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Bhiga man , Drisht kavi, Khari Khari and other Posts 22 to 30 June 2020

मध्यम वर्गीय - दो कौड़ी की औकात है तेरी
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मध्यम वर्ग झुनझुना बजाओ - तुम इसी लायक हो कमीनो, मेहनत करो, टैक्स भरो और घण्टा बजाओ
इस धन्यवाद और नमन की माला बनाकर गले में पहन लो और जुलूस निकालो अपना
याद आते है अपनी लॉ की कक्षा के वे छात्र जो डेढ़ दो लाख की बाइक पर आते है, एक्टिवा चलाते है, रोज पार्टियां करते है - हजार डेढ़ हजार यूँही उड़ा देते है और स्कॉलरशिप लेते है - अल्पसंख्यक, दलित और पिछड़े होने के नाते, मुफ्त की किताबें, रजिस्टर - पेन लेते है और बेच देते है सबकुछ और हम मध्यम वर्गीय जेब से रुपया लगाकर किताबें खरीदे, फीस भरें और चुपचाप भी रहें - क्योकि मध्यम वर्गीय है इस देश मे सिवाय जूते खाने के कुछ और है ही नही
बोलों मत - सब सहो और समर्पण करते रहो, जिन लोगों को सड़कों पर पैदल चलते देख सहानुभूति जन्मी थी वे लोग एक माह भी नही हुआ और ट्रेन और वॉल्वो में बैठकर पुनः मजदूरी पर जाने लगे हैं - सही है कि सरकार कुछ नही कर पा रही तो मजदूरी करना पड़ेगी, गांव में नही मिलेगी पर इस मध्यमवर्ग को तो आप चूतिया समझकर लॉक डाउन के नाम पर मार डाला और जिनकी नौकरियां सुरक्षित रही उनकी तनख्वाह 70 % तक काट ली
क्या यह राशन सबको नही दिया जा सकता, क्या बिजली के बिल नवम्बर तक माफ़ नही किये जा सकते, क्या स्थानीय निकायों के बिल मसलन पानी, हाउस टैक्स माफ़ नही किया जा सकता , क्या पेट्रोल डीज़ल सस्ता नही किया जा सकता, क्या 6 गैस की टँकीया नही दी जा सकती निशुल्क, गरीबों को सब दे दो 7- 8 बच्चों की डिलीवरी के लिए 108, 14000/- मातृत्व वंदन योजना, गैस रिफिल, राशन, पेंशन, मनरेगा, ऋण, लोनमाफ़ी से लेकर, उपर से दलित हो तो पूछो ही मत ऐसे समय मे सोने में सुहागा है
सब दारू के ठेके खुले है , नवम्बर तक खाने की चिंता नही है, एनजीओ और मध्यमवर्गीय दया करके सब्जी दूध दे देंगे, पोषण कुपोषण का चक्कर है ही नही, खाते में नगद आ ही जाएंगे - बस दारू पियो और ऐश करो और साले मध्यम वर्गीय तुम रिस्क लेकर नौकरी करो, 70 % कम तनख्वाह लो, दान करो, दया दिखाओ - ढोल वाले से लेकर शनि महाराज तक के लिए -काम वाली बाई को भी तनख्वाह दो भले वो चार माह से न आ रही हो - मरो, पर देश हित में काम करो - क्योकि इन 80 करोड़ गरीब लोगों को पालना सरकार की नही - तुम्हारी जिम्मेदारी है, ये सरकार नामक हरामखोर विधायक सांसद खरीदेंगे और महामारी बढ़ाएंगे
उच्च वर्ग को कोई फर्क नही पड़ रहा - ज्यादा कसोगे तो वो तुम्हारा नाड़ा खोलकर रुपया लेकर भाग जाएगा विदेश और तुम बजाते रहना घण्टा - वो चंदा भी देगा तुम जैसे भिखारियों को और अपने इशारों पर भी नचायेगा, उखाड़ लेना जो उखाड़ना हो उसका
कुल मिलाकर इस देश के मध्यम वर्ग को तुमने विशुद्ध बेवकूफ समझ रखा हैं - गलती तुम्हारी नही है - यह वर्ग है ही कायर, दब्बू और घोंचू जो थाली घण्टा बजाता है और तुम्हारे जयकारे - किसी दिन फंसना पर यह भी नही होगा क्योंकि ये लोग फट्टू है और मूर्ख है इनकी औकात ही यह है कि दस जूते खाते है और एक भी नही गिनते है और मुस्कुराकर खड़े है पलक पाँवड़े बिछाकर
डूब मरो रे - डूब मरो , तुमसे बड़ा बेवकूफ कोई नही मध्यम वर्गीय जाति वालों
जो बात एक दो कौड़ी का बाबू कह सकता था, एक प्रेस विज्ञप्ति से बताया जा सकता था वह बताने के लिए एक प्रधान मंत्री पूरे देश के 138 करोड़ लोगों का समय बर्बाद कर देता है यानी सरासर बेवकूफ बनाता है और 138 x 17 मिनिट की इस बेवकूफी का खर्च भी तुम्हारी ही खाल उधेड़ कर लिया जाएगा मध्यम वर्गीय - समझे या नही
चल भाग यहाँ से - काम कर बेवकूफ
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"आषाढ़ के बादलों का रँग हर पल बदलता है और इन्हें देखकर जीवन की सच्चाई मालूम पड़ती है "
"हर तरफ देखो और महसूस करो सिर्फ रँग ही नही आसमान आकृतियों से भी घिरा है जो हर पल हर बादल को पूर्णता दे रहीं है और यही बदलना, नए आकार में ढल जाना ही जीवन का सच्चा सार है "
"आषाढ़ - बादलों के बीच रँग बिरँगे सपनों के बनने बिगड़ने का भी पर्याय है "
"बीतते जा रहे इस आषाढ़ का यूँ जीवन में फिर से एक बार घट जाना ही उमस के बीच मदमस्त सावन के सेरों का आगमन है - जब अनंत इच्छाओं और उमंगों के झूले पींगे बढ़ाते हुए किसी पीपल, बरगद या महुआ के पेड़ तले प्रेम के नए प्रतिमान गढ़ने फिर से बाँधे जाएंगे "
" सब छोड़ो और इन दृश्यों को देखकर मोहित मत हो जाओ - आसमान के इन रंगों से ही गुजरकर ही लालिमा लिए सफल भोर आयेगी और हम इन स्वप्नों को पूर्ण करेंगे "
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कवि आज थाने में बैठा था और थानेदार से जिद कर रहा था कि आई टी एक्ट में उसकी रिपोर्ट लिखी जाए और उस हरामखोर को ट्रेस कर गिरफ्तार किया जाये जिसने उसे " रत्नदीप हेयर सैलून " के पेज को लाइक करने का निमंत्रण भेजा - अब मैं क्या सैलून के पेज लाइक करूँगा
जब कवि ने पेज खोला तो उसके सभी लाइव वीडियो वहाँ शेयर किए गए थे, सब पर कैप्शन था
"आपकी बारी आने तक आप इन कविताओं से अपना मनोरंजन करें, हेडफोन लगाएं अनिवार्य रूप से, ये कविताएँ और इस कवि को सब नही झेल सकते "
यह सब सुनकर थानेदार बोला - " यहाँ भी बड़ी एलईडी पर लगवा दें , बहुत लोग एफआईआर के समय घण्टों बैठे रहते है - दे दीजिए पेन ड्राइव में मोहर्रिर को - सौ डेढ़ सौ कविता पाठ , न्यूज चैनल्स सुनकर पक गए है, साला कुछ तो मनोरंजन हो ड्यूटी पर "
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सीजेआई का सड़क पर आना और बेहद आम आदमी की तरह बाइक पर देश के होनहार युवा के साथ सवार होना दर्शाता हैं कि वे कितने सहज, दिलदार और साधारण व्यक्तित्व है - और फालतू का मुद्दा क्या बनाना
एक न्यायाधीश क्या अपने परिचित विधायक और सत्तासीन पार्टी के नेता के लड़के के साथ एक राउंड नही ले सकता वो भी हिन्दू राष्ट्र में और नागपुर में जहां सोने की सड़कें है पूज्यनीय नितिन गडकरी के कारण - मतलब हद करते है सोशल मीडिया पर, पेले ही बोला था बाइक के शौकीन है बोबडे साहब और फिर उनका निजता का अधिकार नही क्या
ऐसे ही लोगों की देश को जरूरत है
ई नागपुर है बचवा और इहाँ से देस चलत है सन्तरा खिलाई के 😀🤣😀

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देश कोरोना और चीनी समस्या से जूझ रहा है
कमाल यह है कि भाजपा और सरकार राजीव गांधी फाउंडेशन को दिए चंदे की बात कर रहें है जो इनकी मानसिक दिवालियेपन का सबूत है मतलब बेवकूफी की हद है
काँग्रेस जो तथाकथित विपक्ष है , गंवारों के समान घटिया बात करके आरोप लगा रही है, बाकी पूरा विपक्ष एकदम गायब है, लग रहा कि मोदी और राहुल के अलावा कोई है ही नही, देश का मीडिया भी समस्याओं को सुलझाने के बजाय मुद्दों को लटकाना चाहता है - पूरी ब्यूरोक्रेसी जो संविधान की शपथ लेती है और लोकसेवक होने को बाध्य है वो सरकारों को उनके काम सीखाने के बजाय उनके कदमों में बिछ गई है और रोज गिरगिट बनी पड़ी है और न्यायपालिका - उसका तो पूछो ही मत - न्याय प्रमुख लौंडे लपाड़ो के साथ बाइक पर घूम रहा है - उसमें भी दिक्कत नही पर किसकी औलाद है, आपराधिक पृष्ठभूमि के लोगों के साथ यह गलबहियाँ शोभा देता है क्या उन्हें Precedence एक शब्द होता है कानून में - क्या स्थापित कर जाएंगे ये सज्जन
अजीब देश है लोग मरने की कगार पर है, आक्रमण हर स्तर पर है - आर्थिक, सामाजिक और व्यवस्थागत स्तर पर हर तरफ से और ये नालायक लोग मूल मुद्दों पर ध्यान देने के बजाय ध्यान भटकाने का काम कर रहें हैं
बेशर्म लोकतंत्र में जनता को ही आगे आना होगा और अपने मुद्दे उठाना होंगे वरना ये कंगाल, त्रस्त और भूखे लोगों को फालतू की उजबकी हरकतो में उलझाकर मार डालेंगे
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" आषाढ़ की बारिश का कोई ठिकाना नही कब बरसे, कब रुक जायें और कब अल्हड़ बनकर निकल पड़े, असल में ये नौतपा की अग्नि से जन्मी और सूखी धरती के प्यासे मन को सिर्फ़ भिगोने का उपक्रम करती है, ज़मीन गीली हो जाये - ताकि बीज बोने के बाद नवांकुर उग आये, हरियाली की चादर बिछती सी नज़र आये और ... "
" तो क्या आषाढ़ की बारिश का भीगने से कोई सम्बंध नही.."
" नही - बिल्कुल नही, यह तो सिर्फ तपते ज़ख्मों पर हल्का गीला सा फोहा रखने आई है कि जलन कम हो - इससे घाव ना भरते और ना मन गीला होता , उसके लिए तो अभी और उमस सहना होगी "
बारिश जीवन का सुनहला स्वप्न है
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शाम को देसी का एक पाव पीकर लाइव पर बैठ गया कवि - बोला
"साले यूँ तो कभी मेरी कविता लाइक नही करते, कभी मेरी वाल पर झाँकते नही, कभी मेसेज बॉक्स में जवाब नही देते, और ये दो कौड़ी की कवयित्रियाँ मेरे मेसेज बॉक्स के संदेशों का स्क्रीन शॉट पब्लिक कर कहती है कि मैं अश्लील बात करता हूँ "
एक घूँट लेकर फिर बोला "अब सालों को पाठक और श्रोता नही मिल रहे तो मेरे इनबॉक्स में रोज घुस घुसकर लाइव के इनवाइट भेज रहें है"
एक पटियाला फिर बनाया, चाट मसाला लगाकर आधा अंडा मुंह में दबाया और फिर बीज वक्तव्य शुरू हुआ
"साली खुद तो खुद , अपने उजड़े चमन पति, लूँगाड़े प्रेमियों, पोपले मुंह के हक़ले बाप और लकवा ग्रस्त ससुर के लाइव के लिए भी बुला रही है - मेरा तो बाप नही जाएगा सुनने और सुन लो बै कवियों - बहुत बड़े वाले हो ना तुम ना - तो दस श्रोता आधे घँटे तो क्या दस मिनिट भी रिटेन करवाकर दिखा दो तुम्हारे पाठ में - फेसबुक छोड़ दूँगा और अंग्रेजी पिलाऊंगा "
"ओये अंजू की माँ, मेरी धर्म की बेटर हॉफ - सिरीमती गीता देवी कहाँ मर गई, एक प्लेट पकौड़ा और तल, एक आमलेट बना और ककड़ी काट
आज बारिश में कविराज का लाइव रौद्र रूप महाँकाल को मात दे रहा था पाव के बाद अददा रखा था आले में
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स्कूल्स महाविद्यालय और विश्व विद्यालय ऑनलाइन कक्षाओं के लिए रेडियो का उपयोग क्यों नही करते - यह सुलभ भी है सबके लिए और मुहल्ले के दस पांच बच्चे इकठ्ठे बैठकर सुन पढ़ सकते है
रेडियो स्टेशन से समय खरीदे, या अपने कम्युनिटी रेडियो बनाएं - आज नही तो कल ये बनाना ही पड़ेंगे फिर आज क्यों नही, बड़े बड़े नामी गिरामी स्कूल्स खोल सकते है बाकी सरकारी स्कूल के लिए सरकार पूर्व की तरह प्रसारण करें और विवि के लिए AVRC / EMRC या दूरदर्शन के स्थानीय केंद्र प्रसारित करें - क्यो बच्चों की आँखें फोड़कर उन्हें गिल्ट फील करवाना है
ये सभी संस्थाएं तब तक निजी एफएम रेडियो से प्रसारण करें
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मित्र को पता नही था कि उसके भी भक्त हेंगे जबकि सबको मालूम है कि मोई जी के अलावा बड़े कवि के भी भक्त होते हेंगे
भक्त कवि ने इस इष्ट से आग्रह किया कि आज रात 1145 पर वो लाइव आएगा और आपको सुनना पड़ेगा
मित्र भोला था, बोला "है बालक , इत्ती रात लाइव मत करो, पर भक्त कवि माना ही नही, रात 1130 पे फोन कर इष्ट को जगाया और ठीक 1145 पर अकेले मित्र को लाइव पर देखकर बोला
"अपने श्रद्धेय कवि, इष्ट , प्रातः स्मरणीय पंडित, प्रोफेसर और डाक्टर च चो चे के चरणों मे वंदन कर अपना कविता पाठ शुरू करता हूँ "....
इस तरह रात पौने दो बजे तक भक्त कवि इष्ट कवि को पकाता रहा, भाभी ने मच्छर अगरबत्ती जलाई , हिट छींटा, नीम की पत्तियों का धुआँ किया - फिर भी ना गया भक्त कवि
आखिर अगले दिन सुबु दस बजे उठा मेरा मित्र और थाने में एफआईआर करवाई भादवि 66 ए /आई टी एक्ट के तहत भक्त कवि के ख़िलाफ़ और घर आकर लिखा अमृत वचन
" ना इष्ट बनो - न बनाओ - मनुष्य के रूप में कवि बने रहो - यही जीवन का अंतिम सच है "
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फिर कविराज ने नई उभरती कवयित्री को फोन पर समझाया कि "फेमस होने के भोत तरीके हेंगे - हिंदी जगत में, मड - मक - मल- मज जैसों को पकड़कर फॉलो करो - कभी गाली दो इन्हें और कभी मुक्तिबोध निराला से बड़ा बता दो - बस हो गया "
जो इनके दुश्मन हो उनकी गैंग में शामिल हो जाओ और माफियाओं के चरण रज लो रोज 4 बार दिन में - ये HCQ से ज्यादा असरकारी है
रोज एक किसी की कविता को यहाँ चेंपो - उसे टैग करो और आलोचना या जमकर तारीफ करो
वेब पोर्टल वालों को फांसों - वे दिन में 10 कविता लगा देंगे तुम्हारी
रोज जियो के फ्री नम्बर से 10 कवियों को फोन लगाओ- महिलाओं को नही, उनकी गैंग लीडर खतरनाक है बहुत - ट्रोल में निपटा देंगी तुम्हे
हर अलते - भलते वाट्सएप ग्रुप में जुड़कर देर रात तक ठिठोली करो और एडमिन को दस कविताएँ भेजो - कभी तो रँग बिरँगा पोस्टर बनाएगा तुम्हारी कविता का - सरकारी दफ्तर में करते ही क्या है ये बाबू टाईप कवि
और रोज गूगल से नई - पुरानी किताबो के कव्हर कॉपी कर यहाँ डालो और कहो कि पढ़ रही हूँ आज या खत्म की रात तीन बजे -
बस धोया भिगोया और हो गया
युवा कवियों पर नजर मत डालना - खा जाएंगे, साले जाति, सामंतवाद, आरक्षण, विवि की राजनीति, शोध गाइड, विवि या महाविद्यालय में नौकरी की चाटुकारिता और फालतू की बकलोली करते है - वहां बामन - दलित की लड़ाई पहले से है
कुछ बूढ़ी साहित्यिक किस्म की औरतों और रिटायर्ड लोगों को भी पुचकारो, वे दिन भर यही रहते है और हरेक की वाल पर हाजिर होते है - बिन बुलाए मेहमान की तरह लंबे कमेंट करने को
एक साल में युवा पुरस्कार मिल जायेंगे कुछ और किताब भी आयेगी - कुछ प्रकाशक नरम दिल भी है, ससुरे जोड़ जाड़कर कविता भी लिखते है - बस उनकी तारीफ करती रहो
अब फोन रखता हूँ मुझे इस वर्ष ज्ञानपीठ मिलने वाले कवि की सब्जी लेने जाना है, शाम को जब 'च श' का कुत्ता घूमाकर और 'प व' का डेरी से दूध लेकर आऊंगा - तब फुर्सत से बातें होंगी तब तक के लिए
गुड़ दिवस सॉरी क्या कहते है गुड़ डे
***
सब करके देख लिया फिर अंत में एक पब्लिक ग्रुप बनाया कविराज ने और सबको प्यार भरी मनुहार और न्यौते भी भेजे - ना किसी ने ज्वाइन किया और ना किसी ने लाइव सुनने या आने की हामी भरी
थक हारकर कवि ने फिर अपनी वाल खोद दी, अब मित्र सूची में 12 रिश्तेदार, 17 दोस्त जिनमें मुहल्ले के, दूधवाला, इस्त्री वाला, पानवाला, रिचार्ज वाला और अपने जल विभाग के मित्र और 3 जानने वाले है दूर के [ बॉस के 2 साले और जीजा ] , पत्नी भी नही यहाँ तक कि उस लिस्ट में
और कसम से इनमें कोई कवि नही और कवयित्री तो एक भी नही, कव्हर पर बुद्ध है और प्रोफ़ाइल पिक में गीता का अनमोल वचन -
"तुमने ऐसा क्या लिखा जो साथ जाएगा"
***
देश में एक राष्ट्रपति है जिसका खर्च, बंगला, गाड़ी और घोड़ा पालना मतलब सफेद हाथी से भी ज़्यादा है
किसी ने पिछले 4- 5 - 6 वर्षों में देखा क्या कि संविधान के हिसाब से देश का प्रथम नागरिक हिल डुल भी रहा है, कुछ कर रहा है
और यह एक नही - कई ऐसे पद है देश मे - काहे पाल रहे है हम, संविधानिक मजबूरी है तो संविधानिक कर्तव्य नही क्या
एक निर्णय ना ले - ना अपनी उपस्थिति दर्ज करवाये - ऐसे पद को संजोकर रखने में क्या है
पूछ रहा हूँ
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शर्त लगा लो
रामदेव को आयुष विभाग का बाप भी अनुमति देगा और एक हफ्ते के भीतर ही यह दवा हम आप खाने लगेंगे
रामदेव जैसे तिकडमी व्यवसायी सब कुछ कर सकता है - 3 दिन में 67% और 7 दिन में 100% कोरोना ठीक कर सकता है तो बाकी का क्या
जिस आदमी की दुकान का उदघाटन करने प्रधान मंत्री केदारनाथ से होकर जाएं उसकी दवा नही बिकेगी तो क्या गोबर बिकेगा
जिस रामदेव की पत्रकार वार्ता और उसमें क्या घोषणा होगी उसकी जानकारी सरकार को थी और सरकार रोक नही पाई इस वार्ता को तो ये फर्जी नाटक क्यों कर रही सरकार
रामदेव जैसे आदमी को गिरफ़्तार अभी नही किया गया इसका एक अर्थ यह है कि ड्रग्स और दवाओं का धंधा कितना भद्दा और घटिया है
अगर हिम्मत हो तो पहले बालकृष्ण और रामदेव को गिरफ़्तार करें फिर कोई बात करें - कोरोना के पीछे और इसके बहाने क्या क्या किस किसके हित साधे जा रहें है इधर बिल गेट्स मिरिंडा है उधर रामदेव और बाकी सब है ही - कुल मिलाकर मुसीबत में है तो आम आदमी जो गिनीपिग बन गया है इन मुनाफाखोरों के पीछे
इस सब मूर्खता में सरकार और आयुष विभाग ने उसकी फर्जी दवा का मुफ्त में प्रचार कर दिया और व्यवसायिक हित साध दिए , बाय द वे बालकृष्ण के फर्जी पासपोर्ट , नेपाल निवासी और 40 मिलावटी दवाओं के केस का क्या हुआ - बहुत बेवकूफ बनाया दोनो ने फू फां करके देश विदेश में
***
एक दिन एक ज्ञानी और सद्पुरुष ने मुझे बताया और समझाया डेढ़ घँटे तक कि कहानी और कविता क्या होती है और समाज परिवर्तन में इनकी क्या भूमिका है, आप लोगों की भाषा खराब है और समझ तो बिल्कुल ही नही है
मैं डेढ़ घँटे सुनता रहा फिर बोला आपने कुछ लिखा है क्या कभी
तो बोला जी , मैं यहां प्रकाशन गृह में बाबू हूँ और सबको चिठ्ठी पत्री भेजता हूँ, हिसाब किताब करता हूँ और जो लोग हमारे लिये लिखते है उनके घर जाकर लिखा हुआ लाता हूँ , दफ्तर में किताबें गिनता हूँ , स्टॉक मेंटेन करता हूँ , अनुवादकों को ढूंढकर उनसे एग्रीमेंट बनवाता हूँ,
आप भी आईये कभी बढ़िया चाय पिलाता हूँ नुक्कड़ की
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कोरोगोबोनील
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आप सबको मालूम है गर्मी भोत थी, सो मैंने गोबर और मिट्टी को गौ मूत्र में घोल के काली मिर्ची, लौंग, अदरख, तुलसी, सेंधा नमक, काला नमक, टाटा नमक, सक्कर, शहद, सफ़ेद मूसली और कुछ - कुछ मिलाकर भोत बढ़िया छोटी छोटी बड़ी डाली थी - एकदम मूंग की बड़ी की तरह, और उन सबको भोत बड़े पिलास्टिक पे - गच्ची पे सुखाने कूँ रखी थी - देश की माटी की परत चढ़ - चढ़ कर जे मोटी हो गई है जे बड़ी - एकदम कंचे के माफ़िक
अब्बी सूख गई हेगी - सब एकदम मस्त हो गई है , मैंने खुद ट्रायल किया हेगा मुहल्ले में
अब पैकेट बना रियाँ हूँ भोत सस्ती है - ₹ 800/- में एक महीने भर की है 30x2= 60
आर्डर करें - लिंक दे रियाँ हूँ कमेंट बॉक्स में
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पूरा मुहल्ला रात को दो बजे इकठ्ठा हो गया जब कविराज की पत्नी की भयानक कराहने, चिल्लाने की और दहाड़े मारकर रोने की आवाज सुनी सबने तो
वर्मा जी ने धीरे से हिम्मत की भीड़ में - कविराज की श्रीमती से पूछने कि - " भाभीजी हुआ क्या , कोई चोर आया क्या "
जमा भीड़ को अपने पक्ष में देखकर भाभीजी पहले तो दहाड़े मारकर फिर से पाँच मिनिट रोई, फिर चिल्लाकर बोली डेढ़ बजे से ये पूछ रहें है -
" आवाज आ रही है, आवाज आ रही है, पता नही क्या हो गया, बार - बार चश्मा ठीक करते हैं, बाल सँवारते है ...आठ दिन हो गए अब "
भीड़ खिसकने लगी थी और कविराज बड़बड़ाये जा रहें थे - बरामदे में खड़े, "आवाज़ आ रही है ........."
***
यादों की पोटली को सहेजकर रखिये - एक मुस्कान, एक संवाद या एक मुलाकात की पोटली जीवन को जीना सीखा सकती है - यह सूख गई या भीग गई तो सब बह जाएगा
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ग्रहण का शीदा दे दो
सफाई वाली जोर जोर से आवाज लगा रही है - झाँककर देखा तो उसके दोनो बच्चे भी थे साथ मे , दोनो के हाथ मे दो - दो बड़ी बोरियां भरी हुई , कचरे की गाड़ी पर आज अलग बड़ी बोरी थी भरी भरी सी
मैंने कहा - इन बच्चों को क्यो घसीट रही हो, ये पढ़ रहे है तो पढ़ने दो, ग्रहण तो अच्छा होता है और तुम खुद बारहवीं पास हो फिर ये क्यों
बोली - भैया, ग्रहण आदि कुछ नही होता, मुझे भी पता है और बच्चों को भी, पर क्या है ना - हमारी जाति में आज के दिन यानी ग्रहण के दूसरे दिन "ग्रहण का अनाज" मांगने की परंपरा है और इस बहाने एकाध - दो माह का राशन मिल जाता है, नगदी मिल जाते है ₹ 600-700 , बैठे बैठे का फायदा है
बच्चे देख और सुन रहें थे हमारा संवाद, मैंने बड़े वाले से पूछा - " ग्यारहवीं में क्या विषय है तेरा" तो बोला - साइंस मैथ्स
ब्राह्मणों के फैलाये इस जाल और अंधविश्वास में कब तक जीते रहेंगे कि ग्रहण अशुभ होता है और सब फेंक देना चाहिये , कुछ ब्राह्मण खुद भी शीदा वसूलते है - सब बेहद दुखी करने वाला है - घोर अवैज्ञानिक
सूर्य ग्रहण कल ही नही सदियों से लगा है हम सब पर - जातिगत फायदे कोई छोड़ना नही चाहता, कोई भी हो - बस गाली एक वर्ग को देंगे सब, शिक्षित कर दो दीक्षित कर दो, पर फायदे नुकसान के लिए सबसे बड़ी आड़ जाति है जो जाती नही भले ही दुनिया बदल जाये
[ बच्चों को भी जानते बुझते हुए उसी कीचड़ में धकेलेंगे हम तो जबकि निजी विद्यालयों में पढ़ रहे हैं - कृपया ज्ञान ना दें - हक़ीक़तें बहुत कड़वी है और कोई समाज भी मुक्त नही होना चाहता - परम्परा, जाति और संस्कृति से तो - क्या उम्मीद करें - सबको सब मालूम है पर जहां फायदा है, जहां किसी को गाली देना है, जहां नीचे रहकर लाभ लेना हो किसी को भी सब करने को तैयार है - बस बोलो मत किसी को ]

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