तथाकथित साहित्य एवं कलाजगत के 99.9% लोग इसलिये पैदा हुए कि अपने आलेख, कहानी, कविता, उपन्यास, अपने चित्र, अपने रेखांकन और अपनी सड़ी -गली पुरानी किताबें कब कहाँ छपी या आई इसे शेयर करते रहें, या उन्हें किस नत्थूलाल या किस चमन सुतिये ने सम्मानित किया - के फोटो पेलते रहते है - इतना कि आदमी मरते समय लकड़ी और उपलों के बोझ बिना ही जलकर मर जाये बहुत सारे वाट्सअप समूहों में देख रहा हूँ कि कुछ लिखने - पढ़ने या किसी की बात को समझे बिना ही अपना 24 घण्टे का कचरा समूहों में यूँ ठेल देते है - जैसे सुबू मोदी जी की गाड़ी में लोग फेंकते है ना "गाड़ी वाला आया जरा कचरा निकाल" की टेर सुनकर बाहर निकल आते है लोग घर भर का कूड़ा लेकर #दृष्ट_कवि *** "क्यों बै ये क्या भेजा तूने 287 लोगों के नाम वाला पर्चा, साले घर में नही थे हम लोग तो कुछ भी फेंक जायेगा" - लाईवा को फोन किया अभी "अरे नही भैयाजी, वो एक सम्मान समारोह का आमंत्रण है - फालोअड बाय कवि गोष्ठी, आप जरूर आईयेगा" - उधर से कर्कश स्वर में लाईवा था "किसका सम्मान है, कवि कौन है और आयोजक - प्रायोजक कौन है, बता दें फोन पर इतना समय न...
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