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Posts from 13 to 26 Feb 2020 including sametate hue yade

देवास में सीवरेज की लाइन खोदते समय मिट्टी धंसने से एक मजदूर की मौत हुई
कमाल यह है कि विधायक और स्थानीय भाजपा के नेता आयुक्त को दोषी मानते है
मतलब महापौर और तत्कालीन भाजपा की कार्य परिषद ने ठेका दिया, आयुक्त तब थी भी नही - फिर सब लोगों ने जमकर कमीशन खाया, पूरा शहर बर्बाद करके रख दिया, ठेकेदार भाग गया, सीटी इंजीनियर से लेकर तत्कालीन कमिश्नर अपना हिस्सा लेकर चंपत हो गए और शहर आज भी रो रहा है, आज तक सेनिटेशन नही सुधरा ना बड़ा ट्रीटमेंट प्लांट बना
अभी भी शहर में रोज दुर्घटनाएं हो रही है और ये लोग अपनी निजी और पुरानी ज्यादती दुश्मनी के कारण आयुक्त पर ग़लत इल्जाम लगा रहें है - एक महिला होकर महिला के खिलाफ वह बेसिर पैर के इल्जाम, कभी महापौर से भी आप पूछ लेती महोदया कि पांच साल तक करोड़ो रूपया जो बर्बाद हुआ और शहर को जाते जाते कब्रिस्तान बनाकर गए उन्होंने क्या किया
और नगर निगम छोड़िए, आपके दूसरे कार्यकाल में क्या उपलब्धियां है जरा बता दीजिये ठोस - शहरी और ग्रामीण देवास की, देवास की किस्मत ही खराब है और लोग भी मूर्ख है जो सामंतवाद और राजशाही के चरणों मे पड़कर अपना शहर और वर्तमान भविष्य बर्बाद कर बैठे है
देवास की हालत पिछले 35 वर्षों में बदली नही है, चंद लोगों ने पूरे शहर में अवैध अतिक्रमण कर जगह, जमीन, सम्पत्ति, टेंडर, ठेके, राशन की दुकानें और सब हड़प लिया है - विकास के नाम पर कुछ नही हुआ, आज भी 75% देवास नौकरी धंधे के लिए इंदौर या महानगरों पर निर्भर है
बेहतर हो कि स्थानीय लोग नेता और जिम्मेदार लोग अगले चुनावों में भाजपा को या कांग्रेस को वोट देने से पहले सोचे
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वो वल्लभ भाई पटेल की मूर्ति आज उदास थी पूछ रही थी कि ट्रम्प आया नही मिलने और हिन्दू राष्ट्र में आगरा की मजार पर चला गया वो भी एक औरत की ..... छि, छि, छि - काहे करोड़ो रूपये मुझपर खर्च किये
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भारतीय संस्कृति, परम्परा, संगीत, नृत्य, लेखन, नाटक, अभिनय, पत्रकारिता, साहित्य, या यूं कहें कि रंजकता के सभी प्रकारों का जितना उपयोग कर यश, कीर्ति और धन बनाने में कुछ चतुर युवाओं ने किया है उसकी मिसाल ना इतिहास में मिलेगी ना भविष्य में
अभी ईशा फाउंडेशन में कबीर कैफ़े के भजन देखें और अब कार्तिक के गीत सुन रहा हूँ तो अपने युवा भारत के इन अनूठे शिल्पकारों पर गर्व भी हो रहा है और लाखों की सँख्या में वहां उपस्थित जनसमुदाय की बेबसी और उनकी सक्रियता से ईर्ष्या भी हो रही है
कहना बहुत कुछ है पर बहुत संक्षेप में कह रहा हूँ - मेरे आसपास ही एक बड़ा समूह है जो अति महत्वकांक्षी होने के साथ साथ लालची भी है और कुछ भी करने को तैयार है - यहाँ तक कि रचनात्मक क्षेत्र और अपने बाप दादा की विरासत को भी बेचकर खड़े है प्रसिद्धि की चादर ओढ़े हुए
अफसोस उन प्रौढ़ और बूढ़ों पर होता है जो बहुत थोड़ा पाकर फूलकर कुप्पा हो गये और उन्हीं की क्यारियों से निकले बीज निहायत शातिराना ढंग से एकदम आगे बढ़ गए
कहना बहुत कुछ है पर चुप रहूँगा, भीड़ के अपने समीकरण बन गए है और यही कबीर पर थिरकते नाचते लोग साम्प्रदायिक हो जाते है - तब दुख ज्यादा हो जाते है या अगली सुबह सनाढ्य - कान्यकुब्ज - श्रीगौड़ ब्राह्मण बनकर अपनी असलियत पर आ जाते है
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सबसे ज़्यादा सम्पादकगण ही साम्प्रदायिक है और दलाल है , मीडिया मालिक तो सिर्फ खर्चापानी देखते है और मुनाफा - पर जनता को गुमराह करने का और देश का सत्यानाश करने का और समाज में विद्वैष बढ़ाने का काम सम्पादक कर रहें है
अपने अख़बार, अपने चैनल्स या अपनी न्यूज फीड ही देख लीजिए इनकी असलियत सामने आ जायेगी
ये सिर्फ गुलाम ही नही बल्कि डरपोक और मीडिया के नाम पर कलंक है जो युवा मेधावी और कुछ कर गुजरने वाले पत्रकारों का दमन कर अपना निजी हित साध रहें है इस समय में
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समेटते हुए बुढ़ापे में यादें - 2
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सन 1998 एकलव्य छोड़कर मैंने देवास के कान्वेंट में अंग्रेजी पढ़ाने का जिम्मा लिया और खूब लगन से पढ़ाई भाषा और अनुभवों की शिक्षा
किशोरावस्था के बच्चे थे और मजेदार दुनिया थी, सीबीएसई में नया पाठ्यक्रम आया था - जिसमे The Highway Man जैसी कविताओं से लेकर रोचक गतिविधियां करने की छूट थी - मसलन ब्रोशर्स, पोस्टर, बैनर, पैम्फ्लेट्स बनाना, रिकॉर्ड सुनकर कुछ गतिविधियां, उच्चारण के अभ्यास और शब्दकोश बढ़ाने को लेकर ढेरो काम थे स्टाफ रूम में साथी अध्यापक कहते -क्यों करवा रहें ये सब, पर बच्चे सीख रहे थे यह तसल्ली थी, सो मैं भी लगा रहता इनके साथ मानो अपनी किशोरावस्था जी रहा था दोबारा और फिर हिंदी मीडियम से पढ़े होने की कुंठा मिटाना थी और अपने आपको साबित करना था कि अंग्रेजी हव्वा नही सिर्फ एक भाषा है जो कोई भी सीखकर सीखा सकता है
आज जब वो ही बच्चे मिलते है जो देश विदेश में है, डाक्टर - इंजीनियर से लेकर मीडिया संस्थानों में तो सब कहते है कि वो सब बहुत लाभप्रद था और उससे हमने प्रश्न पूछना, खुलापन, सहजता और नया नवाचार करने का सबक एवं जीवन का फ़लसफ़ा कक्षा में ही सीखा था जो आज काम आ रहा है
21 साल बाद आज दूर दराज़ से ये बच्चे मिलने घर आये तो जीवन में और कोई खुशी हो सकती है भला 1985 से 89 तक और फिर 1998 से 2003 तक के कालांश में विधिवत पढ़ाया, कई स्कूल्स में प्राचार्य रहा और अब उन बीजों को देखता हूँ वट वृक्ष के रूप में तो लगता है संसार में मुझसे अमीर कोई नही होगा
ऐसा ही संयोग आज आया जब 1998 के कान्वेंट में पढ़ाये तीन मित्र जो औलादों के समान है - अचानक से मिलने आ गए
Jerin Koshy आजकल दुबई में है जेरिन की माताजी भी कान्वेंट में हमारी साथी शिक्षिका थी जो अब केरल में जाकर बस गई है , जेरिन की खूबसूरत बिटिया है , जेरिन वहाँ प्रोडक्शन इंजीनियर है
चेरीन जोस बहुत प्यारी गिटार बजाता था, आजकल चेन्नई में है एक बेटा है तीन साल का और वित्तीय संस्थान में अधिकारी है
सौरभ शर्मा पत्रकारिता में है, जयपुर दिल्ली में टाईम्स ऑफ इंडिया एवं अन्य अंग्रेजी अख़बारों में कई बरस पत्रकारिता कर पढ़ने का निर्णय लिया और अब गत दो वर्षों से चीन के एक विवि से पीएचडी कर रहा है, अभी जब मामला बिगड़ा तो भारत आ गया है - सौरभ ने वहाँ की विभीषिका की बात की और बताया कि यह किस बड़े पैमाने पर हुआ है और चीन के सामाजिक आर्थिक परिदृश्य पर क्या नकारात्मक असर पड़ा है - मूल रूप से आरंभिक उपेक्षा इसकी जिम्मेदार है
इन लाड़ले बच्चों से मिलकर बहुत अच्छा लगा और आज अपने होने की सार्थकता भी लगी, जाते समय भावुकता आखिर सामने आ ही गई - ख़ुश रहो बच्चों और यूँही तरक्की करते रहो कभी भी मौका मिलें जरूर मिलने चले आना - ये घर तुम्हारा ही है
अपने एमए के दिनों में किसी को लिखकर दिया था
" I never loose certainty , because, I know, in the background there are arms open to receive me "
अब वो सब सार्थक होते दिखता है
Image may contain: 4 people, including Jerin Koshy, Prakash Kant and Cherin Jose, people smiling, beard and stripes

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समेटते हुए बुढ़ापे में यादें - 1
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आज खाई खजूर के गुड़ की खीर जो कोलकाता से आया था, बड़े दिनों से बैन को कह रहा था कि मुझे भी चाहिये खजूर का गुड़, दिल्ली जाता था तो चित्तरंजन पार्क से लेकर आता था, वहाँ मिष्ठी भी खाता था खूब पर अब सब छूट गया है
बैन पिछले साल भी लाई थी पर मैं लेने नही जा पाया, अबकी बार तो मैं ताक ही रहा था कि बैन कोलकाता से आये और मैं पहुँचूँ और आज मौका आ ही गया
चैताली हमारी बीएससी 1984- 86 की सहपाठीन रही है और अब मप्र में आखिरी साल है पतिदेव रिटायर्ड हो रहें है रेलवे से और स्थाई कोलकाता बसने जा रहें है , स्टेशन के पास का सबसे खूबसूरत घर छूट जाएगा जिसे बैन ने अपनी मेहनत और खून पानी से सींचकर हरा भरा बनाया है - आज विदाई के समय बैन की मेहनत और अब यह आशियाना छूटने का सोचकर मन द्रवित हो गया
एक किलो खजूर का गुड़ गिफ्ट मिला है - कोई मांगना मत, हां किसी को चखना हो तो
"गुड़ मांगोगे तो कुछ ना मिलेगा
घर आओगे तो खीर मिलेगी ..."

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बहुत शुक्रिया चैताली
फोटू हींचक Anuj Pandey
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जादूगर सैय्या, नागिन डांस से लेकर मोनिका ओ माय डार्लिंग और फिर बहारों फूल बरसाओ तक भयानक डीजे पर गाने, बारातों का शोर , ढोल ताशो का शोर देर रात तक चल रहा है
आसपास के मंदिरों में भागवत, भजन और दिनभर हल्ला गुल्ला चलता रहता है, गुरुबाणी का पाठ - रात एक डेढ़ बजे नींद लगती ही है कि सुबह एक साथ सात आठ मस्ज़िदों से अजान की आवाजें शुरू हो जाती है, थोड़ी देर में गाड़ी वाला आया कचरा निकाल की गाड़ियां कॉलोनी में दोपहर तक घूमती रहती है
पड़ोसियों के घरों में कबीरसिंह से लेकर पता नही किस किसके गाने, आती जाती कारों में धींगा, धींगा, धींन - चिंग अलग चलते रहते है , ढोल वाले , भिखारी, हाथी से लेकर बैल लेकर आने वाले साधुओं की कर्कश आवाज़ें, शनिवार को शनि महाराज, गुरुवार को दरवेश और बाकी रेहड़ी वाले सब्जी वाले यानी यह शोर के साम्राज्य वाला देश बन गया है
पता नही लोग इस शोर और अव्यवस्था के आदी हो गए है, बोलने से बचते है या उन्हें पता नही कि क्या करें
क्या पुलिस या जिला प्रशासन बैंड , डीजे और ढोल ताशों वालों का सामान जब्त नही कर सकते, डीजे के स्पीकर के वोल्ट निश्चित नही कर सकते - दो चार कौवे मारकर टांग दो सब ठीक हो जाएंगे, बारात निकालने की अनुमति उसका पथ और समय सीमा निर्धारित कर तगड़ा शुल्क वसूलना शुरू कर दें - सब औकात पर आ जाएंगे
यही मन्दिर और मस्ज़िदों में करें सब भोंगे निकालकर जब्त कर लें जिसको प्रार्थना या इबादत करना है वो अपनी श्रद्धा आस्था से करें
यह इधर ज़्यादा ही बढ़ गया है सब कुछ मानो कोई होड़ हो और जीतना सबको है और इसके लिए सब करने को सब तैयार है
ये देश है कि मजाक है - किसी का जूता किसी के पांव में नही, दो चार पांच गुंडे और चंद निकम्मे प्रशासक, न्यायाधीश 138 करोड़ लोगों का जीना मुहाल किये हुए है ध्वनि प्रदूषण का कोई नोटिस नही ले रहा और मानसिक स्वास्थ्य पर इसका गहरा असर पड़ रहा है चिड़चिड़ापन, ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियों से लेकर न्यूरोटिक हो रहे है लोग और भारत के संविधान के हिसाब से गरिमापूर्ण जीवन की बारह बजकर रह गई है
*निजी राय, सहमत होना आवश्यक नही - अधार्मिक पोस्ट है , ग़लत व्याख्या ना करें और ना आत्मसात करें
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