समय जब बीतते जाता है तो हम बार - बार पलटकर देखते है और पाते है कि जीवन एक बोझ ढोते हुए बड़ी जिम्मेदारियों के साथ बीत गया, हमने कभी सोचा भी नही था कि यह सब इतना सहजता से गुज़रता जाएगा कि हम एक दिन जब ठिठक कर रुकेंगे और देखेंगे तो पता चलेगा कि सब कुछ व्यर्थ हो गया, पचास -साठ साल बर्बाद या सार्थक होकर निकल गये - हम परिवार में रहें, अकेले रहें, झुण्ड में, या निपट अपने भीतर धीरे-धीरे खत्म होते रहें - दाये हाथ को कभी मालूम नही पड़ा कि बाये हाथ ने कब जिम्मेदारियाँ ओढ़ ली और एक सर्द खामोशी से सब कुछ यंत्रवत हो गया और अब जब वक़्त गुज़र गया है तो तमाम आरोप - प्रत्यारोप, बेईमानी - ईमानदारी, सच - झूठ, भीड़ और एकाकीपन, आवाज़ों और गहन सन्नाटों के बीच हम इतने बेबस हो गए है कि अब कुछ कहने या सुनने का मन नही करना
अपने जीवन पर लगे तारीफों के पुल या इल्ज़ामों के लिए कोई प्रतिउत्तर नही, कोई अनुतोष नही चाहते, अपने कामों और निर्णयों के लिये किसी भी प्रकार की प्रतिपुष्टि नही लेनी और ना ही ज़िन्दगी के कटघरे में खड़े रहकर किसी भी तरह की स्व- संस्तुति देनी है, अब जीवन या सब कुछ, कर्म और अकर्मण्यता फेल - पास, महल - अटारी, धन या निर्धनता से परे हो गया है जीवन, सारी आवाज़ें एक शोर है, सारे सुख - दुख बन्धन है, सारी उपलब्धियाँ ज़िन्दगी के आईने में चलती साँसों के बरक्स न्यून है और किसी बात पर हँस लेना गौण लगता है
कभी लगता है कि हम सबके भीतर का शोर आँसूओं के रूप में बह जाना चाहता है, पर अब कमबख्त आँसू भी अपने नही रहें - आज दो करीबी लोगों की मौत की सूचना थी, जाने का मन नही हुआ - एक तो हूँ नही इतने नज़दीक कि पहुँच सकूँ - दूसरा मन ही नही किया - लगा कि किसी की मुक्ति में जाकर ग़म मनाने का क्या औचित्य है और फिर हम सब भी उसी पथ पर अग्रगामी हैं अब
बस लग रहा कि जो ओढ़ रखा था उसे ढीला करते जाऊँ और मुक्त हो जाऊँ, दिल - दिमाग़ और शरीर जटिल होते जा रहा है, जटिलताएँ अक्सर जीवन को बहुत सरल कर देती हैं - पिता , माँ और भाई के साथ ढेरों लोगों को देखा है - जब जटिलताएँ बढ़ी तो वे सबसे पार हो गए और ऐसी अनजान जगहों पर चले गए जहाँ किसी बात का कोई असर नही पड़ता, वो कहते है ना - जैसे - जैसे आप परम् पिता के पास जाने लगते है तो धन, रिश्तों, माया, भावुकता और तमाम तरह के वो सब बन्धन टूटने लगते है - जो आपके और उस अलौकिक शक्ति के बीच आड़े आते हैं
फिर भी अभी सन्तुष्टि यह है कि और तरह के उदाहरणों से भौतिक और समृद्धि की तुला पर अभी ऊँचा हूँ, अपना पलड़ा भारी लगता है - अपनी पसंद का जीवन जिया, वो सब कर पाया जो करने के ख्वाब देखता था, वो सब करके भरपूर जी लिया - भले ही आगे - पीछे सुनना पड़ा हो, इसी काया में मोक्ष मिलना बड़ी बात है पर यह गर्व है कि इस काया को निभा ले आया अब तक, शायद आगे भी कबीर की तर्ज़ पर ज्यों की त्यों धर देने का हौंसला है बुलन्द
कल एक बहुत पुराने मित्र ने जिससे करीब बीस वर्ष पूर्व से अबोला था, उसने फोन पर माफ़ी मांगी और कहा कि - "मैं बेहद शर्मिन्दा हूँ कि वह सब मैंने सोचा, कहा और इतने वर्ष बात नही की, पर अब मैं भी 60 में प्रवेश कर रहा हूँ तो अपने मन पर बोझ नही रखना चाहता और तुम्हारा नम्बर खोजकर हिम्मत से फोन कर रहा हूँ - सिर्फ़ यह कहने को कि मैं माफ़ी चाहता हूँ", मैं हँस दिया और यह कहा उससे कि - " ज़िन्दगी खूबसूरत है, समय - लोग -स्मृतियाँ सब अस्थाई है, इसलिए मन पर बोझ मत रखना और भूल जाना कि ज़िन्दगी में कोई मेरा जैसा शख्स आया था" इसके अलावा हमारे पास कोई विकल्प भी नही है
बस, आज जब साल खत्म होने में कुछ घण्टे शेष है तो उन सबका आभार, धन्यवाद और माफ़ी जिनके होने से जीवन का यह सुंदर साल गुज़र गया और हम सब यह पढ़ने- समझने और महसूस करने को शेष है और दुआ है कि आगे भी आप लोग इसी तरह बने रहें , इंशाअल्लाह !!!
नए साल में बेहतर हालात, उम्मीदों की कामना के साथ
दुआएँ और सुकामनाएँ
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दुर्भाग्य से इस समय हम सब ज्ञान, उपलब्धियों, संवादों की अति, अभिव्यक्ति की मुखरता और बाँटने की आदत से भयानक भरे हुए है, एक आदमी खाली दिखता नही कि उसे घेरकर पूरी कायनात और आकाशगंगा उसके पास सिमट आती है और चौ-चौ, भौ-भौ करने लगती है - बग़ैर यह जाने कि वह शख्स कुछ देर का एकांत चाहता है और एकालाप करना चाहता है, वह अपने आप से बतिया कर अपना सुख - दुख स्वयं से कहना चाहता है, अपनी साँसों की गति को देख - समझकर नियंत्रित करना चाहता है, वह अपने हालात समझकर आने वाली बेला के ख़्वाब बुनना चाहता है - पर हम उसे एक क्षण भी छोड़ नही रहें और उस पर टूट पड़े है
यह समय भीड़ के बजाय अकेले होने का है, संवाद के बजाय एकालाप की आवश्यकता है, मुखर - प्रखर होने के बजाय धीर-गम्भीर चित्त के साथ शांत और संयमी होने का है, भौंडे स्पीकर या डीजे की आवाज़ों में थिरकने के बजाय कही दूर एकांत में प्रकृति के सानिध्य में चिड़िया की चहचहाहट सुनने का है, चींटियों के अनुशासन और गिलहरी की अठखेलियाँ देखने का समय है, पहाड़ से उगते - डूबते सूरज को देखने का है, नदी के उद्दाम वेग को निहारने का है, समुद्र की गर्जना को भाँपकर किनारों पर जमे रहने का है, मुख्य सड़क से हटकर अँधेरी पगडण्डी पर चलते हुए भीतर जाने का है, असँख्य कॉपी - पेस्ट और नवाचार के नाम पर कूड़ा जानकारियों के समुद्र में तैरने के बजाय अपने अनुभव और समझ को आधार बनाकर आगे बढ़ने और व्यवहार करने का समय है
मेहरबानी करके ज्ञान दान करने से बाज़ आईये और लोगों को अपने हाल पर छोड़ दें
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संसार और प्रकृति में बदलाव के अपने नियम और गति है, जो हम कर रहे है - वह सिर्फ़ अनुकृति है दोहराव है - और हम नया कुछ नही कर रहे है यह समझना होगा बार -बार ; अब तक का निचोड़ यह है कि जुनून, लगन, उद्देश्य, प्रतिबद्धता, पागलपन, और किसी भी एक्सट्रीम पर जीने से जीवन में तनाव, अवसाद ही आता है और एक दिन आप अपने लक्ष्य तो प्राप्त कर सकते हो - पर जीवन हार जाते हो, अपने लोग - परिवेश और वो सब छूट जाता है जिसके होने समझने और करने के लिये, भोगने और भुगतने के लिये इस संसार में सम्भवतः आये थे ; इधर बहुतों को देखा और देख रहा हूँ या तो उन्होंने इस डिप्रेशन में आकर जान दे दी या अस्पताल में ब्रेन हेमरेज में पड़े है और परिवार दर - बदर होकर आर्थिक सहायता ढूंढ़ रहा है, दुआ है कि वे सब ठीक होकर यथा शीघ्र सामान्य होकर जीवन में लौट आये
महल - अटारी, पद - प्रतिष्ठा, सम्बन्ध - नेटवर्क, तानाशाही - शासन करने की प्रवृत्ति, व्यवसाय और धन - लोलुपता या एक छत्र राज करने की अदम्य इच्छा नही - बल्कि एक छोटी सी मुस्कान जीवन का पर्याय है और यह समझ विकसित करने के लिये यदि हमें थोड़ा सा समय भी परोपकार, यश, कीर्ति, अमरता, प्रसिद्धि, और महान होने के बीच मिल जाये तो बहुत बड़ी बात होगी
[ एक कर्मठ युवा साथी का बिछड़ना, एक बचपन के दोस्त का ब्रेन हेमरेज से अस्पताल में परसो भर्ती होकर अभी तक बेसुध होना इस पोस्ट का आधार है, दोनों ही विचारवान और जुनूनी थे और गहन अवसाद में चले गए थे / है - एक से उम्मीद है अभी और एक चुप हो गया है स्थाई, जो है उसकी स्थिति बहुत गम्भीर है ]
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बहुत गम्भीरता से लगने लगा है कि अब लिखने के बजाय पढ़ने और समझने पर ध्यान देना चाहिये हिंदी के साहित्यकारों को, यह सुझाव अपने लिये भी है, समकालीनों और युवाओं के लिये भी, समादृत वरिष्ठों से बात करने की ज़रूरत नही है क्योंकि वे ना मात्र चूक गए है बल्कि ख़ारिज भी है साहित्य के फ़लक से और यह दुर्गति उन्होंने खुद की है आत्ममुग्ध होकर और अपना कूड़ा बेचने में दिखाकर - सोशल मीडिया ने सबको बर्बाद किया है और जो भसड़ मचा रखी है बेचने, खरीदने और आत्म मुग्धता के चलते वह बेहद दुखी करने वाला समकालीन परिदृश्य है
आज Poems India के कविता पाठ में देश के हिंदी अंग्रेज़ी युवा कवि जो लगभग 40 की सँख्या में थे, के साथ कविता सुनना, पढ़ना और चर्चा करने का जो सुख था वह इस पूरे साल की एकमात्र उपलब्धि है, जिस तरह से इनके पास भाषा, बिम्ब और संवेदनाएँ है वह ना मात्र अप्रतिम है बल्कि बहुत बारीकी से वे समय को पकड़कर दर्ज कर रहें है
इस पूरी कल्पना के पीछे और पोयम्स के पेज को ऊँचाई पर ले जाने के लिये ग्वालियर के प्रतिभाशाली कवि, बेहतरीन सर्जक और अनुवादक Shivam Tomar को पूरा श्रेय जाता है , शिवम और दोस्तों - लगे रहो, साहित्य तुम जैसे मित्रों से ही समृद्ध और सशक्त होगा,बाकी तो सब माया है
बड़ी हड़बड़ी में बीता यह दिन, एक प्रशिक्षण कर रहा हूँ पुरा दिन वहाँ रहा, फिर शाम 4 से 5 तक दक्षिण एशिया के एक फंडिंग समूह की बैठक थी और 5 से 730 तक यह कविता का वृहद आयोजन - कुल मिलाकर सच में दिन बड़ा था
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