खुलता नहीं है हाल किसी पर कहे बग़ैर/
दिल की जान लेते हैं दिलबर कहे बग़ैर।
मैं क्यूँकर कहूँ तुम आओ कि दिल की कशिश से
वो आयेँगे दौड़े आप मेरे घर कहे बग़ैर।
क्या ताब क्या मजाल हमारी कि बोसा लें
लब को तुम्हारे लब से मिलाकर कहे बग़ैर।
बेदर्द तू सुने न सुने लेकिन ये दर्द-ए-दिल
रहता नहीं है आशिक़-ए-मुज़तर कहे बग़ैर।
तकदीर के सिवा नहीं मिलता कहीं से भी दिलवाता ऐ "ज़फ़र" है मुक़द्दर कहे बग़ैर।
- बहादुर शाह ज़फ़र
दिल की जान लेते हैं दिलबर कहे बग़ैर।
मैं क्यूँकर कहूँ तुम आओ कि दिल की कशिश से
वो आयेँगे दौड़े आप मेरे घर कहे बग़ैर।
क्या ताब क्या मजाल हमारी कि बोसा लें
लब को तुम्हारे लब से मिलाकर कहे बग़ैर।
बेदर्द तू सुने न सुने लेकिन ये दर्द-ए-दिल
रहता नहीं है आशिक़-ए-मुज़तर कहे बग़ैर।
तकदीर के सिवा नहीं मिलता कहीं से भी दिलवाता ऐ "ज़फ़र" है मुक़द्दर कहे बग़ैर।
- बहादुर शाह ज़फ़र
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