हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए
पसीना तो अभी से आने लगा है 2018 की फरवरी ही बीत रही है, केंद्र सरकार के बने बनाये खेल के परखच्चे उड़ने लगे है । मोदी सरकार के वादों पे क्या जिये और क्या किया ये सवाल लोग उठा रहे है।
परभणी और गडचिरोली की दास्तान बहुत भयावह है। यहाँ के बहुत अंदर के गांवों के लोगों से मिलकर भयावह कहानियां सुनकर हैरान हूं।
शिक्षा, स्वास्थ्य और खेती की ही बातें भयावह है। मराठवाड़ा और विदर्भ के इलाको में दूर दूर तक फैले भ्रष्टाचार, महंगाई, राजनीति और प्रशासन के संजाल में गुम्फित किसानों की दरिद्रता , विपन्न स्थिति और दहला देने वाली कहानियां सुनकर आपको इस विशाल देश का नागरिक होने में शर्म महसूस होगी।
अच्छी बात है कि आदिवासी और दलित युवा पढ़कर आये है बहुत बारीकी से सबकुछ समझकर अपने समुदाय, जंगल और जमीन के लिए लड़ रहे है। वे भीम राव अम्बेडकर को आदर्श मानकर फुले और सावित्रीबाई का अनुसरण करते हुए सही काम कर रहे है। इनकी बातचीत और चर्चा में जो बगावती तेवर, व्यवस्था के प्रति आक्रोश और बदलाव का जज्बा नजर आता है वह स्तुत्य है।
सबसे अच्छी बात जो मुझे लगी कि कर्वे कॉलेज और टाटा सामाजिक शोध संस्थान तुलजापुर और मुम्बई कैम्पस ने इस क्षेत्र के युवाओं को समाज विज्ञान में दीक्षित करके बहुत बड़ा काम किया है। दूसरा स्थानीय एनजीओ ने इन्हें मौके उपलब्ध कराकर इनकी क्षमता का इस्तेमाल भी बेहतरीन किया है।
मुझे 3 ऐसे युवा मिलें जिन्हें 2011 मैंने तुलजापुर में पढ़ाया था जब वे टाटा के मुम्बई कैम्पस में प्रवेश के लिए तैयारी कर रहे थे। आज पी एच डी करके वे यहां जिस दम खम से लगे है और देश प्रदेश की राजनीति, संघिकरण और प्रशासन की खामियां उजागर करते है वह दर्शाता है कि शिक्षा का बदलाव से क्या सम्बन्ध है और बाबा साहब के सपनों को कैसे ये अंजाम दे रहे है। प्रोफेसर साईबाबा से लेकर गडचिरोली के नक्सलवाद पर बात करते हुए मेरी अपनी भी समझ साफ हुई है और यह स्वस्थ है। ब्राह्मणवाद को गलियाते ये लोग जातीय व्यवस्था के कुचक्र में फंसे लोगों को उबारकर मानवीय गरिमा के अनुरूप व्यवहार चाहते है जो उन्हें वर्तमान व्यवस्था में नही मिल रही है।
भाई Kailash Wankhede , अग्रज Asang Ghosh जी की कहानियां और कविताएं याद आई । काश हम लोग कभी साझा यहाँ आकर इन लोगों से, इन युवाओं से मिल सकें और कुछ सार्थक रच पाएं।
बहरहाल इन सबके लिए बहुत प्यार और दुआएं कि इनके सपने बड़े हो और सफल हो।
Satyajit Kale, Vishnu Govindwad , Akshat Krishna Ganesh Mane - मैं , संतोष मैकाले के भाई सुनील से मिला जो कल्पना का भी भाई है। तुम सबको यहाँ खूब याद किया पिछले 4 दिनों में। तुलजापुर कैम्पस के तुम सब युवा लोग आज कितना बढ़िया और प्रेरणादायी काम कर रहे हो वह सच मे महत्वपूर्ण और जरूरी है।
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हिन्दी में अश्लील लिखकर आज के युवा कवि और लड़कियों की निहायत निजी समस्याओं का सार्वजनिक प्रदर्शन कर लिखने वाली कवियित्रियों सेे हिंदी कविता का कोई भला नही होने वाला है पर अब यह फार्मूला बाजार में चल पडा है और इसी को सीढ़ी बनाकर ये लोग यश कीर्ति की पताकाएं फहराकर जीवन में इस शार्टकट से सब कुछ पा लेना चाहते है.
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मेरा सुझाव है कि एक पंचायत बुला लें नवजात शिशुओं की मामाजी के बंगले पर ताकि मामाजी उन्हें डाँट भी सकें कि मर क्यों रहें हो और घोषणा कर सकें कि मंदिर में दर्शन करने से शिशु मृत्यु दर नही बढ़ेगी और प्रदेश का नाम रोशन होगा। आप कहेंगे तो इन शिशुओं के लिए एक शिशु यात्रा भी किसी मठाधीश की अगुवाई में निकालें नर्मदा किनारे !
शायद मामाजी को याद भी नही होगा कि अपने बंगले पर कितना अरबों रुपया पंचायतों पर फूंक दिया और नतीजा क्या निकला। अपने नवरत्नों के सुझावों में मदांध होकर क्या पाया क्या खोया पर अब इस साल के अंत मे विचार करेंगे जब चुनाव से बाहर होंगे। इन्हें नर्मदा परिक्रमा कर रहें दिग्विजय सिंह को देखकर भी भय नही लगता कि सत्ता का अंत कितना भयावह होता है। नवजात बच्चों की इनके तन्त्र द्वारा की जा रही सामुहिक सोउद्देष्य हत्या को रोक नही पा रहें - अभी तक पोषाहार और पूरक आहार की कोई नीति नही बनी है। गत 15 वर्षों में आंगनवाड़ी में भ्रष्टाचार होता रहा और सरकार चुप रही - क्यों ?
मप्र में 15 सालों में कुपोषण , शिशु और मातृ मृत्यु दर की पूछो ही मत पर ना विपक्ष में कुछ दम है और सत्ता को यात्राएँ और नाटक से फुर्सत नही है। और मजेदार यह कि इन्हें अब शर्म भी नही आती
Deepak Tiwari जी, जो वरिष्ठ पत्रकार है, ने आज दो समाचारों को तुलना करते हुए सवाल उठाया है कि क्या जरूरी है ? पर मुख्यमंत्री को कोई फर्क पड़ता है क्या, आखिरी दिनों में दीनहीन बनकर समेटने में लगे है । जितना नुकसान प्रदेश और भाजपा का इस इकलौते आदमी ने किया है उतना तो कांग्रेस पूरे देश का 56 वर्षों में नही कर पाई।
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चचा जान
एक बात सुन लो और गाँठ बांध लो, अपने इस्मार्ट फोन फेंक दो समंदर में और चुपचाप अजान देते रो, तुम एक वही काम ढंग से कर सकते हो ! बोलो क्यों,
इसलिए कि इस्मार्ट फोन में बीडीओ कॉलिंग होती हेगी, चेहरे दिखते है, बीडीओ चलते है, फोटू दिखती है और जे सब बुतपरस्ती है मियाँ, तौहीन है खुदा की और इस्लाम के ख़िलाफ़ है !!!
अरे जाहिलों , एक छोटी सी बच्ची अभिनय कर रही है व्यवसायिक तौर पर और जहीन वह लड़का भी रुपयों के लिए - शोहरत के लिए जीवन का बेहतरीन अभिनय कर रहा है। कितने लोगों की मेहनत के बाद यह दो मिनिट का बीडीओ बना है खां और तुम रपट करा बैठे। अजीब अहमक हो और परले दर्जे के उजबक !!!
तुम देखें ही क्यों , गर नैन मटक्के से दिक्कत है तो, उन शेखों को कोसो और समझाओं ना जो छोटी बच्चियों को अपनी हवस बुझाने के लिए खरीद कर ले जाते है।
हद कर रहे हो , कितने पिछड़े और मूर्ख हो, तुम्हारे मजबूत संस्कारों की जड़ एक बीडीओ देखने से हिल गई, अर्थात "मन भाये और मुंडी हिलाएं"
कौन मानता है तुम्हे जे तो बताओ मियाँ, इतना भी क्या अपराध बोध और अटेंशन सीकिंग व्यवहार कि मुहब्बत पर जल भूनकर रपट लिखाने चले गए! ओये ठंड रख भई , ये देश, दुनिया मुहब्बत करने वालों से आबाद और ज़िंदा है और मंजूर नही तो जाओ दोजख में और ज़िंदा रहने दो सबको, तुम ससुरे होते कौन हो पहरेदार की भूमिका निभाने वाले ?
तुम एक रपट लिखाओगे हम हजार प्रियाओं के बीडीओ डालेंगे, तुम एक लव जिहाद पकड़ोगे हम लाख बार प्रेम करेंगे। जाहिलों, गंवारों और मूर्खों से दुनिया चलती तो हिटलर, सिकन्दर , हलाकू , औरंगजेब या सद्दाम हुसैन से लेकर जिया उल हक की मजार घूमकर आ जाओ और जगह मिलें तो वही बगल में हम मजनूँ खोदकर तुम्हे भी सुला देंगे, तशरीफ़ तो तुम्हारी बचेगी ना तब तक बैठने लायक !
याद रखना, जो भी मुहब्बत के रास्ते मे जितनी टाँग अड़ाएगा वह उतनी ही शिद्दत से मुहब्बत के पौधे रोपेगा। मैं मुतमईन हूँ कि हम मुहब्बत करने वाले तुम जैसे कमज़र्फ और जाहिलों से डरेंगे नही।
प्रिया पर मुझे गर्व है, मेरी बिटिया होती तो उससे 100 बीडीओ रोज बनवाता ताकि तुम जैसे कम अक्ल लोगों को जलभुनकर खुद किसी अरब सागर में जाकर डूब मरने के रास्ते खुलते। तुम हो या कोई भी , तुम सब मानसिक रोगी हो और खुजली के मरीज, जाओ किसी सड़क छाप नीम हकीम जैसे डाक्टर शाहनी, चोपड़ा के पास दिमागी भगन्दर और मुंह की बवासीर का इलाज करवाओ।
मुहब्बत के दुश्मन जरा होश में आ !!!
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देश मे सक्षम राष्ट्रपति या सुप्रीम कोर्ट होता तो ये सरकार एक पल में बर्खास्त हो जाती, इतनी भ्रष्ट, अविश्वसनीय और दादागिरी वाली तो काँग्रेस भी नही थी। न्याय से लेकर बैंक और लोगों की रोजी रोटी का सत्यानाश करने वाली इस सरकार को इतिहास में सबसे नाकाम्याब और लोकतंत्र के विरुद्ध काम करने वाली निकम्मी सरकार के रूप में याद रखा जाएगा।
अब समझिए राष्ट्रपति पद पर एक अनजान चेहरे को लाकर थोपना और दीपक मिश्रा को मुख्य न्यायाधीश बनाने का खेल।
चार न्यायाधीश यूँही बाहर नही आये थे और रजत शर्मा से लेकर सुधीर चौधरी, विद्यानाथ झा, रोहित सरदाना या अर्णब को टुकड़े यूँही नही डाले जा रहे।
गुंडागर्दी से लेकर भलाई तक के सभी काम क्या और कैसे हो रहे समझिए। आज आपके बचत पर इन्होंने डाका डाला है कल आपके घर मे झांकेंगे ।
अब तो भक्ति बन्द करिये या श्मशान में जाकर अक्ल आएगी, गेहूं खाते है या गोबर ?
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ये है असली मोदियापा
ललित
नीरव
और तीसरा
बूझो तो जानो
ये बीमारी खतरनाक और हद से ज्यादा घातक है।
क्यों ना राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन को कहा जाए कि कोई कारगर जवाब ढूँढे इसका।
पूरे देश जो कूड़ा घर बना रखा है इन्होंने !
गोबर खाकर जो भक्त बनें है
नही सुधरेंगे, नही सुधरेंगे !!!
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जिस दिन भी एक समझदार प्रशासक, पुलिस कर्मी और न्यायाधीश आ गया यकीन मानिए ये सारे फोर्ब्ज, टाईम्स वाले करोड़पति और राजनेता जेल की चक्की पिसेंगे और देश मे सचमुच अच्छे दिन आएंगे। नीरव मोदी, चौकसे, अम्बानी बन्धु, अडानी और इस माला के सब मोती ! देश का नेतृत्व बिल्कुल खाली है मने कि एकदम नीचे से ऊपर तक और सबसे ऊपर तक सब खाली मटके, थोथे चने और बाजे भी नी घने !
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चार मोदी भारत भूमि के, चारों धूर्त प्रवीन,
आईपीएल खाके एक चल दिया, बाकी रह गए तीन.
तीन मोदी भारत भूमि के, उड़ने लग गए वो,
सृजन घोटाला किया एक ने, बाकी रह गए दो.
दो मोदी भारत भूमि के, दोनों नहीं थे नेक,
बैंक लूटकर एक भग लिया, बाकी रह गया एक.
एक मोदी भारत भूमि का, फेंके है दौड़ा-दौड़ा,
झोला लेकर ये भी चल देगा, बाक़ी बचेगा पकौड़ा.
Rahul Kotiyal
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रवि शंकर प्रसाद भोत ग़ुस्से में है
एक पत्रकार ने पूछ लिया शाम को पत्रकार वार्ता में कि
" ये एन मोदी जो रुपया लेकर भाग गया है और देश को चुना लगाया है, सरकार क्या कर रही है" ?
रवि बाबू - " आपको शर्म आना चाहिए देश के प्रधान मंत्री के खिलाफ ऐसा बोल रहे हो, आपको देख लूंगा ..."
पत्रकार - " सर जी मैं एन मोदी मतलब नीरव मोदी की बात कर रहा हूँ "
रवि बाबू - " साले, मुझे क्या बेवकूफ समझा है , एन का मतलब मुझे या सरकार या देश को नही समझता क्या"
इतना कहकर वो माईक उठाकर मारने के दौड़ पड़े !!!
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रविशंकर प्रसाद ने कल कहा कि '' फोटो की राजनीति न करे कांग्रेस ... हमारे पास भी खूब फोटो हैं आपके नेताओं के घोटालेबाज़ मेहुल और नीरव के साथ के "
हार्दिक की सीडी से लेकर सबकी सीडी है तुम्हारे पास, तुम मंत्री हो या सड़कछाप वीडियो मिक्सिंग करने वाले घसियारे।
और यही काम रह गया है भाजपा के पास अब कि दूसरों के शयन कक्ष में वयस्क लोगों की सीडी ही बनाते रहें।
शर्म करो, या आदत पड़ गई है अपने आदर्श की जिन्होंने एक महिला का पीछा करते करते उसका जीना मुहाल कर दिया था।
साला देश है या मूर्खो का जमघट, देश का केबिनेट मंत्री सरे आम पत्रकार वार्ता में सीडी जैसे कायर हथियार की बात कर बदला लेने जैसी बात करता है। कल इसकी हरकत और थोबड़े पर आया गुस्सा इसकी असली औकात बता रहा था।
जब किसी के पास कोई तर्क और दिमाग़ नही रह जाता तो दूसरों के चरित्र पर हमला करता है जो असल मे सबसे आसान है और नीचता की हद !
यह देश का दुर्भाग्य ही है कि हमें ऐसे लोग हमेशा से मिलते रहें है जो अपनी कमजोरियों को दूसरों के चरित्र पर आरोप लगाने में माहिर है।
यह चरित्र आपको प्रशासन, राजनीति, कार्पोरेट्स, उद्योग, एनजीओ और मिडिया में बहुत आसानी से मिल जाएंगे। यह समय अब इतना खतरनाक है कि सबसे नाकारा, निकम्मे, हरामखोर और भ्रष्ट लोग या जिनके भी कम्फर्ट ज़ोन पर सवाल उठाये जाते है - वे सबसे पहले अपने गुण दोष देखने के बजाय या काम करने के बजाय सामने वाले के चरित्र पर दाग लगाने की शुरुवात करते है ताकि लोगों का ध्यान मूल मुद्दों से भटककर चटखारों में लग जाये।
दिक्कत यह भी है कि खुले दिमाग वाले नकली, पाखंडी और तथाकथित बुद्धिजीवी भी इनके बहकावे में आ जाते है और रविशंकर जैसे घटिया लोगों की बात मान लेते है जोकि एक तरह का डिफेंस मैकेनिज्म होता है। आम लोगों की तो समझ बहुत ही दयनीय और कमजोर होती है।
सावधान रहिये और किसी के चरित्र पर संदेह करने से पहले कहने वाले व्यक्ति और कहे जाने वाले की नीयत पर शक कीजिये और उस तार को ढूँढिये जो क्या आग पैदा करने वाला है।
रविशंकर जैसे उन तमाम लोगों को याद रखना चाहिए कि वयस्क व्यक्ति की निजी जिंदगी होती है और उसमें ताक झांक करना नीचता, लम्पट और कमीनगी की हद से गुजरा हुआ व्यवहार है। और अब सुप्रीम कोर्ट निजता के हक की बात को भी मूल अधिकार के रूप में निरूपित कर चुका है अगर यह समझ नही है तो अरब सागर में डूब मरो कम्बख्तों।
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हमेशा समय एक जैसा और किसी एक का होकर रहता है, दिन फिरते देर नहीं लगती