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Posts of 23 April 16 बया का जन- मार्च 16 का अंक






















बया का जन - मार्च 16 अंक मिला । संपादकीय टीम का पृष्ठ देखकर थोड़ा आश्चर्य हुआ, खैर "प्यार तो होना ही था"।
संजीव बख्शी जी का उपन्यास अलग से छपा है फिर बया में देने का उद्देश्य समझ नही आया। सुरेश सेन निशांत की रचना प्रक्रिया और कविताएँ अच्छी है पर डा अरुण होता की टिप्पणी हमेशा की तरह बहुत लम्बी है और कही कही उबाऊ भी जिसे संपादित किया जा सकता था।
मण्डलोई जी कविताएँ एक मुहावरा किस्म की है जो मैं उजास इलाहाबाद से देख समझ रहा हूँ, मंडलोई जी एक अच्छे सम्पादक है अब, कविताएँ लिखकर छपवाने का मोह अब उन्हें छोड़ना देना चाहिए। अविनाश मिश्र जो आजकल फेसबुक पर नही है , कि कविताएँ आश्वस्त करती है कि तमाम विवादों और गंवईपन के बाद भी वो खरी बात कविता के बहाने कहता रहेगा।
कहानियाँ पढी नही पर स्व पंकज सिंह पर संस्मरण अच्छा है और आनंद स्वरुप वर्मा ने पुराने आंदोलनों के बहाने तत्कालीन युवा संघर्ष और मुद्दों को सही पकड़ा है।
भाई Gouri Nathi के सम्पादन में अंतिका प्रकाशन का यह अंक अच्छा है पर गौरी नाथ संपादकीय में कई बातो को छूकर निकल गए थोड़ी तसल्ली से कहते तो स्व राजेन्द्र यादव जी के तेवर दिखते अबकि बार । बहरहाल, बधाई

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हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी वह तुमने बहुत ही