मुद्दों की समझ हो वही तर्क करें , कहने को बहुत कुछ है
#खरी_खरी
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लिखना है तो साहित्यकार से दूर रहो
सोशल मीडिया के घसियारों से दूर रहो, बूढ़े और चुके चौहानों से दूर रहो, सम्पादकों से दूर रहो, प्रकाशकों को लिस्ट से हकाल दो, पीएचडी स्कालर्स को ब्लॉक कर दो, बेरोजगारी के दंश झेलकर ब्राह्मणों को जबरन कोस रहे दलितों के नाम पर ऐयाशी करने वाले धूर्त और हरामखोर बेरोजगार युवा कवियों - कहानीकारों को जूते मारकर निकाल दो लिस्ट से, पत्रकारों को घास मत डालों, अपने कस्बे - मुहल्लों और शहर के रचनाकारों को भगाओ
साहित्य के किसी भी अच्छे या घटिया आयोजन में मत जाओ - जहाँ ये कार्यक्रम कम सेटिंग भिड़ाने और कुत्तों - कुतियाओं को दूध रोटी देने के धत करम ज़्यादा करते है, महिला रचनाकारों को तो बिल्कुल भी भाव मत दो - वरना वे बर्बाद कर देंगी आपको तारीफ कर- करके, हो सकता है पति छोड़कर आपसे ब्याह करके आपको तबाही तक भी ले आये - ये सब देखा-भाला अनुभव और निचोड़ है 40 वर्ष की हिंदी साहित्य यात्रा का
इस सबको छोड़ोगे तभी सार्थक, कालजयी और सुंदर रच पाओगे
#दृष्ट_कवि
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