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Khari Khari, Drisht kavi, Posts from 7 to 30 Dec 2020

 कुछ शहर जबरन ओव्हर रेटेड हो जाते है क्योंकि वहां कुछ लोग रहते है - जो अतिशयोक्ति में सब कुछ लिखते पढ़ते है, जबकि हर शहर, कस्बा या गांव या दुनिया के देश भी आजकल ग्लोबल है और लगभग समान

हर जगह हर सामान मिलता है,भारतीय सन्दर्भ में नदी, मन्दिर, मन्नत, मूर्खताएँ, मगज के लड्डू और मनमांगी चीजें सहज उपलब्ध है रहा सवाल संस्कृति का तो वो गाली गलौज की हो या पांव पड़ने की - उसमे समय बर्बाद करने से कोई मतलब नही, सुविधाओं और कला की गुलामी करने वाले या कला के बंधुआ हर जगह उपलब्ध है - बशर्तें कौशल और दक्षता में दम हो किसी की, मालवा के हर गांव में कबीर है और बुंदेलखंड के हर गांव में आल्हा ऊदल गाने वाले पर बेचारे वो क्या करें उनमें से एकाध चतुर बेचने वाला बन गया बाकी सब अनुयायी, हर गांव में कलाकार और लेखक है - बस कोई चतुर सुजान व्यापारी बन गया , बाकी तो हम इक उम्र से वाकिफ़ है
देवास का गुणगान मैं भी करता था पर देवास जिनके पुण्य प्रताप से दुनिया में आबाद, विख्यात, या कुख्यात था - उन्होंने तो देवास का कभी भला ना किया - सिवाय लोगों को गुलाम या बेवकूफ बनाने या इस्तेमाल करने के - चाहे फिर राजे रजवाड़े हो, कला के बाशिंदे, साहित्यकार, चित्रकार या टेक्नोक्रेट्स, इसलिए अब देवास का ना गुणगान करता हूँ ना बुराई - अन्य शहरों की तरह यह भी मजदूरों, बाबू टाईप नौकरी करने वालों और व्यापार पसंद स्वार्थी लोगों का शहर है - जैसे दुनिया के नक्शे पर कोई शहर होता है और यहाँ अब सब व्यापार है संगीत हो, कला हो, चित्रकला हो, साहित्य हो, तकनीकी ज्ञान, उद्योग या धँधा
दुर्भाग्य उन शहर, कस्बों या गांवों का है जहाँ कोई शब्दों का ना बाज़ीगर रहता है , ना कोई अपनी कल्पनाशीलता से महिमामंडन करता है इनका
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और हिमाचली टोपियों की विदाई शुरू

पहली टोपी लाड़ले
Vihang Salgat
को मिली जो पूना से आज अपनी गृहस्थन स्नेहल
Snnehal Changulpai
के साथ मिलने घर आया
विहंग से बहुत पुरानी दोस्ती है 2006 की बात होगी - जब इंदौर के तत्कालीन AVRC से विज्ञान सूचना प्रबंधन में मास्टर डिग्री कर निकला ही था, एक मीडिया कार्यशाला जो सुंदर होटल इंदौर में मैंने आयोजित की थी, में आया था, आगे बैठकर खूब सवाल कर रहा था, तब नईदुनिया में इंटर्न था, फिर भोपाल में डीबी भास्कर में श्याम और राधेश्याम के साथ ज्वाइन किया तो घर आये थे तीनों 2007 की बात होगी
फिर जो सिलसिला बना कि आज तक जारी है और हम सबक वृहद परिवार के हिस्से है, विहंग नागपुर, औरंगाबाद, चंडीगढ़ और ना जाने कहाँ कहाँ रहा, दिव्य भास्कर, लोकमत में काम किया, हमने अच्छा - बुरा समय साथ बिताया और दोनो में - बल्कि हम चारो में बहुत आत्मीय रिश्ते है आज भी ( विहंग, श्याम, राधे और मैं)
इन दिनों विहंग पूना में है पत्नी सुशील और सुंदर है, विनम्र है और बहुत ही मेघावी है देवास पहली बार आई और जल्दी ही रुकने का वादा करके गए है दोनो आज
ख़ुश रहो भाई और बहुरानी, मिलते - जुलते रहो - यही चाहिये और क्या चाहिये होता है - रिश्तों में सामीप्य, उष्णता, स्नेह और परस्पर सम्मान
विहंग मेरी एक लम्बे समय से पेंडिंग पड़ी कहानी का मुख्य किरदार है जिसे पूरी करने का मैं वर्षों से प्रयास कर रहा हूँ , पर आज स्नेहल और विहंग को बहुत खुश देखकर वह कहानी वर्ष 2021 में जरूर लिखूँगा यह पक्के वाला प्रॉमिस है
कहानी है " असँख्य सुबहों का सूरज " और यह हक़ीक़त भी है कि यह लड़का सच में असँख्य काली रातों से गुजरा है और हर बार निस्तेज रहा और सूरज की भाँति निकल आया हर अँधेरे के ख़िलाफ़ और चमका है - जियो लाड़ले और यूँही बने रहो सहज और निर्मल

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"ये साढ़े तीन हजार शब्दों की क्या पोस्ट लगाई है " - अभी फोन किया मैंने लाइवा को, क्योकि कुछ समझ ही नही आ रहा था - इसमें 787 लोगों को टैग किया था, 922 हैशटैग थे पोस्ट में
"जी, असल में मेरी साढ़े तीन पंक्तियों की एक कविता वारंगल से निकलने वाले कन्नड़ के हस्तलिखित समाचार पत्र में छपी है, वो रोज़ एक चौराहे पर इस अखबार को लगाते है - उस कविता पर आई प्रतिक्रियाओं को लेकर पोस्ट लिखी है, जिसमे सबके विचार है जो मुझे कुल मिलाकर महान सिद्ध करते है - बस वही है, आपको भी टैग कर दूँ ? " - लाइवा चहक रहा था
"पर सबको मिली कैसे " - मेरा प्रश्न था
" जी मैंने 312 वाट्सएप समूहों में शेयर की थी, 7893 लोगों को वाट्सएप और मैसेंजर पर भेजी थी तो जवाब आयें है एक चौथाई लोगों के " - लाइवा उत्साहित था
" फोन रख बै, तेरी ..... " उबल पड़ा था मैं
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"कालेज में या विवि में प्राध्यापक बन जाता तो कवि भी हो जाता, छात्र ही इतने मिल जाते कि ना चाहकर भी बुकर पुरस्कार लेना पड़ता, हो सकता कि भाभू का निर्णायक भी बन जाता पर अफसोस, पांच बार में भी जेआरएफ नही कर पाया" ... लाइवा का प्रलाप जारी था
"तो अभी बेरोजगार हो क्या" - मैंने पूछ ही लिया मलहम लगाने के हिसाब से
"नही जी, नई वाली हींदि का लेखक हूँ, सब लिखता हूँ, सबसे सम्बंध गांठकर रखता हूँ किशोर, युवा, युवतियाँ, बुढियाएँ , अधिकारी, आलोचक, देशी विदेशी, दलित, बामण, चपरासी, आय ए एस , बनिये व्यापारी मतलब हर तरह के लोगों से और केंद्र सरकार के एक इस्कूल में पीजीटी हूँ, सबकी कहानी - कविता पढ़कर फेसबुक पर पेलता हूँ, अपनी पढ़ता हूँ तो पांच लाइक नही आते" - और जोर से रोने लगा
हे भगवान इसका कुछ नही हो सकता कमबख्त ....
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अमरता का पट्टा
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दुनिया की सच्चाइयों को देखते हुए सावधान रहिये - कोरोना की धूम धड़ाके से शानदार वापसी हो रही है
ब्रिटेन के लॉक डाउन से लेकर महाराष्ट्र में रात के कर्फ़्यू , उड़ानों पर रोक - यही इंगित कर रहें है, बहुत शादी ब्याह, चुनाव, उत्सव और त्योहार मना लिए, अब भुगतने को तैयार रहिये
मुगालते में मत रहना , वैक्सीन कुछ नही कर पायेगी और अभी सबको मिलेगी भी नही, जैसे बिहारियों को घण्टा घड़ियाल मिला वैसे बंगालियों के लिए माहौल बनाया जा रहा है - बाकी तो 2014 से हम सब जान ही रहें है तमाम खेल, फर्जीवाड़े, आंदोलन , सुधार और फेस लिफ्टिंग
सरकारी अस्पतालों की व्यवस्थाएं बिगड़ी है और कोरोना के नाम पर मरीज लाओ और रुपया कमाओ के खेल हमने देखें है , हम सब कंगाल भी है, इसलिए ना कोई मदद की उम्मीद करें ना मांगने की हिम्मत भी करें, सड़कों पर चलने वालों और पलायनवादियों से भी अब कोई सहानुभूति नही - कल भूखे मरते हो - अभी मर जाये, मेरी बला से , इनकी मजबूरियों का जश्न अभी तक मन रहा है, चैनल्स दिन दिनभर बकवास कर थोथे पंडित और ज्ञानियों की बकवास पेल कर अपना नफ़ा नुकसान पूरा कर रहे है
बेहतर है खुद सतर्क रहें, सुरक्षित रहें, शादी ब्याह में उत्सवों और तमाम सामाजिक कार्यक्रमों में ना जाकर जीवित रहें, बड़ी बेशर्मी से कह रहा हूँ यदि यह सब नही किया तो मैं आपको श्रद्धांजलि दूँगा या आप मेरे फोटो पर RIP लिखकर निकल लेंगे
शायद ऐसा हो कि हम सब मिलकर अपने दोस्तों और रिश्तेदारों क़ा साझा शोक हम सब मिलकर यहाँ मनाएंगे रोज रोज, दिन में दस बार - क्योकि मैं भी अब ना मास्क पहन रहा, ना हाथ धो रहा, ना सेनिटाइजर यूज कर रहा और धडल्ले से हर जगह जा रहा हूँ
जैसा 2020 गया वैसा ही आधा 2021 जाएगा लिख लीजिये क्योकि हम सब गैर जिम्मेदार हो गए है , राजनैतिक दल हो या साहित्यकार - ये आत्म मुग्धता के शिकार है प्रपंच के अलावा कुछ नही कर सकते
फ़ैसला कीजिये - सरकार के भरोसे मत बैठिए, उन्हें बंगाल में जीतना है और कृषि के बिल लागू करवाने है
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भारी भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार घोषित हो गया
रज़ा के सर्वेसर्वा की सेवा में सालों से अमूल मख्खन के ट्रक बर्बाद करने वाले युवाओं को हार्ट अटैक , कुछ की मौत और जैसे पटना में कुछ युवा कवि पिछले वर्ष मास्टरी पाकर चुप हो गए थे, अब फिर कुछ उपकृत होंगे
आज फेसबुक त्यागेंगे कुछ त्यागी, शोध के गुरु भी बदल डालेंगे, अपनी प्रेयसियों की गोद में बैठकर हम प्याले होंगे - Oh My God, Brutas - You too... Uff
हिंदी कविता की 40 से नीचे वाली पीढ़ी सीढ़ी के बजाय अब "नई वाली हींदि" पर काम करेगी और फिर जूझेगी किसी अनोखीलाल, ग्यारसी बाई पुरस्कार के लिए
साहित्यकारों , चलिए पोस्टमार्टम शुरू करिये
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चुनाव आयोग -एक काम करो, ईवीएम भी मत सुधारो, मत करो प्रोग्रामिंग - कायकू लफड़ा करता रे बाबा , आराम करो - आराम , भोत ठंड पड़ रैली रे बाबा - घर मे ईच रैने का
क्यों हम गरीबो का रुपया बर्बाद करोगे, आज बंगाल में कद्दावर हीरो और चुनावबाज अमित जी भाई शाह ने बोल ही दिया है कि भाजपा की 200 से ज्यादा सीट्स आयेगी
बस, खत्म, अब भले ही भाजपा की तृणमूल,वामी, कामी, पापी या सपा बसपा से बनी मिक्स वेज हो या सिर्फ असली संघी माछ झोल - काहे कूँ नौटँकी होने का, कैलाश भाई को भी इंदौर से मवालियों की फौज ले जाना पड़ेगी, दूसरा हाथ तुड़वाना पड़ेगा, जे पी नड्डा की शूटिंग के लिए फिर एक कार बेकार होगी
छोड़ो ना, अरे बोबडे साहब, कोविंद जी, समझाओ इस चुनाव आयोग को - उत्ते रुपये मोदी जी के फेस लिफ्टिंग में लगाओ, बाइडन को बुलाओ 26 जनवरी को - "गणतंत्र दिवस" है ना - चाय पिलाओ, पकौड़े खिलाओ
और ममता दीदी तुम अबी घर जाओ बाबा , भोत हो गया नाटक और अत्ता सत्ता के खेल बन्द करो
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गराडू - मालवा का सर्दियों में श्रेष्ठ व्यंजन
◆ इसको छीलकर साफ करके चौकोर टुकड़ों में काटकर तेल में तलते है
◆ फिर जीरावन और खूब नींबू निचोडकर गर्मागर्म खाते है
◆ बेहद पौष्टिक ताकतवर और फायदेमंद होता है, शादी ब्याह की पार्टियों में इसके स्टॉल पर झगड़े हो जाते है प्लेट भर कर भकोसने के लिए, अब इस साल जाना ही नही हो रहा तो घर ही बनाऊंगा
😜😜🤣🤣😜😜
◆ आज नही तो कल बनेगा गर्मागर्म, बस छिलना ही सबसे बड़ी समस्या है बाकी तो सब बढ़िया



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मेरा भारत सरकार से निवेदन है कि vaccine का पहला टीका अमिताभ बच्चन को ही लगाए
ओ बाई, म्हारो माथो खाई ग्यो सात आठ महीना में लंबू , बात इज नी करणे दी जख नी लैनी दी इना लंबू ने
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सारे भक्त कंगाल और मानसिक रूप से भयानक बीमार हो गए है "मोडीड -14 " नामक वाईरस से
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"आप सिंघु बॉर्डर चल रहे है क्या " - बड़े दिनों बाद फोन आया लाइवा कवि का
"क्यो क्या हुआ, आप किसान आंदोलन में कार सेवा करने जा रहे है क्या " - मैंने पूछा
"नही, हजारों की संख्या में है वहाँ किसान, मीडिया वाले - कुछ कविताएँ सुना दूँगा, अब साल खत्म होने में पंद्रह दिन ही बचें है, नही सुनाई तो आत्महत्या करना पड़ेगी " ....वे रो रहें थे
मैंने फोन काट दिया, बन्दा खुद तो मरेगा मुझे भी लेकर डूबना चाहता है
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ढोल, गंवार, भक्त, डीजे और बाराती
ये सब ताड़न के अधिकारी
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जिन हरामखोरों के घर अभी भी रात साढ़े बारह बजे तक डीजे, ढोल , ताशे और बैंड बज रहे है - भगवान करे अगले जन्म में ये सब सूअर बनें और कल से गूंगे बहरे हो जाये
जिन प्रशासनिक अधिकारियों को शिकायत के बाद भी समझ नही आते आम लोगों के दुख दर्द वे अगले जन्म मे मुहल्ले के पागल कुत्तों से भी ज्यादा आवारा और मरियल कुत्ते बने
बैंड वाले, ढोल, ताशे और डीजे वाले तो सूअर है ही, ये लोग जन्म जन्मांतर तक बगैर उत्सव और खुशी के सड़ते रहें
ऐसे तमाम लोग जो इन प्रथाओं को मानते और सहयोग करते है, उनसे बड़ा मूर्ख संसार मे कोई नही
कितने निर्लज्ज समाज मे हम रहें है
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हिंदी में युवा मतलब क्या
पिछले साल एक रिटायर्ड कवि को किसी ने युवा छाप दिया तो मैंने पूछ लिया तो कविराज बुरा मान गये और हटा दिया, दो - चार पचास, छप्पन - अट्ठावन पार भी थे उस लिस्ट में, उनको भी पूछा तो झगड़ा हो गया - बात थाने तक पहुंची थी - साल भर तक प्रताड़ित होता रहा मैं
अभी एक अग्रज कवि से पुनः पूछा है जो युवाओं का सातवां कविता संकलन लेकर आये है जिसमें अधिकांश 45 पार के कवि है , कवियों से दिक्कत नही बस शीर्षक
पता नही अपना गणित ही ससुरा खराब है अब बड़े भाई
Devilal Patidar
जी भी मेरी फिरकी ले रहे हैं
🤣🤣🤣
उस पोस्ट पर
क्या करूँ मैं आने वाली अप्रैल में 53 का हो जाऊँगा एकदम बूढ़ा
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अभी एक फोन आया जिसमें उस व्यक्ति ने मुझसे कहा कि आपने हमारी मई-जून में लॉक डाउन के समय बहुत मदद की थी हमारे बहुत सारे मित्रों को घर पहुंचाने में - अब एक मदद तुरंत चाहिए वह कर दीजिए , आपकी कलेक्टरों और पुलिस वालों से बहुत पहचान है
मैंने पूछा क्या हुआ और आप कौन हैं तो उसने अपना नाम नहीं बताया - बस यह कहा कि मेरे गांव के कुछ युवा साथी चोरी के आरोप में पकड़े गए हैं और उन्होंने शायद चोरी की भी है, वे मध्य प्रदेश के किसी ब्लॉक में थाने में कल रात से बंद है - आप किसी पुलिस वाले को बोल कर या मीडिया वाले से बोलकर उन्हें छुड़वा दें तो बहुत मेहरबानी होगी - मैंने कहा भाई लॉक डाउन की बात अलग थी, घर पहुंचाने की बात अलग थी - परंतु यह कैसे संभव है तो उसने गुस्से में कहा कि आप लोग फालतू की समाज सेवा का नाटक करते हो, यदि 2 - 4 चोरों को नहीं छुड़वा पा रहे हैं तो क्या समाजसेवी हैं ख़ाक
मित्रों अब आप बताइए कि क्या किया जाए
बन्दा शरीफ और जानकार लग रहा था, उस समय इतने लोगों में नम्बर बंट गया था कि ना जाने किसके - किसके, कैसे - कैसे फोन आते रहते है पर यह आया फोन ग़जब ही था, उसे किसी विधायक या सांसद या प्रधान सेवक को दिल्ली में करना चाहिये था - गलती से मुझे कर दिया कमबख्त ने
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कोरोना ने हालात बड़े विचित्र कर दिए है - शादी ब्याह जो मूल रूप से सामाजिकता और रिश्ते निभाने, मेल मिलाप और भावनात्मक जुड़ाव के उपक्रम होने के साथ ही जीवन के दुर्लभ क्षण हुआ करते थे - में भी बदलाव किया है
हम सब जानते है कि इस समय जाना, आना बहुत रिस्की है पर फिर भी लोगों ने सौम्यता दर्शाते हुए निमंत्रण भेजे और कहा कि घर से ही आशीर्वाद दीजिये मजबूरीवश हम बुला नही पा रहें - इस साफगोई का हमने सबने स्वागत किया और फोन पर, मैसेज से या वाट्सएप पर बधाई दी , मेरे जैसे शक्कर के घातक मरीज ने तो सार्वजनिक जगहों पर जाना बंद कर दिया है, अभी पिछले हफ्ते दस माह बाद एक जगह गया था बहुत हिम्मत करके, हाँ मौत और गमी में लगातार गया हूँ भले ही फिर कोरोना हो जाये या कैंसर का बाप - यह मानकर कि किसी के दुख में नही जा पाएं तो जीने और सामाजिक होने का क्या अर्थ है
परन्तु कुछ रिश्तों ने यह औपचारिकता भी नही निभाई बाकी तो छोड़ ही दीजिये, और यह व्यवहार उन लोगों का है जो बेहद निजी थे और अपने, चलो बहुत कुछ साफ हुआ और झंझट खत्म हुआ रस्मों रिवाज़ की रवायतें शेष थी वे भी टूटी
अपेक्षाओं का अंत नही, जाना भी नही था कही पर यदि सूचना भर भी मिल जाती तो शायद जो थोड़ा बहुत बचा रहा - वो बचा रहता भले ही जमाने के लिए, आँख की शर्म के लिए पर वो भी नही रहा और यह चूक जिम्मेदार लोग, बड़े सामाजिक ज्ञानी, समता मूलक समाज की बकैती करने वाले ढोंगी और प्रबुद्धजन करें तो और अखरता है
बहरहाल, जीवन है, संसार है और दुनियादारी का चलन है - यह सब तो लगा ही रहता है, "दुख आदमी को माँजता है" - याद रखना चाहिए

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