26 जुलाई 2008 की ही सुबह थी भीगी हुई, अचानक सांसे उखड़ने लगी और मैं बदहवास सा आईसीयू में डाक्टर, डाक्टर चिल्लाने लगा जब तक लोग जागते, कोई मदद के लिए आता - सब कुछ खत्म हो चुका था आज शब्द भी नही है कि कुछ लिखूँ , मन भी नही है और हिम्मत भी नही माँ के लिए जीते जी कोई लिख नही पाता तो देहावसान के बाद कौन लिखेगा बस नमन , स्मृतियाँ और अपने अकेलेपन में पुनः उस सबको जीने की तमन्ना जो माँ के होते ही सम्भव था *** कवि गोष्ठी दोपहर 3 या 4 से रखने का यह बड़ा फायदा है कि 100 रुपये तक की चाय में सब निपट जाते है, आते ही कितने है, दो चार लंगर वही के होते है झाड़ू लगाने वाले तो उसका भी इलाज है - दूर किसी टपरी में चले जाओ - बस्स हो गया काम महिलाएं होने से सब बिजी रहते है चाय के दौरान और साला कोई सिगरेट भी नही उठा लेता कि पेमेंट करना पड़े रविवार को रखो तो और फायदा ज्यादातर आते ही नही और कई बार चिढकू बूढ़े - बुढ़िया आयोजक एन मौके पे आयोजन निरस्त कर ये 100 रूपये भी बचा लेते है *** पूरे समय वह शांति से कहानी कविता सुनता रहा बीच बीच में वह बोला भी, आखिर में हाल से बाहर निकलते समय पूछा कि कौन ह...
The World I See Everyday & What I Think About It...