"सुना आपकी 14 पेज में कविताएं छपी है गोबराँचल के ताज़ा अंक में "- वे दिख गए बाज़ार में परवल खरीदते हुए तो मैंने सहज ही पूछ लिया
"घोर कलयुग है भैया, भेजी तो कविताएँ ही थी - सम्पादक ने किसी लौंडे को दे दी तो उसने मेरी गद्य कविताओं का अपने ही साथ हुआ साक्षात्कार बनाया और आलूचना, सॉरी आलोचना के रूप में छाप दिया और ऊपर से हिंदी के बहिष्कृत लेखकों के वर्जन डालकर 14 पेज रंग डालें " कविराज रो रहें थे
प्रलाप अभी पूरा नही हुआ फिर बोले " और तो और, ससुरा प्रकाशक बड़े वाला निकला - वो पत्रिका का प्रमोशन इन जड़ बुद्धिहीन प्राध्यापको और उस लौंडे के नाम एवं फोटुओं से पेल रहा है - हतो भाग्यम , हतो चिंता "
कोरोना के मरीज का भी दर्द इतना ना होता होगा - उन्हें हाँफता हुआ छोड़ घर लौट आया मैं - मस्तराम का नया अंक लेकर बाज़ार से
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मप्र में अपराधों की सँख्या भयानक बढ़ गई है, शिवराज सरकार का पूरा ध्यान सत्ता, मन्त्रिपदों की बंदर बाँट में और दो लोगों को साधने में लगा है
मज़ेदार यह है कि जो गिरगिटी पुलिस कल तक कमलनाथ सरकार में शिवराज और भाजपा की विरोधी थी, वो आज इनके श्री चरणों मे नत मस्तक है और इनके साथ मलाई चाटने में व्यस्त है - सवाल कमान और योग्यता का है जो चापलूसी से तय हो रही है इसलिए अपराधों का चलन बढ़ गया है , लूप लाइन में पड़े अफसर अचानक नेतृत्व की भूमिका में आ गए है और ये फील्ड में आकर बौरा गए है
पूरी ब्यूरोक्रेसी भी बदल दी गई है जिलों में नई सेटिंग है और प्रमोटियों को लगभग समेटकर भोपाल बुला लिया गया है और बाकी अफसरों को मैदान में भेज दिया गया है , प्रभावी मंत्रियों के रिश्तेदार बड़े जिलों में कलेक्टर और बड़े विभागों में है
राज्य प्रशासनिक सेवा के लोगों को भी इधर उधर किया गया है जिससे हिस्सा सही जगह और हाथों में पहुँचे - अब मंत्री बन गए है और असली जमीनी खेल शुरू होंगे चौसर पर , जनता अभिशप्त है अपराध, अपराधियों और प्रशासन को झेलने के लिए - एक उदाहरण ही पर्याप्त होगा यह कहने के लिए - हाल ही मैं पन्ना, सतना और रीवा से यात्रा कर लौट रहा हूँ और बिजली की हालत इतनी खराब है कि दिग्विजय सिंह सरकार को शर्म आ जाती ऊपर से हजारों के बिल थमा दिए गए है उन आदिवासियों को भी जिनके गाँवों में आजादी के बाद से बिजली नही है और शर्मनाक यह कि कही कोई सुनवाई नही, शिकायतों का निराकरण नही और पूछने पर एफआईआर करने की धमकी अलग
अब सैया भये कोतवाल तो फिर क्या, ये अफसर संविधान तो सिर्फ रट्टा मारकर परीक्षा पास करने के लिए पढ़ते है , अपने हक़ लेने के लिए या भड़ास डॉट कॉम निकालने के लिए - जनता के अधिकार जाये भाड़ में , इनका इससे कोई सरोकार नही और बाकी ज़मीनी हक़ीक़ते तो सिर्फ दूम हिलाने से मालूम पड़ती है ना
शर्म नही आती इन लोगों को
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Pain might be inevitable but misery can always be optional
Is it not so simple ? Then why we bear...
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