अम्बर पांडे मेरे अच्छे दोस्तों में शरीक है और मेरी साहित्यिक भाषा में कहू तो अम्बर मेरा भावनात्मक संबल है जिसे अंग्रेजी में Emotional Anchor कहते है उसकी मेधा का में कायल हूँ और जो समझ उसकी कविता को लेकर है वो अप्रतिम है में हमेशा अम्बर से कहता हूँ कि मेरा सब कुछ ले लो और अपनी कविताये मेरे नाम कर दो और बस मुस्कुराकर कहता है कि आप भी न...... बस.............
कविता
कविता
दारिद्र और विद्या
{हमारे संस्कृत के गुरु बिंदुमाधव मिश्र की बातें , जिसे मैंने कविता मे बांध लिया है.}
तम्बाकू निगल लिया हो भैया जैसे
अपना जीवन बस
ऐसे ही बीत गया.
साल दो साल जो और है
ऐसे ही निबट जायेंगे वह भी.
दो जून का चून
लकड़ी-कपडा-तेल-नून
बखत पर मिल गए
अपने लिए पर्व हो गया.
कितना कुछ करने को रह गया
जीवन जुटाने मे ही लग गया
जीने के उपकरण
हजार किये खटकरम
कट गयी जैसी कटनी थी
तुम बताओ
क्या क्या पढ़ रहे हो?
उससे भी बढ़कर
लिख क्या रहे हो बन्धु आजकल
और यह क्या
इतने दुबलाते क्यों जा रहे हो
काठ जैसे दिख रहे है हाथ
जरा दही-दूध पिया करो
घी खाओ
में तो नहीं हो पाया तुम्हारा
चक्रपाणि ब्रह्मचारी
मगर तुम्हे मेरा महापंडित जरूर बनना है.
बोलो बनोगे की नहीं
हड्डियाँ अपनी मजबूत करो
देखो कितनी भूमि कितना विस्तार
पड़ा है
जहाँ आदमी के पैरों की नहीं है छाप.
{ चक्रपाणि ब्रह्मचारी-महापंडित राहुल सांस्कृत्यायन की आत्मकथा 'मेरी जीवन यात्रा' के एक पात्र है.}
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