हिंदी का सच झूठ से ठसाठस भरा हुआ है और कोई बोले तो लोग मर्यादा की सीमाएं लांघ जाते है
और मजेदार यह कि आलोचना की किताबें और पत्रिकाएँ मजे से पढ़ते है पर सच पढ़ने और सुनने की ताक़त नही
सबकी जय जय
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एक मित्र ने अभी हिंदी के वरिष्ठ राजेश जोशी के बारे में लम्बा आख्यान लिखा, जोकि सराहनीय है पर मुझे लगता है कि यह भी एक तरह का अतिवाद है जिसके शिकार हिंदी में कई है, यह भी एक तरह की मानसिक गुलामी, अतिशयोक्ति और जबरन किसी को सिर माथे चढ़ाने वाली बात है
राजेश जोशी व्यक्ति अच्छे है, कवि भी रहें होंगे और काफी ठीकठाक उन्होंने लिखा है गद्य भी लिखा और कविता तो जाहिर है लिखी भी है - स्लोगन में लिखने का हुनर मंडलोई भी सीख गए है इधर, पूरे सम्मान और गरिमा के साथ सच कहूँ तो वे हिंदी के ओवर रेटेड कवि है और उनके लग्गू भग्गुओं और रिटायर्ड बाबू टाईप कवियों ने, [ जिनकी ना समझ है - ना कूबत और जो जबरन कश्मीरनामा और तमाम श्रृंखला उठा लाते है पुस्तक मेलों से ड्राईंग रूम में सजाने वास्ते और अशोक पांडे से दोस्ती निभाने को - पठ्ठे एक पन्ना भी पलटकर नही पढ़ते, ना समझ है इनकी ] ने उन्हें "इष्ट" बनाकर उन्हें जबरन का खुदा बना दिया है, जोशी जी को कवि ही रहने दो यारो - यही बहुत है और अब वे लेखक संघ के अला फलां है, पर कर तो कुछ नही रहें ना बरसों से, हर किसी बड़ी छोटी घटना पर भोपाल के बोर्ड ऑफिस के सामने कु-कामरेडों और एनजीओ कर्मियों के संग झंडा पकड़कर खड़े हो जाते है, यह खड़ा होना एक्टिविज़्म नही है पार्टनर
अगर तर्क से बात करें तो "जुनैद को मार डालो", जैसी भयानक कमजोर कविता लिखकर वे चुकने लगे है और यह एहसास उन्हें भी है, प्रलेस के कुमार अम्बुज जी ने यह खुद में पहचान लिया और वे कविता से विमुख होकर आजकल फ़िल्म समीक्षा पर चले गए और समालोचन पर बढ़िया रचनात्मक लिख भी रहें है
हर कवि की एक कविताई उम्र होती है और अब ये सब लोग जो 70 - 75 पार है और चूक गए है - सिर्फ नगदी वाले पुरस्कार बटोरे, इंटरव्यू दें, गद्य लिखें और अपने अनुभव गोष्ठियों में बाँटें वही पर्याप्त है - इससे ज्यादा उम्मीद नही करना चाहिए, पूरे होशो हवास में कह रहा हूँ, अपने आसपास के चरण पकड़ूँ लोग ही उनके लिए नुकसानदायी है जो इष्ट कहकर अपनी चवन्नी छाप कविताएँ चला रहे है और घटिया संकलन छपवा रहें है, विवि में प्राध्यापक बनने वाले छोरे छपाटों को पकड़कर चिरौरी कर विवि में हिंदी के बहाने हज करना चाहते है
बाबू समझो इशारे
#खरी_खरी
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|| कमाल के कमाल ||
यार कमाल कर गए, ये क्या बात हुई, मतलब कुछ भी, अभी अनुज Akshay Dongare से कन्फर्म किया - जो एनडीटीवी में है , कल रात को लाईव देखा, अभी सुबह से सोहित की रिपोर्ट देख रहा था, फिर फेसबुक पर नज़र पड़ी तो विश्वास नही हुआ, तुरन्त अक्षय को फोन किया तो यह दुखद सच सामने आया
लखनऊ में दो साल जब था ( 2012 - 14 ) तो अक्सर मुलाकात हो जाती थी, वो रिपोर्टर से ज़्यादा एक बेहतरीन शख्स थे, मनुष्य थे और बेहद संजीदा और संवेदनशील व्यक्तित्व थे, अक्सर हम लोग कुछ शेयर करते तो वो कहते कि "संदीप भाई, आप बहुत रिस्क लेकर दस्तावेज और जानकारियां शेयर करते हो और अपनी बेबाक राय देते हो - यह कम होता है, और मैं कहता कि कमाल भाई आप पर विश्वास है और बस यह बना रहे" ; नौकरी में रहकर जब बड़े समुदाय पर पड़ने वाले निगेटिव असर से सम्बंधित गलत निर्णय लिए जाते थे या आदेश पूर्वाग्रहों से ग्रसित होकर निकाले जाते थे, तो कमाल एक मात्र रिपोर्टर थे जो संवेदनशीलता से समझते थे और मुद्दा उठाते थे एवं उनसे शेयर करने और बात करने में मुझे कभी भय महसूस नही हुआ
कमाल खान जैसा बन्दा जिस लगन, प्रतिबद्धता और मेहनत से पेशे में थे वह आज होना असम्भव है और शायद आने वाले समय मे कोई दूसरा होगा भी नही
उत्तर प्रदेश ने ही नही, देश ने नही, बल्कि पूरी दुनिया ने एक बेबाक आवाज खो दी है, बहुत ज़्यादा लिखने की स्थिति में नही हूँ, इतनी यादें और बातें है कि क्या कहा जाये
बहुत दुखद
सुबह से बैठा हूँ एनडीटीवी पर रिपीट टेलीकास्ट देख रहा हूँ कमाल के कमाल
"वे कमल का तोड़ थे" - यह कहने में गुरेज नही कोई मुझे
बहुत दर्दनाक मौत है यह , खुदा कमाल खान को जन्नत अता करें यही दुआ कर सकता हूँ
आमीन
इधर न्यूज या फेसबुक से थोड़ी दूरी है
अजीब मूर्खता मचा रखी है, एक से एक नगीने है - तानसेन से लेकर अशोक की जाति खंगाली जा रही है मतलब कोई काम ही नही रह गया है इन उजबकों को और तो और परम ज्ञानी जिनका दिमाग जातिगत कुंठाओं से भरा हुआ है, मलाईदार पदों पर बैठे है आज पांच अंकों का वेतन ले रहे है वे कुतर्क कर रहें है - बेवकूफों की जमात है ससुरों की
उधर अंजना ओम कश्यप और अखिलेश की वार्ता हास्यास्पद हो गई है - एंकर ना हुई पार्टी की कार्यकर्ता हो गई, अखिलेश भी इस गंवार के चक्कर में बकवास करने पर उतर आए है
भाजपा की नैया डूब रही यूपी में जो विधायक पार्टी छोड़ रहे है - "टकले का साथ - सबका सत्यानाश" टाइप लग रहा जैसे
किताबों का कचरा बदस्तूर आ रहा है, जो लोग फेसबुक पर दिखते नही थे, घटिया अकड़ पर जिंदा थे वे रोज आकर यहां विनम्रता की मूरत बन गए है और चिरौरी कर रहें है, लिंक पेल रहे है - नई उम्र के चाटूकार, निहायत साम्प्रदायिक और विष से भरे हुए ये फर्जी कवि रायता फैला रहें है आज देखा - भगाओ, बहिष्कार करो ससुरों का
बाकी इतना ही अभी
देश बदल रहा है , जय हो
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