Skip to main content

Khari Khari and Drisht kavi posts of 16 to 18 July 2020

"सुना आपकी 14 पेज में कविताएं छपी है गोबराँचल के ताज़ा अंक में "- वे दिख गए बाज़ार में परवल खरीदते हुए तो मैंने सहज ही पूछ लिया
"घोर कलयुग है भैया, भेजी तो कविताएँ ही थी - सम्पादक ने किसी लौंडे को दे दी तो उसने मेरी गद्य कविताओं का अपने ही साथ हुआ साक्षात्कार बनाया और आलूचना, सॉरी आलोचना के रूप में छाप दिया और ऊपर से हिंदी के बहिष्कृत लेखकों के वर्जन डालकर 14 पेज रंग डालें " कविराज रो रहें थे
प्रलाप अभी पूरा नही हुआ फिर बोले " और तो और, ससुरा प्रकाशक बड़े वाला निकला - वो पत्रिका का प्रमोशन इन जड़ बुद्धिहीन प्राध्यापको और उस लौंडे के नाम एवं फोटुओं से पेल रहा है - हतो भाग्यम , हतो चिंता "
कोरोना के मरीज का भी दर्द इतना ना होता होगा - उन्हें हाँफता हुआ छोड़ घर लौट आया मैं - मस्तराम का नया अंक लेकर बाज़ार से
***
मप्र में अपराधों की सँख्या भयानक बढ़ गई है, शिवराज सरकार का पूरा ध्यान सत्ता, मन्त्रिपदों की बंदर बाँट में और दो लोगों को साधने में लगा है
मज़ेदार यह है कि जो गिरगिटी पुलिस कल तक कमलनाथ सरकार में शिवराज और भाजपा की विरोधी थी, वो आज इनके श्री चरणों मे नत मस्तक है और इनके साथ मलाई चाटने में व्यस्त है - सवाल कमान और योग्यता का है जो चापलूसी से तय हो रही है इसलिए अपराधों का चलन बढ़ गया है , लूप लाइन में पड़े अफसर अचानक नेतृत्व की भूमिका में आ गए है और ये फील्ड में आकर बौरा गए है
पूरी ब्यूरोक्रेसी भी बदल दी गई है जिलों में नई सेटिंग है और प्रमोटियों को लगभग समेटकर भोपाल बुला लिया गया है और बाकी अफसरों को मैदान में भेज दिया गया है , प्रभावी मंत्रियों के रिश्तेदार बड़े जिलों में कलेक्टर और बड़े विभागों में है
राज्य प्रशासनिक सेवा के लोगों को भी इधर उधर किया गया है जिससे हिस्सा सही जगह और हाथों में पहुँचे - अब मंत्री बन गए है और असली जमीनी खेल शुरू होंगे चौसर पर , जनता अभिशप्त है अपराध, अपराधियों और प्रशासन को झेलने के लिए - एक उदाहरण ही पर्याप्त होगा यह कहने के लिए - हाल ही मैं पन्ना, सतना और रीवा से यात्रा कर लौट रहा हूँ और बिजली की हालत इतनी खराब है कि दिग्विजय सिंह सरकार को शर्म आ जाती ऊपर से हजारों के बिल थमा दिए गए है उन आदिवासियों को भी जिनके गाँवों में आजादी के बाद से बिजली नही है और शर्मनाक यह कि कही कोई सुनवाई नही, शिकायतों का निराकरण नही और पूछने पर एफआईआर करने की धमकी अलग
अब सैया भये कोतवाल तो फिर क्या, ये अफसर संविधान तो सिर्फ रट्टा मारकर परीक्षा पास करने के लिए पढ़ते है , अपने हक़ लेने के लिए या भड़ास डॉट कॉम निकालने के लिए - जनता के अधिकार जाये भाड़ में , इनका इससे कोई सरोकार नही और बाकी ज़मीनी हक़ीक़ते तो सिर्फ दूम हिलाने से मालूम पड़ती है ना
शर्म नही आती इन लोगों को
***
Pain might be inevitable but misery can always be optional
Is it not so simple ? Then why we bear...
***

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी व...