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Khari Khari, Drisht Kavi and other Posts from 13 to 24 May 2024

 लोग कहते है और आज फिर किसी ने कहा कि भाप्रसे के कोई लोग परिचित हो तो आपके कोई भी काम निर्विघ्न सम्पन्न हो जाते है

कितने मुगालते में जीते है लोग - कौनऊ मल्लब ना है भाया , 10 साल में ई देख लिया, एक दो भले लोग थे बाकी के तो यूज निकले
यहाँ दर्जनों परिचित है , तीन-तीन चीफ सेक्रेटरी तक आजमा लिये, प्रमुख सचिव से एडीएम तक पर धेले भर के काम नही कर सकते ये लोग और इनकी भी मजबूरी है बापड़ो की, इससे बेहतर तो किसी बाबू को सिर्फ़ चाय पिलाकर आप सत्ता हासिल कर सकते हो या असम्भव को शब्दकोश से बाहर फेंक सकते हो
होता उल्टा है, जितने परिचित उतने नियम कायदे और प्रक्रिया एवं ज्ञान बहुत ज़्यादा, साला आम आदमी बेहतर जो दिल्ली या प्रदेश की राजधानी जाता है सुबू की बस से और ले देकर डंके की चोट पर काम करवाकर कागज़ हाथ मे लेकर सीना फुलाये लंच तक अपने गांव - कस्बे के लिये निकल आता है
इनको दूसरे ज़्यादा जमते है - जैसे बकर बिहारी या रागिणी गाने वाले जाट, फर्जी किरान्तिकारी और कॉपी पेस्ट लेखक, छर्रे और छर्रों के गुरू घण्टाल और ज्जे उनको गाड़ी घोड़ा, भजन - भोजन करवा देंगे, समय देंगे भरपूर, पिज़्ज़ा चबवा देंगे, क्या कहते है कॉफी, ब्राऊनी सब परोस देंगे, बामणों से लेकर जाट - गुज्जर - विश्नोईयों को पर आपसे बात करने को भी टैम ना है, घर का कड़कनाथ समझकर छुरा घोंप देते है कभी भी, अपनी तो कोई अपेक्षा नही रही, एक छोटा सा काम था जो जनहित का है पर टस से मस ना हो रियाँ कोई, अब्बई कां करें कॉमरेड कामतानाथ
बहरहाल, सबकी जय जय रहेगी
[ नितांत सन्दर्भ और कुछ बड़े निहितार्थ वाली पोस्ट है, फालतू की बात और ज्ञान देकर यहां अपनी चोंच ना लड़ाये ]
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मैं बस दो लोगों पर यानी श्री विजय माल्या और परम पूज्य श्री नीरव मोदी पर निबंध लिखना चाहता हूँ मित्रों
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एक दो रोज का सदमा हो तो रो लें फ़ाकिर
हमको हर रोज के सदमात ने रोने न दिया
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इश्क में गैरत - ए - जज़्बात ने रोने ना दिया
वरना क्या बात थी किस बात ने रोने न दिया
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रोने वालों से कहो उन का भी रोना रो लें
जिन को मजबूरी-ए-हालात ने रोने न दिया
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आप कहते थे कि रोने से न बदलेंगे नसीब
उम्र भर आप की इस बात ने रोने न दिया
◆ सुदर्शन फ़ाकिर
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"कविता के पोस्टर बनाने वाले किस आधार पर कवि और कविताओं का चयन करते है" - अभी दोपहर की चाय पीने जबरन घर आ गया लाइवा इस दोपहर की गर्मी में
साले ने नींद खराब कर दी, दिनभर कॉलेज में फेसबुक, इंस्टाग्राम, भाट्सअप चलाकर आया, थक गया था बहुत और झपकी लगी ही थी और ये आ गया ससुर
"अबै, यह धँधा है, सरकारी नौकरी कर रहे हो तो हरामखोरी करने के लिये यह करो - बड़े अधिकारी या स्थापित कवि की सड़ी कविताओं के पोस्टर बनाओ हर दो माह में, सस्पेंड नही होवोगे, प्रकाशक हो तो पुराने मरे - खपे या बिकने योग्य कवि की कविताओं को किसी भी फोटो पर चैंप दो - साला अपने आप पांडुलिपि भेजेगा, किसी फ़ोटो में दिखने वाली और जवानी के फोटू लगाने वाली तितली की कविताएँ चैंप दो बस, दो चार पांडुलिपि आ जायेगी - तुम साले क्या धँधा दोगे" मैंने लम्बी उबासी ली
"फिर मेरी कविताएँ बगैर पोस्टर के मर जायेंगी अधूरी मौत" ? लाइवा दुखी था
"तू निकल बै, पोस्टर पर आने के लिए पोस्टर बनाने जैसा सेटिंगबाज बनना पड़ता है, रोज़ सुबह शेयर मार्केट की तरह कवियों की औकात देखना पड़ती है, उसका विभाग और रोज का कद देखना पड़ता है, तेरी क्या औकात है दो कौड़ी के कोविड कवि, चल चाय पी ली ना, अब निकल"
उसे हकालकर दरवाजे पर कुंडी लगा ली, सब मक्कार प्राध्यापक, मास्टर, धंधेबाज प्रकाशक, बाबू, जेल के कर्मचारी, ऑडिटर्स, नायब तहसीलदार, कला के शोधार्थी, स्वास्थ्य विभाग के तृतीय श्रेणी कर्मचारी, बेरोजगार कवि, मक्कार पुलिस वाले, गाँव में नौकरी पर ना जाकर बूढ़ी माशूकाओं के घर रंग रैलियाँ मनाने वाले, कविता की अध्ययनशाला चलाने वाले, आयोजक - प्रायोजक साले - जो बिना नागा पोस्टर बनाकर लोगों को उपकृत कर तमाम व्यभिचारों में संलग्न रहते है - नजरों के सामने घूम रहे थे और पावर नेप गायब थी आंखों से
आज लाइवा दर्द देकर गया था
[ सभी पोस्टरबाज मित्रों को समर्पित जो तटस्थ भाव से रोज पेल देते है कविताएँ और हर आठ दिन में दो अपनी भी फँसा देते है जबरन, इनको हमारी कविताएँ कभी समझ नही आई - भगवान ने इज़्ज़त रख ली - यह सोचकर ही इत्मीनान कर लेते है, इस पोस्ट के बाद भी भेजेंगे तो फिर प्रोडक्ट में केमिकल लोचा है यह मानकर चलूँगा ]
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दोगलों का कोई धर्म नही भविष्य नही ||
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फेसबुक बदला है इसमें कोई शक नही पर इस माध्यम को गाली देने का कोई अर्थ नही जैसा कि कुछ कुंठित लोग बोल और लिख रहे है और बेशर्मी से लाइक गिनकर कमेंट्स भी पढ़ रहें हैं
कमाल है कि जिस माध्यम से आपने अपनी घटिया तुकबंदी, अश्लील कविता या सड़े गले गद्य से शुरूवात करके मरी-खपी और बूढ़ी तितलियाँ इकठ्ठी की, बन्धुआओं की एक फ़ौज इकट्ठी की - जो हर आपके हर पोस्ट पर आकर कमेंट्स बिखेर कर चले गए, जिस माध्यम पर आपने खानदान को और अपने हर किये धरे को परोसा, रोते - बिलखते परिजनों के वीडियो जमकर पेले और सहानुभूति बटोरी और दुनियाभर के साहित्य उत्सवों और जलसों में जनधन पर ऐयाशी करते रहें , उजबक विचारों को जबरन पेलते रहें, फिल्मों और हीरो हीरोइन पर दो कौड़ी की टिप्पणी लिखतें रहें और ज्ञानी बन गए, पुरस्कार बटोरते रहें निर्लज्जता के साथ और यहाँ चैंपते रहें - आज उसी को गलिया रहें है
कमाल के मक्कार हो बै, नौकरी में तो हरामखोरी की ही, पेशे से घात किया और अब इस निशुल्क माध्यम पर सवाल उठा रहे हो
कहाँ से लाते हो इतनी बेशर्मी, और अब जब तुम लोगों की कड़वी हक़ीक़तें सामने आ रही है, भांडे फुट रहें है, तुम्हारे रीछपन की वजह से रीच कम हो रही, बूढ़ी तितलियाँ जवान मादक फूलों और कलियों पर मोहित हो रही तुम्हे दुत्कार कर तो, रीच के फंडे सीखा रहे और सवाल कर रहें हो
अभी तो ये झाँकी है गुरू, सबका गुरूर टूटेगा और असली आदमी जीतेगा - तुम, तुम्हारी घटिया हरकतें और सेटिंगबाजी सब सामने आने लगी है - नौकरी, पद, और भ्रष्टाचार से कमाया धन और बाप - दादा का रूपया और दो कौड़ी के दर्प में डूबी अकड़ सामने आ रही है
तुम्हारी लिखी और खरीदी किताबें और लेख रद्दी वाले को कल ही दिए है जिसमें ना कविता थी और ना साहित्य - था तो केवल अहंकार और अहम - जिसके आज कोई मायने नही है, तुम लोग घटिया थे और रहोगे, बेहतर है दफ़ा हो जाये - इससे पहले कि कोई और नामजद टिप्पणी करें और तुम्हारे काले कारनामे उज़ागर करें यहाँ
अपुन को सच्ची में बहुत मजा आता है जब तुम्हारा खून जलता है और तुम तिलमिलाते हो , तुम्हारी 2010 से अभी तक लिखी किताबों पर कोई कमेंट नही करता और ना ही नँग - धड़ंग फ़ोटो या तुम्हारी फूल पत्तियों, नदी - पहाड़ों या बासी खाने पर कोई कमेंट करता है, तुम्हारे खानदान को भी अब तुम खड़ा कर दो - नानियों या परदादियो को भी रूला दो -- अब रीच नही बढ़ने वाली
बेड़ा गर्क हुआ है, अब डूबकर रहेगा
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आज से ठीक 10 साल पहले 16 मई 2014 को भारत आजाद हुआ था और तभी से ब्रेल लिपि पढ़ने, देखने, सुनने और मानने वालो की तादाद भी बढ़ गई
2014 से भारत ब्रेल प्रधान देश है
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अपनी प्रिय कवयित्री की आज पुण्यतिथि है, वे मुझे अपना पुत्रवत मानती थी और मैं कविता का ककहरा उनसे ही सीखा, पूरा बचपन उनकी सब्जियाँ लाते बीता, मेरी जवानी उनको कालेज से लाने - ले जाने में बीत गई, और अब जब मैंने अपने रुपयों से मेरे ही 113 सँग्रह छपवा लिये है अभी तक, तो उन्हें देखने और सराहने के लिये वे नही है, ईश्वर उनकी आत्मा को अपने चरणों मे जगह दें
आज श्रद्धा स्वरूप मैं उनकी याद का पुण्य स्मरण करके उन्हें प्रथम किश्त के रूप में 21 कविताएँ समर्पित कर रहा हूँ
तो लीजिये पेश है पहली कविता
"तू कब ईश्वर के कंधे पर चढ़ेगा बै" किसी ने सामने से चिल्लाकर पूछा
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हे अभिभावक रूपी देवात्मा
आपके बच्चों ने आज CBSE की परीक्षा 80 से लेकर 99 % अंकों के साथ पास कर ली, बधाई आपको, बच्चों को भी, पर कम से कम प्रतिशत और अंकों का भौंडा प्रदर्शन करके क्यों बच्चों के दिल - दिमाग़ में संताप और अवसाद पैदा कर रहें हैं
कोटा फेक्ट्री नही देख रहें जहां हर हफ़्ते एक किशोर आत्महत्या कर रहा है, आज बारहवीं पास हुआ आपका नौनिहाल और अब आप उसे IIT, NEET के लिए दबाव डालेंगे
मजेदार यह कि माड़साब लोग, बुद्धिजीवी इस चूहा दौड़ को बच्चों के फोटो के साथ प्रदर्शित कर रहें हैं - आपको मालूम नही कि प्रतिशत कैसे बनते-बिगड़ते है और क्या खेला होता है , थोड़ी तो शर्म करिये
बच्चों को उनकी पसंद की ज़िंदगी जीने दीजिये और मजे करने दीजिये, आप अभिभावक है, सलाम है आपको, पर बच्चों की जिंदगी और उनके right to choice और विषय चुनने की आजादी पर कब्जा मत कीजिये, आपके यहाँ अंक लिखने से दूसरे लाखों बच्चों को अपराध बोध होता है
ज़रा गम्भीरता से सोचिये और अपने दिन याद कीजिये 48 से लेकर 65 % पाकर या सप्लीमेंट्री से पास होकर या दो साल में पास होकर आपने कौनसी खराब ज़िंदगी जी है

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