राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सौ गौरवशाली वर्ष – आगे की दिशा और दशा
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सौ गौरवशाली वर्ष पूर्ण होने पर हार्दिक बधाई, यह बधाई संघ के पदाधिकारियों से लेकर जमीनी स्तर के कार्यकर्ता को है जो गरीब और मजलूम है साथ ही अपनी मेहनत से देश के स्वरुप को निखारने में लगा है. संघ को इस बात की बधाई दी जानी चाहिए कि गत सौ वर्षों में लगातार संघर्ष करके और तमाम प्रतिबंधों के बाद भी देश के एक बड़े वर्ग को संगठित कर तराजू में तौला है और इकठ्ठा किया है.
संघ ने पिछले सौ वर्षों में शिक्षा, स्वास्थ्य, विकास, व्यक्ति निर्माण से लेकर सरकार में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दखल करके नीति निर्माण में जो काम किया वह निश्चित ही प्रशंसनीय है और इसके लिए सभी स्वयं सेवकों और पदाधिकारियों को बधाई दी जाकर उनका अभिनंदन करना जरूरी है.
आपदा, संकट और बाकी सारी मुसीबतों में संघ ने जो प्रतिबद्धता और लगन से काम कर साहस दिखाया है वह बड़ी मुश्किल से देखने को मिलता है. दूर दराज के इलाकों में शिक्षा और स्वास्थ्य के प्रकल्प खोलकर जो जागरूकता से लेकर आत्म सम्मान गौरव जागृत करने का काम निष्ठावान लोगों ने किया बगैर लालच और परिणाम के वह भी स्तुत्य है. समय कि पाबंदी, अनुशासन, लगाव, परिवारों में पहुंच, बगैर किसी तामझाम के आयोजन निपटा देना, खर्चे और तड़क भड़क से बहुत दूर सादगी से घर की बनी रोटी से हजारों लाखों लोगों को कब भोजन मिल जाता है और कब आयोजन शांत तरीकों से खत्म हो जाता है और अपने काम का आत्म मुग्ध हुए बिना चुपचाप पूरा कर लेना सराहनीय है
सबसे बड़ी उपलब्धि मेरी नजर में यह है कि एक तथाकथित गरीब और पिछड़े समुदाय के जमीनी प्रचारक को देश के सबसे बड़े पद पर पहुंचाना है और इस बहाने अपनी धाक पूरे विश्व पर बनाना है. दूसरी बड़ी उपलब्धि सरकार जो सबसे बड़ी रोजदार देने वाली संस्था है, उसमे अपने लोगों को इस तरह से फिट करना है जिससे देश को मन मांगे ढंगसे चलाया जा सकें और यह निश्चित ही सौ वर्ष पूरे होने की तैयारी और चरण बद्ध तरीको को आजमाकर किसी कुशल रणनीतिकार की तरह से काम करना है. संघ की इस बात की तारीफ़ करना चाहिए कि उसने बहुत बारीकी से हालातों पर पैनी दृष्टि रखी, अवलोकन किया, शाखाओं के माध्यम से कोंपल दिल दिमागों को प्रशिक्षित किया और समाज में बड़े बड़े आयोजन करके यह विशाल साम्राज्य खड़ा कर लिया कि आज सत्ता कोई भी हो, संघ की मर्जी के बिना एक पत्ता भी सांस नहीं ले सकता.
गरीब, पिछड़े लोगों को सम्मान देकर - “जी” कहकर जो प्रतिष्ठा अर्जित की और अपने साथ बहुजनों को जोड़ा, साथ ही एक प्रशिक्षित बौद्धिक फौज तैयार की उसी का परिणाम है कि आज एक आवाज या सन्देश पर देश भर में कुछ भी किया जा सकता है. मध्यम वर्ग को अपने साथ जोड़ा इस सिद्धांत के आधार पर कि बदलाव के लिए माध्यम वर्ग को साथ लिए बिना पूरी नही हो सकती, शाखाओं में कम से कम जाति या वर्ग ना पूछकर सबको एक दिखने वाली बराबरी का एहसास बड़े वर्ग को करवाया है और यही कारण है कि आज संघ की विचारधारा एक वटवृक्ष की तरह से फ़ैल रही है और अपना वर्चस्व बना रही है
सौ वर्ष की इस यात्रा में जितने उतार - चढ़ाव संघ ने देखे है, उतने तो किसी राजनैतिक दल के काडर ने नही देखे होंगे - क्योंकि जो काम जिम्मेदारी और सतत ढंग से करने की जरुरुत है - वह संघ में है, वह वामपंथियों में नहीं, इन लोगों को लगातार नवाचार और नित-नूतन करने की आदत है जो उन्हें जवाबदारियो और जवाबदेही से बचाती रही है, वामपंथी फंसने वालों में से कभी नहीं रहें, शिशु मन्दिरों के सामने अनुदान आधारित पुस्तकालय या शिक्षा प्रोत्साहन केंद्र चलाते रहें और अनुदान की राशी खत्म होने के बाद भाग गए साथ ही वामपंथियों ने अपने प्रकल्पों की मालिकी जिम्मेदारी या Ownership समुदाय को कभी नहीं दी, इसलिए वे लगातार फ़ैल होते रहें और हर बार वे बदलाव के नाम पर प्रयोग करते रहें, कांग्रेस ने इनको आश्रय एवं प्रश्रय दिया और प्रयोग करने की छुट, परन्तु बेहद फेंसी तरह के कामों का हिसाब हुआ तो ना वे शिक्षा में उत्तीर्ण हुए - ना ही किसी ठोस माडल को समाज के सामने रख पायें, अपनी फैंटेसी में वे मस्त रहें और स्वांत सुखाय में ही मद मस्त रहें, बहरहाल
आज संघ जवाबदेही और जवाबदारी की भूमिका में है और जो देश के सामने चुनौतियां है उससे दो - चार हुए बिना संघ की यह सारी यात्रा बेमानी है. जातिवाद, बेरोजगारी, महंगाई , गंगा – जमनी तहजीब का ह्रास, हिन्दू – मुस्लिम दंगे, इसाई, सिख, जैन या पारसी जैसे अल्पमत वाले धर्मों की स्वतंत्रता और अपनी पूजा पद्धति की छुट, आदिवासियों के हक़ और जल - जंगल - जमीन के मुद्दे, महिला समानता, अपराधों पर नियन्त्रण, अपने आनुषंगिक संगठनों पर लगाम लगाना, जैसे बजरंग दल, विश्व हिन्दू परिषद्, शिव सेना, या कोई हिन्दू के नाम पर जोर जबरदस्ती करने वाले हुडदंगी और लगभग गुंडे बन चुके युवाओं को नियंत्रित करना महत्वपूर्ण है. वैश्विक स्तर पर जों “वसुधैव कुटुम्बकम” को गढ़ना है और कल्पनातीत बातों को धरातल पर लाना है वह भी एक आवश्यक कार्य है. समाज में जो राजनैतिक और आर्थिक स्तर पर दरिद्रता हो गई है - उसके लिए सत्ता पर कडा नियन्त्रण और निगरानी रखना होगी क्योकि यह भाजपा अब जनसंघ नहीं है भाजपा का केसरिया पट्टा अब टेंडर दिलवाने या ठेका पद्धति से अधिकारियों को डरा धमकाकर रूपया कमाना रह गया है हिन्दू राष्ट्र के नाम पर व्यक्तिगत छबी बनाना और धन कमाना रह गया है. भारतीय मीडिया को स्वतंत्रता देना एक बड़ा सवाल है, निश्चित ही गोदी मीडिया ने सरकार की ना मात्र छबि खत्म की है बल्कि लोगों का मीडिया या पढने-लिखने की संस्कृति को समाप्त कर दिया है. संविधान में वर्णित अभिव्यक्ति की छुट को सराहने के साथ पर्याप्त सबको “फ्री हैण्ड” भी देना होगा, फिर वह मीडिया हो या ब्यूरोक्रेसी या मजदूर संगठन ताकि एक शोषण मुक्त समाज का स्वप्न जीवित रहें और हम सब मिलाकर उसे वास्तव में प्राप्त कर सकें.
यदि संघ यह कहें कि हमारा सत्ता में दखल नही है और हम सिर्फ सांस्कृतिक संगठन है तो सिवाय हंसी के और कुछ नहीं किया जा सकता है, बेहतर है कि इसे एक स्व संस्तुति मानकर अब देश में समाज में बदलाव के लिए काम करें क्योकि अब एनजीओ, सरकार से ज्यादा संघ की पकड और पहुँच देश दुनिया से है, प्रखर और समझदार लोगों की एक बड़ी फौज है - जिसे देश समाज हित में बदलाव के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए.
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को पुन: बधाई और शुभकामनाएं, देश की आजादी में आपने कोई भूमिका नहीं निभाई और नई पीढ़ी इस बात को नहीं जानती, परन्तु यदि आप इस बिखरते और सुलगते देश और समाज के साथ युद्ध के शिखर पर बैठे विश्व को सम्हालकर और संवारकर एक नई दिशा देंगें या निर्माण करेंगे तो अगले पांच सौ साल आपको पुन: प्रतिष्ठा और यश - कीर्ति मिलेगी. गांधी और नेहरू इस देश, मानवता और विश्व की सच्चाई है जैसे गुरूजी या डाकटर हेडगेवार है इसे स्वीकार करके ही आगे बढ़ा जा सकता है , यह भी एक दैविक इशारा है कि गाँधी जयन्ती के दिन विजयादशमी भी है और संघ के सौ वर्षों का विशाल उत्सव भी, इसे देवाज्ञा मानकर आत्मसात करें और आगे बढ़ें
सारे स्वयं सेवकों को बधाई और शुभकामनाएं
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