केजरीवाल को कल छोड़ा ही इसलिये गया कि जब सारे मुद्दे फेल हो गए है और मन्दिर, मस्ज़िद, 370, तीन तलाक, हिन्दू - मुस्लिम या अयोध्या अब नही चल रहा तो वो बाहर आये और कांग्रेस का सत्यानाश करें जैसे गुजरात में किया था, वोटिंग प्रतिशत कम है और 400 पार की संभावनाएं धूमिल होती जा रही तो इस नए जोकर को मैदान में उतारा है, सुप्रीम कोर्ट ने प्रेस आदि से मिलने पर रोक लगाई है पर यह तो रोड़ शो तक कर रहा
आज हनुमान भक्त केजरी ने "मोदी नही - अमित शाह प्रधान बनेगा" कहकर मोदी और भाजपा के प्रति निष्ठा दिखा दी, हनुमान हो तो ऐसा, मोदी की पब्लिक इमेज खराब हो रही थी और लोकतंत्र की परंपराओं की हत्या करते हुए केजरी ने भाजपा के एजेंडे को चुनाव पूर्व ताक पर रखकर प्रधान घोषित कर जनता की सहानुभूति बटोरने में टेका लगा दिया, यह जनमानस पर जबरन थोपने जैसा है
दूसरा यह भी लगता है कि केजरीवाल को सुरक्षित रखने के लिये ही जेल में रखा गया है, ज़मानत पर सिसौदिया और सत्येन जैन को क्यों नही छोड़ा जबकि ये दोनों तो लम्बे समय से जेल में बन्द है, केजरीवाल को इस समय इन्हीं अपने लोगों से शायद खतरा था क्योंकि सारी पोल पट्टी खुलने का डर था और कोई भी शराब माफिया या आप का ही वफादार या विभीषण निपटा देता, एकदम सही टाईम पर बाहर लाया गया है इस धूर्त को और आज ही इसने जनता के बीच मोदी की इमेज को अहो अहो कर दिया
एकदम साफ़ है कि केजरीवाल भाजपा का एजेंडा बढ़ा रहा है और कांग्रेस में घात लगाकर मोदी को जिताने के लिये इस पालतू को छोड़ा गया है, सुप्रीम कोर्ट इस तरह की ज़मानत देगा - यह कल्पना से परे थी
लिखकर रखिये ये धूर्त 4 जून के बाद जेल जाएगा और मुक्त हो जाएगा दस दिनों में मोदी सरकार आते ही - राजनीति में शाह मोदी तो है ही, पर यह केजरीवाल नामक नगीना भी अपने आपमें सुतिया से कम नही है
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मनोज कुयटे और कोमल कुयटे महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले के संग्रामपुर तालुका के रहने वाले है, मनोज ने टाटा सामाजिक संस्थान, मुम्बई से Water Policy and Management में एमए किया है - जबकि कोमल ने DMLT किया है
एक वर्ष पूर्व दोनो का विवाह हुआ, मनोज और कोमल इस मायने में आदर्शवादी है कि शादी में ना बहुत खर्च किया और मनोज ने तो दहेज भी नही लिया, कोमल के माँ पिता ने तीन लाख मनोज को दिया था, जैसे कि अन्य दो बेटियों को दिया, परन्तु मनोज ने वह रुपया तीन बाद लौटा दिया और कहा कि "एक रुपया भी नही चाहिये" और बल्कि बारातियों के आने- जाने का बस भाड़ा भी अपनी बचत से कोमल के पिताजी को दे दिया
ये दोनों बहुत व्यवहारिक और पर्यावरण प्रेमी है, ना बाहर का कुछ खाते है, ना पीते है - मसलन कचोरी, समोसा या कोई कोल्डड्रिंक यहाँ तक कि पानी भी कभी खरीदकर नही पीते, हमेशा अपने पास स्टील की बोतल रखते हैं, जब जरूरत होती है तो किसी भी घर, सार्वजनिक नल या हेण्डपम्प से पी लेते है, पर प्लास्टिक की बोतल का पानी नही पीते
प्लास्टिक मुक्त समाज का सपना देखते हुए इन्होंने घर पर ही अलग - अलग आकार की कपड़े की थैलियाँ सीलकर रखी है, जब भी कही जाते है तो अपने झोले में ये थैलियाँ साथ होती है, यहॉं तक कि किराने वाले से भी कागज में सामान लेते है या अपनी थैलियाँ आगे कर देते है - दाल, चावल या मसालों के लिये ना कोई पैक मसाला, ना टीन पैक्ड सामान, "किराने की दुकान वालों को हमसे बहुत दिक्कत होती है क्योंकि हमें सामान देने में उसे समय भी लगता है और उसे पुड़िया बांधना भी नही आता, अक्सर हम दोनों को देखकर मना कर देते है कि हम कोई सामान नही देंगे और हमें कई जगह भटकने के बाद सामान मिलता है" - कोमल कहती है
"मैं खुद दुकान में घुसकर सामान तौलता हूँ और कागज की पुड़िया बांधकर अपना सामान रखता हूँ, यह इसलिये कि आजकल हर जगह पैक सामान होने से दुकानदार ग्राहक को पैक पकड़ाकर मुक्त हो जाता है" - मनोज कहते है
"एक हजार लोगों को समझाओ - तब एकाध कोई कपड़े की थैली रखना शुरू करता है - पर यह भी लगातार नही होता, आज जब जलवायु परिवर्तम के दुष्परिणाम देखने को मिल रहे है तो प्लास्टिक का इस्तेमाल कितना घातक है यह समझने और समझाने की जरूरत है क्या, और रिसाइक्लिंग आदि सिर्फ़ भ्रम है, इस प्लास्टिक रूपी दानव को नष्ट करना असंभव है" - दोनो चिंता जताते हुए कहते है
मनोज अमरावती जिले के आदिवासी बहुल ब्लॉक धारणी में काम कर रहें है - टिकाऊ विकास को लेकर और कोमल देश के प्रसिद्ध डॉक्टर अभय सातव के अस्पताल में पैथालॉजी लैब में टेक्नीशियन है यह अस्पताल नवाचार और मेलघाट में कुपोषण आदि पर आदिवासियों के बीच लोकप्रिय है और पूर्णतः निशुल्क अस्पताल है
"जीवन मुश्किल है ऐसे सिद्धांतों के साथ, पर हम लगे है कि दस लोग भी बदलें तो सब कुछ बदलेगा, क्या आप, हम, सब तैयार है इस लड़ाई में" - मनोज जब पूछते है तो जवाब नही है मेरे पास
सादा और सरल जीवन मुश्किल है, पर अभी 30 अप्रैल को इनकी शादी की पहली सालगिरह थी तो सब मित्रों और दफ्तर के संगी - साथियों ने पार्टी की मांग की, मनोज और कोमल ने मना कर दिया कि "हम किसी आडंबर में नही पड़ते, ना कही जाते है और ना आते है", पर हां अपनी पत्नी कोमल के लिये एक बड़ा तरबूज ले आये जिस पर लिखा "Happy Anniversary" इस तरह दोनो ने एक दूसरे के साथ दिन बीताया
कोरकू समुदाय के बीच अलख जगाते ये दोनों युवा साथी निश्चल, सहज और सहयोगी है, आप एक बार मिलेंगे तो इनसे दोस्ती हो जायेगी और इनके काम से प्यार हो जायेगा, किसी भी मुसीबतजदा के लिये इनके द्वार सदा खुले है, इन दोनो के लिये खूब प्यार और शुभेच्छाएँ
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तो इतना लंबा पढ़ने के बाद क्या आप प्लास्टिक मुक्त समाज को गढ़ने की लड़ाई में शामिल है, यदि हाँ तो स्वागत और शुभेच्छाएँ , वरना आपने नाहक ही पाँच मिनिट बर्बाद कर दिए जीवन के
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|| कोई नृप होवें - हमें का हानि ||
■ रामचरितमानस
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देश के एक फर्जी, लफ्फाज और स्टार प्रचारक ने सभ्यता, संस्कृति और शिष्टता की सारी मर्यादाएँ उलाँघ दी है और जिस तरह से घटियापन इस व्यक्ति और इसकी पार्टी ने किया है - उसके परिणाम आने वाले समय में इन्हें ही भुगतना होंगे, कार्पोरेट्स के गुलाम लोगों ने शालीनता, भद्रता और कुलीनता को गिरवी रखकर चुनाव और लोकतंत्र को रुपये की मंडी और बाज़ार बना दिया है
अफसोस यह है कि संघ जो जनसंघ से लेकर आडवाणी या अटलजी तक को काबू में रखता था, आज इन गुज्जुओं के सामने मजबूर है और न्यूनतम भाषाई स्तर भी बनाये रखने की जहमत का भी आग्रह नही कर पा रहा है, अच्छा है कल गली - गली में नौनिहाल सुबह - शाम यही सब सीखेंगे और फिर असली समाज बनेगा हिन्दू राष्ट्र का, वैसे ही "सशिम" के प्रोडक्ट्स के सन्देश पढ़कर आप माथा पीट लेंगे जो निहायत ही गंवार और कुपढ़ बन गए जीवन में
जब साफ दिख रहा है कि जनादेश वोटिंग करने ही नही आ रहा, इन्हीं को आना है, तो हर जगह यह आदमी जिस तरह से ओछेपन पर उतर आया है और अनाप - शनाप बक रहा है, जनसभाओं में वह ना पारिवारिक संस्कार दिखाता है और ना एक संघ के प्रचारक के 35 वर्षों के जमीनी काम का अनुभव - कमाल यह है कि जनता ऐसे घटिया पन को बर्दाश्त कर रही है क्योंकि "जब नाश मनुज पर छाता है तो विवेक सबसे पहले मर जाता है" - दिनकर ने कहा है शायद
और सबसे ज़्यादा दुख यह है कि यह संविधानिक भाषा ना वापरते हुए निहायत ही सड़कछाप भाषा का और शरीर की मुद्राओं का प्रयोग कर धूर्तता का प्रयोग सिर्फ़ सत्ता हासिल करने के लिए कर रहा है - वह संस्कारित हिन्दू राष्ट्र, रामराज और जगसिरमौर के रास्ते में कितनी सहायक सिद्ध होगी - यह विचारणीय है
अफसोस कि सुप्रीम कोर्ट, चुनाव आयोग और सभी संविधानिक संस्थाएँ और समझदार (?) ब्यूरोक्रेसी के साथ मीडिया भी अंधी, बहरी, गूंगी और अंग्रेजीदाँ है वरना....
बहरहाल, मुझे शर्म आती है कि एक घटिया संस्कारों वालों वाला असभ्य आदमी एक बड़ी पार्टी का स्टार प्रचारक है और देश की अवाम झेल रही है
नोट - अभी जो भी सरकार है वह मात्र कार्यवाहक है, यह ध्यान रहें, कोई इस धूर्त के समर्थन में आकर अपने पारिवारिक संस्कार और लच्छन्न यहाँ प्रदर्शित ना करें, वरना बेइज्जत करके हकाला जायेगा
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|| वोट ना देना ही विकल्प लगता है अब ||
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गिरते हुए वोटिंग प्रतिशत के लिए सिर्फ़ और सिर्फ़ भाजपा जिम्मेदार है
पढ़े - लिखें - जिनकी सँविधान में आस्था है, वे इस चुनाव को महज़ खानापूर्ति मान रहें हैं, उन्हें मालूम है कि ये आख़िरी चुनाव है तो नाहक बाहर धूप में निकलकर चमड़ी जलाने का क्या फायदा है - क्योंकि बेशर्मों की चमड़ी तो मोटी हो गई है और जो वोट देने जा रहें है वे जानते है कि कोई अर्थ है नही, ओस अवागर्द भीड़ का ना दिमाग़ है ना समझ, जो वोट देकर आआये है वे खुद निराश है और भली भांति जानते है कि उनका वोट बर्बाद हुआ है
पूरा मामला एक तरफ़ा होने के ये नुकसान है और इतिहास इस बात को दर्ज कर रहा है कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह इस पतन के लिये ज़िम्मेदार है
अभी तो तीसरा चरण है, चौथा चरण जो 13 मई को है , उसमें प्रतिशत और गिरेगा - क्योंकि चार दिन की लगातार छुट्टी है और सभ्य, भले लोग इस तरह की मूर्खता में पड़ने के बजाय परिवार के साथ चार दिन कही किसी ठंडी जगह पर सुकून से रहना पसंद करेंगे - इस अघोषित आपातकाल की गुंडागर्दी से, वैसे भी यह सरकार 5 किलो मुफ्तखोर राशन वालों की है हमें तो सिर्फ जबरन जजिया कर देना ही है टैक्स के रूप में जिसको ये लोग मन्दिर और दंगों में बर्बाद करेंगे
आश्चर्य यह लग रहा कि 140 करोड़ के देश में सुप्रीम कोर्ट, मीडिया और ब्यूरोक्रेसी शांत है और चुप है और इसका अर्थ एकदम साफ़ है, साथ ही मतदाता भी इस सरकार पर से विश्वास खो बैठे हैं, पर करें क्या - मजबूती का नाम महात्मा गांधी है और नकारेपन का यह भाजपा सरकार
आप भी शेष बचें चक्रों में वोट देने के बजाय वोट ना देकर या नोटा पर बटन दबाकर खामोश क्रांति में सहयोग बनें
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एक क्रांतिकारी ज़माने से फर्जी किस्से सुनाकर देश को घर - परिवार और अपनी यश गाथा सुना रहा है, कहने को भाजपा के ख़िलाफ़ दिखता था, कल अचानक कांग्रेस के खिलाफ लिखकर उसका असली हिन्दू चेहरा सामने आ गया, पूरी पोस्ट पढ़कर समझ आया कि यह तो संघी है और भाजपा का दल्ला
जब मैंने लिखा कि इस समय मसाला क्यो दे रहे भक्तों को तो फेसबुक से अलग कर दिया, और कुतर्क करने लगा, भयानक जातिवादी और घोर साम्प्रदायिक है, आदिवासियों का सहयोगी नही दुश्मन है
आजकल हिमाचल में युवाओं को इकठ्ठा कर रुपया लेकर ज्ञान बांटने के काम करने वाले फर्जी लोगों की अगुवाई में व्यस्त है और दिन - रात यहाँ भ्रामक पोस्ट कर जातिवाद से लेकर नक्सलवाद के किस्से फैलाता रहता है, सिर्फ़ फर्जी, अप्रासंगिक किस्से और झूठ के पुराण है इसके पास - युवा मित्रों को बचना चाहिये वहाँ जाने से
सभी के चेहरे सामने आ रहे है, कल तो इसका जो भद्दा चेहरा सामने आया तो मैंने जाकर लिख दिया तो क्या भाजपा को वोट दें, तिलमिला गया बन्दा, चुनाव के दो चक्र होने के बाद असलियत सामने आई - इतने धूर्त और ऐयाश है ये गांधीवादी आप समझ नही सकते, इन्हीं जैसों की वजह से कट्टरपंथ बढ़ा है, मोदी का एजेंट निकला आख़िर और कहावत याद आई कि "जिसकी पूँछ उठाओ ......"
सावधान इस जैसों के ढोंग, पहनावों, पोस्ट और नाटक से - असली साम्प्रदायिक और कट्टरपंथी भाजपाई नही - ऐसे लोग है जो प्रपंच कर देश को बेवकूफ बनाकर फंड जुटा रहे है, माँ - बाप, पत्नी - बच्चों के फर्जी किस्से सुनाकर,और ज़मीनी काम करने वालों मेहनत कश लोगों को भट्टी में झोंककर दिल्ली और बड़े शहरों में इस सबको बेचने वालों से सावधान रहिये, ये लोग हिमालय की वादियों में सुकून से जीवन जी रहे है और लोगों को लड़ा रहे है, मैंने लिखा था "यह समय हम सबको एक होकर भाजपा से लड़ने का है" तो मिर्ची लग गई और फिर सामने से सब गुजर गया कि कैसे यह दल्ला बना
साम्प्रदायिक, पूंजीपति, दलाल, पाखंडी, धूर्त और नौटँकीबाज लोग भरे पड़े है इसके जैसे, और ये सब इस सरकार के ओवैसी है
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