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मधुशाला और विकास -गन्ना, राजनीति और शोषण





उस दिन शनि शिन्गानापुर में जाते हुए हम सब लोगो को गन्ना देखकर मधुशाला की याद आ गई, माफ़ कीजिये बच्चन वाली नहीं, गन्ने के रस वाली-- हमारे मालवे में गर्मियों की छुट्टियों में जगह- जगह मधुशालाएँ खुल जाती है और पार्को के आसपास तो विशेष रूप से ये अक्सर माहौल बना देती है । उस दिन हमने जी भरकर रस पिया खूब ताज़ा रस निम्बू वाला और बस अदरक की कमी अखर रही थी । सजह ही मैंने पूछा की गन्ना अबकी बार तो बहुत है तो अनिल बोला, जो रस बेच रहा था, कहने लगा कि "साहब फिर भी तीन हज़ार प्रति टन है , मैं हर दिन तीस गिलास बेच पाता हूँ , मैंने देखा कि जिस अंदाज़ में भीड़ बढ़ रही थी उसे देखकर नहीं लग रह था कि वो सिर्फ तीस गिलास बेच पाता होगा ........ मेरे सामने ही कम से कम ७० गिलास बेच चूका था फिर मैंने तस्वीरें खींचना चाहा तो अपने नौकर को आगे कर दिया कहने लगा कि में अनजान लोगो को तस्वीरें नहीं देता फिर मैंने देखा कि वो अपनी दुकान पर बाल मजदूरो से काम करवा रह है और किसानो को भी ठग रहा है फिर लगा कि वो भी ठीक सरकार की तरह किसानो का जानी दुश्मन है, वो मूक बधिर बैल का भी शोषण कर रहा था, बस अच्छी बात यह थी कि उसकी मशीन बिजली से नहीं चल रही थी- हाँ पैसा ज़रूर उगल रही थी गन्ने से और महंगे नारियल पानी से। सारे रास्ते भर हम गन्ने की चर्खियाँ देखते रहे और मैं सोचता रहा की कैसे अपने ही लोग अपनों को शोषित करते है और किसान मर रहे है.......... रोज़ रोज़ दुष्चक्र में.......किसको चिंता है अपुन तो रस पियो पैसा फेंको और आगे बढ़ो भाड़ में जाये किसान reliance world में सब मिल जाता है.......गेहू चना साफ सुथरा और बढ़िया पाकेट में
कहा है बाल ठाकरे जी और महाराष्ट्र के महा नेता लोग...... किसानो के बड़े बड़े विदर्भी नेता ...........
जय महाराष्ट्र का नारा बुलंद करने वाले .....अम्बेडकर की मूर्तिया लगाने वाली पैंथर पार्टियाँ और नक्सलवादी कामरेड साथी..............

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