गौतम - क्यों बुद्ध हो गए थे तुम ? यह अब सिर्फ सवाल ही नहीं मेरे लिए एक यक्ष प्रश्न है। क्या था निर्वाण, क्या था बोधिसत्व और क्या था बुद्धत्व , यह बुझने के लिए कितने जन्म लेकर तन मन की व्याधियों से जूझना होगा। नहीं जानता पर लग रहा है कि सब पीछे छुट रहा है और इस अथक यात्रा में अब कोई मकाम नजर नहीं आता भंते।
विराम ही प्रस्थान है और एकालाप ही प्रलाप, अपने आप से नित्य, हर पल का संत्रास ! क्या यही सब भुगता था तुमने भी ??? क्यों एक मृत्यु, एक जरावस्था देखकर त्याज्य हो गए? संसार को तुमने नहीं छोड़ा, संसार ने तुम्हे रीता हुआ, अवसाद से परिपूर्ण जानकार छोड़ दिया और जंगल की वह राह पकड़ा दी जो कभी फिर शुद्धोदन, आनंद, भद्रशीला, आम्रपाली याकि अंगुलीमाल तक भी नहीं आती थी।
तथागत मौन रहकर भाषा देने का गुण तो अप्रतिम था, पर क्या कर पायें अपने से भी संवाद कभी? क्यों विपश्यना का रास्ता स्वीकार कर हर बार मौन हो जाते थे? कितना लड़े हो अपने आपसे एक बार कह कर जाते......
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