देवास में नईम जी को गुजरे हुए ९ अप्रैल को पूरा एक साल हो जायेगा.....
उनके परिवार और देवास के उत्साही लोगो ने मिलजुलकर एक अनूठा कार्यक्रम किया १ अप्रैल को मल्हार स्मृति मंदिर में जिसमे प्रकाश कान्त और बहादुर पटेल का जिक्र किये बिना यह सब अधुरा रह जायेगा.......
इस शाम के लिए लोग सुबह से ही इक्कट्ठे हो गए थे विजयबहादुर सिंह जहाँ कोलकत्ता से आये वही महेश्वर दिल्ली से आये, कुबेर दत्त दिल्ली से थे यश मालवीय अलाहाबाद से थे
यह एक्बेहद पारिवारिक शाम थी जिसमे नईम जी के चाहने वाले थे और नईम जी के मुरीद थे ........ सुनील ने एक बात सही कही थी कि स्वर्गीय नईम जी के साथ लगाना संभव ही नहीं है......
विजय बहादुर ने कहा कि जैसे कबीर हो गए है वैसे ही नईम भी हो गए है....
कुबेर दत्ता ने नईम कि परंपरा को हिंदी साहित्य कि अनूठी परंपरा कहा जब नईम बेहद मुहफट और साफगोई कि भाषा बोलने लगे थे .....
नईम जी की दो पुस्तकों का विमोचन किया गया सुल्ताना दीदतब बेहद भावुक हो गई थी जब उन्हें मंच पर बुलाया गया...
नईम जी की यद् में फ़िलहाल इतना ही.....
बस इतना कि " किसको अपनी पीर परोसे किसको सुनाये दुखड़ा सुखडा, लिखा नहीं कुछ बहुत दिनों से लिखने जैसा"...
देवास में इस तरह के कार्यक्रमों में जाना बेहद emotional हो जाता है लगता है कि बस सब छोड़कर घर चला जाऊ... जहाँ सब तो अपने है और यहाँ इस भोपाल शहर में क्या है एक कुत्ता भी पहचान का नहीं है और सूअर भी घुर घुर करताहै...... कितने लोग मिले जिनसे मिले बरसो हो गए थे पर जिस आत्मीयता से वो मिले वो शायद उनकी महानता है ..... एक किसी का नाम लिखकर में सबको कमतर नहीं आंक सकता....
देवास मेरा शहर है और एक लौटूंगा में बिलकुल रीतकर ताकि कोई फिर से भर सके मुझे अपना समझ कर एक खाली घड़े सा... शहर मुझे तोड़ता भी है और जोड़ता भी है।
ओम प्रभाकर के घर पर महेश्वर जी के तीन गीत सुने और मैंने भी कबीर और भूपेन हजारिका का एक गीत सुनाया ........ कितने सहज है लोग अभी भी.....
देवास मुझे आज भी खींचता है पर बस वो सब नहीं मिलेगा मुझे जो मैं पाना चाहता हूँ...
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