सोचा ,बहुत देर तक, फिर याद आया कि डंडे कौन लेकर घूमता है - एक पुलिस वाले , फिर गाय भैंस हाँकने वाले और तीसरे जो सुबु सुबु खेल कूद और सँस्कृति के नाम पर इकठ्ठे होते है गली मोहल्लों में
पता नही आपकी दृष्टि और अवलोकन क्षमता कहाँ तक जाती है
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श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के ट्रस्ट गठन में कमबख्त मराठी कोई नही है जबकि संघ का पूरा बौद्धिक असला, गोली बारूद का सप्लाय कढ़ी और पूरणपोली के रास्ते से ही जाता है
सोच रहा हूँ अप्लाई कर दूँ पूज्य मोई जी की अदालत में - ऐसे थोड़े ही होता है, मराठियों के घर का खाना खा लिया और मन्दिर निर्माण में हमकू रखा ईच नई
और तो और अम्बानी अडानी भी नही, मेरी चिंता ये है कि अब पईसा कां से आएगा,1992 में इकठ्ठा हुआ अरबों रुपया तो खत्म हो ग्या होगा नी भिया
अखिल भारतीय मराठी समाज क्या कर रियाँ है - मराठियों का अपमान नही सहेगा हिंदुस्तान
मालूम नी हेगा - बैसे कोई गुज्जु भी हेगा कि नी ?
🤣🤣🤣
* निजी विचार सहमत होना आवश्यक नही
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"भाइयों - बैनो" बोलने वाला चाभी का खिलौना कहाँ मिलेगा जो चौबीसों घँटे हर जगह बोल सकता है, दिन रात , घर बाहर, ऊपर नीचे - मतलब बेफालतू लगातार बोलें - असल में मेरे यहाँ फोकट के भक्त और जनता बहुत आती है, सबके नाम याद नही रहतें, इसलिए " भाईयों - बैनो " बोलने वाला गुड्डा चाहिये अर्जेन्ट में
अमेज़ॉन, मिंत्रा, फ्लिपकार्ट या और कही भी मिल नही रहा - कोई सुझाये
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अपनी रचना या कुछ भी लिखें के साथ खुद का फोटू चैंपना कितना उचित है - साथ ही गाना, वीडियो और तमाम प्रपंच आत्म मुग्धता के चस्पा करना, कोई लेखक हुआ तो क़िताब के भी फोटू दिन में पचास बार सदियों से लेकर पीढ़ियों तक लगाता रहेगा - अरे नई लिखो भाई - बोर हो गए वही देख देखकर , नई खरीदकर जिले में बंटवा देंगे पर पुरानी कब तक झिलवाओगे
जानकारी, सूचना या किसी से मिलें जुले तो ठीक पर हर कविता, नोट, कहानी, ग़ज़ल या दो लाइनों में भी अपने को बेचने की जद्दोजहद उपर से वीडियो अलग
मोदी हर जगह है हर घर में नही हर शख्स में - कैमरे को ताकता और खुद को उघाड़ता
अरे भाई रचना को आय कैचिंग बनाने के लिए अपना चेहरा क्यों दिन भर थोप रहें हो, रचना में दम होगा तो पढ़ी समझी जाएगी और ऊपर से अपेक्षा कि " देखें, शेयर करें" की जबरन मनुहार, इनबॉक्स भरा पड़ा रहता है
* निजी विचार - सहमत होना आवश्यक नही
अग्रिम माफ़ी की अपील सहित
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रिटायर्ड लोगों या रिटायर्ड मेन्ट के करीब लोगों से बात न करना ही स्वास्थ्यवर्धक होता है - इन टाईम पास के फोन आते ही काट दें - ये जीवन में खून पीने वाले नरभक्षी है
रिटायर्ड लोग अपनी खीज आप पर निकालते है और नौकरी समाप्ति के करीब पहुँचे लोग जीवन में कुछ ना कर पाने की
कल ऐसे ही एक कर्मचारी से बात हुई जो बात करने के बजाय अपनी नाकामी, जलन कुंठा की दो घँटे खीज उतारती रही - जी तो कर रहा था कि घर जाकर दो बातें सुना दूं और चार लगा आऊं - क्योंकि 40 बरस की अक्षमता और अब हर माह कुछ मिल नही रहा तो सारा गुस्सा मेरे पर उतारने लगी और मेरे स्वतंत्र काम करने और कमाने पर घटिया कमेंट्स करने लगी, मेरे साथ काम कर रहें लोगों पर जलन और गुस्सा दिख रहा था उसका
लोग भूल जाते है बात करते समय कि कोई किसी का मालिक नही है और बहुधा निजी जीवन में घुसे चले आते है, अनाप - शनाप बकते हुए, कई बार लगता है कि उम्र का लिहाज और तीस चालीस वर्षों की दोस्ती छोड़कर जूते लगायें जाये इन नामुरादों को
अरे अपनी योग्यता बढ़ाई नही, भाषा आती नही, एक वाक्य सही लिख नही सकते, बाहर जाने की हिम्मत नही, कम्प्यूटर का ज्ञान कोरा, सदैव निराशा और निंदा में रत, कौशल और दक्षता के नाम पर शून्य और उम्मीद है कि मैं काम दूँ इन्हें और हर माह लाखों कमवा दूँ - अयोग्यता का
कल से दुखी था पर आज सोचा कि मैं किसी की खीज सहन करने और संताप झेलने के लिए नही हूँ - नम्बर ब्लॉक कर दिया - टंटा ही खत्म साला, मदद करो और झेलो - ऐसे कैसे चलेगा बॉस
घर बैठो भजन पूजन करो, अपनी और अपने इष्ट को चाटो हमें क्या - हमें तुमसे कोई ना पुरस्कार लेना है और चरित्र प्रमाणपत्र - भाड़ में जाओ- अब मरोगे तो भी ना आएंगे मातम पुर्सी को - रबड़ी खायेंगे , एक ऐसी ही अशिष्ट और घमंडी लस्सी* को पिछले साल बेदखल किया था जो नाम बड़े और दर्शन खोटे थी, आज इस अड़े सड़े मौसम्बी ज्यूस को किया है डस्टबिन के हवाले
* घमंडी लस्सी इंदौर की एक प्रसिद्ध लस्सी थी - जिसकी औकात अब दो कौड़ी की भी नही है
[ बहुत मित्रों से माफ़ी इस भाषा के लिए, पर पानी सर से गुजरने पर ही इतना तल्ख होता हूँ ]
पैदल चलना राष्ट्रप्रेम की इंतिहा है
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जीतना हारना अलग बात है पर ताकतवर, प्रभावशाली, ज्ञानियों और देशभक्तों को मिलाकर सबको सड़क पर पग पग चला दिया और गली मोहल्ले में घर घर में झाँकने को मजबूर कर दिया बड़े बड़े तुर्रे खाओ को
56 इंची सरकार, केबिनेट से लेकर राज्यों के बड़बोले अपढ़ कुपढ़ मुख्य मंत्रियों को
और सभाओं में लोग मजे ले रहे वो अलग, इतना झूठ, पाखंड और वीभत्सता का प्रदर्शन - आखिर यह हिन्दू राष्ट्र है तो संस्कारवानों की औकात क्या है समझ आ रहा है - दुनिया के सामने भी मख़ौल बन गए है , ऐसे में हार गए तो तालाब, कुएँ ,बावड़ियाँ, नदियां और समुद्र कम पड़ जायेंगे
देखना दो रोज़ में पूरी नंगई से उतर कर ये लोग अपनी वाली पर आएंगे और केंचुआ कुछ नही करेगा, हकला तो है ही मौन
सबसे शर्मनाक यह है कि संविधानिक प्रधान मंत्री ने भाषा को गलीज़ स्तर से भी नीचे ला दिया है और मंत्रियों ने समाज में गुंडागर्दी के कीर्तिमान स्थापित कर इस देश के आने वाले 500 वर्ष बर्बाद कर दिए है और ये ही भुगतेंगे, इनकी ही औलादें इन्हें कोसेंगी और कल इनका नाम लेते थूकेंगी
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