जीवन भर हम गलतियाँ करते है पर एकाध गलती जीवन भर के लिये घाव बन जाती है जिसे हम बार-बार ठीक करते है पर वह नासूर की तरह हमेंशा बढ़ते रहती है और यही द्वंद और प्रयास जीवन का सच्चा अर्थ है, और ऐसा नही कि यह गलती हो जाती है, हम उपलब्ध विकल्पों में से खुद यह चुनते है और फिर सदा के लिये दुखी होते रहते है, विकल्पों की बहुलता भी एक बड़ा कारण है और अधिकांश विकल्प नकारात्मक होते है जो क्षणिक सुख ही देते है पर हम इन सस्ते विकल्पों को चुनकर संताप मोल ले लेते है, प्रसन्नता और दुखों के दानावल के बीच का जीवन ही संघर्ष का परिचायक और उम्मीदों का सत्व है जो हमें लगातार आगे बढ़ाता है
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...
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