बहुत कुछ नही होना था जीवन में. कई बार गधों, मूर्खों और विशुद्ध नालायकों को ज्ञान - विज्ञान, सामाजिकता और अर्थ शास्त्र या मीडिया की बात करते देखता हूँ तो लगता है इन दरिद्र और पागलों के साथ क्या करूँ, जिन्हें बचपन से एक अभद्रता से बढ़ते देखा और सारे धत करम जानता हूँ इनके तो क्या इनसे बहस करना, फिर लगा कि उम्र बढ़ गयी है तो अक्ल आ गयी हो तो समझा दूं, पर बहुत विचार करने के बाद लगा कि अब आज से इनके साथ ना बात करनी ना तर्क , सिवाय अपने को कीचड़ में लपेटने के अलावा होगा क्या, क्योकि कहते है ना सूअर आपको कीचड़ में लपेटकर ले जाता है और फिर आनंदित होता है ? इससे अच्छा है छोडो, माफ़ कर दो और आगे बढ़ जाओ । कस्बे के संगीत समारोह अक्सर रसीले हुआ करते थे साल में गणेश चतुर्थी से लेकर बारह माह कोई ना कोई आयोजन होता रहता था , कभी रफी के नाम पर कभी रज्जब अली खान के नाम और कभी तानसेन के नाम पर, शहर भर के लोग झकास वाला लाल काला पीला कुर्ता और पैजामें की नाड़ी कसते हुए एक मात्र हाल में पहुँच जाते, एक तरफ औरते भयानक जरी की मोटी काठ पहने लकदक साड़ी में मेकअप लिपटे बैठी होती दूसरी ओर मर्द बैठते, पीछे लौंडे ल...
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