Skip to main content

Abhay Shukla, Death is Immortal Anil Goyal, Drisht Kavi, Khair Khari Man Ko Chiththi and other posts from 8 to 12 June 2024

"अबै ये कवि, लेखक, आलोचक, अनुवादक, कहानीकार, उपन्यासकार, लघुगीतकार, छंद - दोहा - सोरठा - चौपाई निर्माता, भगवत पुराण वाचक, कीर्तनकार और वैश्विक लेखक क्या होता है" - साला कार्ड और लेटर हेड तो इसी से भर गया है
"ही ही ही, भाई साहब, पत्रिकाओं में जब सम्पादक परिचय मांगते है तो यह नत्थी कर देता हूँ ताकि सबको सारी जानकारी मिल जाये" लाइवा उचक रहा था
"भाग साले, अब घर आया और कुछ झिलवाने को लाया तो जूते लगाऊंगा, 35 का हुआ नही साला और टॉलस्टॉय की, काफ़्का और नीत्शे की बराबरी करेगा , टैगोर की नकल उतारेगा, साला तुम जैसे दो कौड़ी के घटिया और नालायक को कौन छापेगा, दिन भर विकिपीडिया से विदेशी नाम टीप टीपकर यहाँ ज्ञानी बनता है, एडहॉक की औलाद, ससुरे हिंदी की बर्बादी के ज़िम्मेदार तुम जैसे छर्रे ही है, विवि से निकले शोध के नाजायज़"
***
|| कोंपल की यात्रा का पूर्णविराम ||



◆ 7 मई
फेसबुक पर एक पोस्ट थी कि भोपाल के युवा शायर को बाइक दुर्घटना में घायल होने से सिर में गम्भीर चोट है नाम था अभय शुक्ला
◆ 9 मई
फेसबुक से पता चला कि यह तो अपना युवा कवि और शायर अभय है, गम्भीर अवस्था में है, परिवार की स्थिति ठीक नही, इलाज महंगा है, क्राउड फंड जुटाया जा रहा है
◆ 13 मई
अभय के अपडेट्स मिल रहे है, Teji Grover , Pankaj Shukla ने भी अपडेट्स डाले और एक पोस्टर साझा किया कि मित्र मदद करें, तब तक कुछ रुपये मैं दिए गए नम्बर पर डाल चुका था
◆ 19 मई
नागपुर में हूँ, Nishant Upadhyay लम्बे अरसे बाद फेसबुक पर लौट आये है और लगातार अभय के हेल्थ बुलेटिन अपडेट कर रहें है, रुपयों के लिये अपील कर रहें है, खूब दौड़ भाग भी कि लगभग 15 लाख लगे, अभय के ठीक होने के बाद भी उसे साल - छह माह तो काम पर लौटने में लगेंगे, तब तक परिवार को जरूरत पड़ेगी
◆ 23 मई
नागपुर से लौट आया, निशांत से बात की, तेजी से बात की और एक अपील लिखी , देश दुनिया के दोस्तों ने उसी रात लगभग पचास हजार भेज दिये, दो दिन में डेढ़ लाख भेज चुका था मैं, फिर थोड़ा ठहरे, तेजी और निशांत से बात हुई कि अभी रूकते है, Shashank Garg जी अस्पताल हो आये थे, डॉक्टर्स से सम्पर्क में थे, नर्मदा अस्पताल का स्टाफ सहयोग कर रहा था
◆ 27 मई
आज मन नही माना तो भोपाल आ गया, निशांत को फोन किया, तो बोला भैया आप अस्पताल चलिए मैं आ रहा हूँ - थोड़े काम निपटाकर आता हूँ
नर्मदा अस्पताल गया तो बाहर ही अभय के पिताजी मिल गए, नमस्ते की, और बैठ गया उनके पास हाथ हाथ में लेकर, वे चुप थे, फिर बोलने लगे - जैसे कैसेट में गाने रिपीट होते थे, बोलते रहें देर तक, मैं सुनता रहा, कुछ नही बोला - समय, हेलमेट, दोस्त, गरीबी, डॉक्टर, मदद, आगे क्या, उम्मीद - नाउम्मीद, अभय की माँ, उसका बचपन, पढ़ाई, काम, कविता, रोज आने वाले दोस्त, अफसर, पुलिस और ना जाने क्या - क्या
थोड़ी देर में चुप हो गए, आईसीयू में जाने नही दे रहे थे मुझे, फिर अभय के डॉक्टर सौरभ श्रीवास्तव से बात की तो एक नज़र देखने अंदर जाने दिया - अभय चुप था, जाने किस दुनिया में खोया कविताएँ बुन रहा था, लगा कि कह रहा हो - "भैया, घर चलिये ना, माँ से मिलवाना है आपको, उनकी बहुत इच्छा है आपसे मिलने की, पिछली बार आपने जो गिफ्ट..." आवाजें दूर हो रही है, उसका सिर खुला है शायद,
◆ 28 मई
तेजी और रूस्तम जी से मिलने उनके घर गया था, मैंने कहा अभय के पिताजी निराश लग रहे थे, डॉक्टर भी बहुत उम्मीद से नही थे, यह बड़ा संकट है जब उम्मीद के दरवाज़ें एक युवा के लिये बन्द होने लगें, तेजी, रुस्तम और मैं देर तक सन्नाटों में बैठे थे, फिर सहज हुए थोड़ी बातें की और मैं लौट आया देवास
बस में मुझे कुछ सूझ नही रहा था, तीन चार बार हुई मुलाकातें याद आ रही थी, अचानक पड़ोस में बैठे किसी युवा ने पूछा - " अंकलजी, कोई मर गया क्या, आप रो रहें है" मैं उसे देखता रहा चुपचाप
◆ 5 जून
निशांत के अपडेट्स आ रहे है कि वेंटिलेटर पर है, ठीक हो रहा है, रुपयों की जरूरत है, 17 लाख हो गए है, और फंड चाहिए, शिवराज सिंह जी के साथ फोटो है, उन्होंने भी मदद की है
◆ 9 जून
निशांत का पोस्ट है - "हमने अभय को खो दिया है, कोई फोन ना करें", फिर अगले दिन कि भदभदा पर अंतिम क्रिया होगी, सब लोग नेहरू नगर पहुँचे
■ और अंत में प्रार्थना
बस, तीन दिन से बेचैन हूँ, सोया नही हूँ, क्या कवि या शायर सच में मरते है, क्या उनकी देह इतनी कमजोर हो जाती है कि उसे नष्ट किया जा सकता है, क्या संवेदनशील होना, बहुत प्यारा होना इतना खराब है कि अंत समय में देह वह सब भुगते जो संसार में किसी ने ना भुगता हो, क्या छोटी उम्र में नश्वर देह को मिट्टी में मिलना मिलाना इतना जरूरी है, क्या पुण्य नही होते या क्या देह धरे को दण्ड इतनी जल्दी भुगतना पड़ता है
मैं आज लिख रहा हूँ जब अभी Mayank Mayank ने बोला तो कि क्या अभय सच में चले गए है, क्या रुपये कम पड़ गए थे, अच्छा नही लग रहा था, गुरुवर प्रो और श्री Purushottam Agrawal जी को जब उनके द्वारा दी गई एक बड़ी राशि का जमा पर्ची का स्क्रीन शॉट भेजा तो बोले - "ये सब मत करो संदीप, मैं तुम पर विश्वास करता हूँ" कितने ही मित्रों ने मेरे कहने से मदद की और आज नही यह हमेशा की बात है, सबने नाम लिखने से मना किया है पर क्या ही कहूँ, उन सब मित्रों का हृदय से आभारी हूँ जिन्होंने मदद की, दुआएँ की और प्रार्थना में याद रखा, पर हम लोग अभय को बचा नही पाये, तमाम तरक्की और विकास के बाद भी कुछ है जो हमारे नियंत्रण में नही ऐसा लगने लगा है अब, पर मैं हमेंशा हजारों ऐसे ही अभय शुक्लाओं को बचाने के लिये झोला पसारकर मदद मांगता रहूँगा क्योकि ये सब मेरे है और हम सब मनुष्य है, आपस में मदद नही करेंगे तो फिर कौन करेगा
__________
Abhay Shukla बिटवा, भाई, दोस्त, सखा क्या कहूँ - तुम हम सबमें ज़िंदा हो और हमेशा रहोगे, 6 मई से 9 जून तक लम्बी पीड़ा और संत्रास तो देह ने भुगता, और फिर देह ने सब छोड़ भी दिया, कबीर कहते है "यह काया मिट्टी की", गीता कहती है "आत्मा अमर है, शरीर तो चोला बदलता रहता है"
आज न जाने क्यों यह सब मान लेने को जी करता है, मैं तो क्या ही कह सकता हूँ - तुम्हारी सादगी, सहजता, और विलक्षण प्रतिभा का कायल था और रहूँगा
अभय शुक्ला कभी नही मरते, वे हम सबमें सदैव ज़िंदा रहते है , जोरों से रोना चाहता हूँ पर रोने से कोई लौट आता तो हम सब रोज रोते और यह पृथ्वी अपने लोगों से भरी रहती सदा के लिये
मधुर यादों के साथ अश्रुपूरित विदाई, जहाँ भी रहो, ख़ुश रहना
"Weep no more,
woeful shepherds,
weep no more,
For Lycidas,
your sorrow,
is not dead"
- John Milton
***
अभी यही था व्यक्ति, थोड़ी बेचैनी, थोड़ी घबराहट और कोई एसिडिटी की गोली ली, कोई डिस्प्रिन ली और गोली हलक से भी न उतरी, पानी मुँह से बाहर आ गया - घर वाले हथप्रद है कि ये क्या हुआ - डॉक्टर आता है और कहता है सॉरी, भीड़ इकठ्ठी होती है - आजकल अटैक से बहुत मर रहें है, पर पता चलता है कि अंतिम क्रिया कब होगी मालूम नही किसी को, लोग लौट जाते है, सब बिजी है, काम है, फुर्सत नही, सबको कहाँ जाना है, क्या प्राप्त करना है जीवन में नही मालूम, पर सब भयंकर बिजी है
अगली लड़ाई और मुश्किल है, सबको खबर करना है, सबसे पहले बच्चों को वाट्सएप कॉल, पर वे उठा नही रहें - कारण कि वे सो रहें है, वहाँ रात है या समय आगे - पीछे चल रहा है, सन्देश भेजें पर ब्ल्यू टिक नही दिख रही, कोई पड़ोसी को जानते नही उनके कि बोल दें, दफ्तर के सहकर्मी का नही मालूम, क्या करें कोई विकल्प ही नही छोड़ा बच्चों ने
घर में सारे रिश्तेदार आ गए है, पर बच्चों का फ्लाइट लेट है, दूसरे या तीसरे दिन रात ढाई बजे दिल्ली या मुम्बई उतरेंगे फिर सुबह यहाँ का फ्लाईट लेंगे आते - आते नौ बज जायेंगे, जल्दी करना होगा, बस मुँह दिखा दो, बॉडी सड़ने लगी है अब तो, सामान की तैयारी रखो, बस आते ही यात्रा शुरू कर देंगे
"आ गए, आ गए" - जैसे कोई खुशी हुई हो, लोग - पड़ोसी और रिश्तेदार भी ऊब गए थे, माँ - बाप, भाई, भाभी, बहन, जीजा भी दो दिन से लाश देखकर त्रस्त हो गए थे, मालवा में कहते है "सई सांझ के मरया के कद लक रोवेगा" - चाय भी पीना है, भोजन भी करना है, नहाना भी है, सोना भी है - मतलब क्या - क्या रोकेंगे, जाने वाला तो चला गया, जीना तो पड़ेगा ही, क्योंकि मौत हमारे हाथ में होती तो हम सब मर चुके होते अब तक दस बार
बहस मौत की नही, बहस है कि बच्चों का क्या करें, हमने पढ़ा दिया, वे इंदौर, दिल्ली, मुंबई से लेकर हैदराबाद और फिर फ्रांस, अमेरिका, जर्मनी, आस्ट्रेलिया, कनाडा, अफ्रीका चले गए, शादी कर दी, बहु को भी जाना था, नाती - पोते हुए तो वे यहाँ अपने घर आकर बीमार हो जाते है, पानी, हवा, खाना सब तो दूषित है यहाँ का और फिर वे एडजस्ट नही कर पातें ना
अखरता तब है - जब मृत्यु घर देखती है, तो कितना इंतज़ार करें और कब तक, लाश मर्च्युरी में रखें, नर्सिंगहोम में या घर ही बर्फ की सिल्लियों पर या किराए के डीप फ़्रीज़र में, पर लाश तो सडेगी ना, बदबू भी मारेगी, आप कितना इत्र, डीयो छिडकोगे, कितनी क्रीम देह पर मलोगे, काया तो माटी की थी, आत्मा का पक्षी उड़ गया है, पँच तत्व की देह अपने तत्वों में मिलने को बेताब है, पर हम मरने के बाद भी देह को सज़ा दे रहें है
बच्चों का अपना जीवन है, कैरियर, प्रमोशन, पैसा, पैकेज और प्रतिष्ठा है - पर गाँव, देहात, कस्बों और छोटे शहरों में पड़े माँ बाप, दादा दादी या चाचा चाची, किसी के पास कोई जवाब नही कि जाने दें या रोक ले उन्हें
दो-चार दोस्तों ने बच्चों को बुला लिया, यह कहकर कि घर का धंधा-पानी सम्हालो, यही करो जो करना है, हमें कुछ हो गया तो कौन देखेगा - समाज ने कोसा कैसे लोग है ये, बच्चों को बढ़ने नही दे रहें पर दूसरी तरफ़ बाप मर गया, लाश आठ दिन सड़ती रही, बेटा अकेला आया अमेरिका से कि मुश्किल से 3 दिन की छुट्टी मिली, पत्नी को वो भी नही मिली, फिर किराया भी बहुत इन दिनों, और करना क्या है, एक लाश के लिये आठ - दस लाख बिगाड़ना...Just funeral, it's shere waste guys...
पता नही सच क्या है, पर तीन दिन बाद जब लाश को बाँस की सीढ़ी पर रख रहें थे तो बन्द आँखों से, नाक और कान से जमा हुआ गाढ़ा खून बाहर आ रहा था, चेहरा मलिन हो गया था, पूरा बदन सूज गया था, आख़िरी समय में जब रोना चाहिए सबको, लोग ख़ुश थे कि चलो आख़िर तीन - चार दिन बाद ही सही बॉडी को निपटाने का समय आ गया
बच्चे लौट रहे है, शेष बचे लोग सोच रहे कि उनके पास कम कमाई वाले बच्चे है - वे ठीक या ये लाखों के टिकिट खरीदकर छत्तीस घण्टे हवा में उड़ने वाले ठीक है
सवाल शाश्वत है, जवाब जब नही होते मेरे पास तो मैं यहाँ रख देता हूँ कि कोई तो राह दिखायेगा ही
[ हाल ही में चार घटनाओं मतलब ऐसी ही मौत का साक्षी रहा हूँ, जहाँ मौत के बाद तीन से सत्रह दिन तक इंतज़ार करना पड़ा, एक तो मेरी सगी बुआ का बेटा था, जिसकी लाश सत्रह दिन बाद दुबई से आई, जब कॉफिन खोला तो पानी पानी हो गई थी, बहुत विचलित हूँ इस तरह के प्रकरणों से ]
***
अंध भक्तों
बन्द करो तुम्हारे मूर्ख आकाओं और आईटी सेल के मैसेज भेजना, आज तुम्हारी टीम ने क्रिकेट टीम से तुलना कर एक मैसेज ठेल दिया है, बेवकूफों, मगज के लड्डूओं कभी खुद का दिमाग तो लगाओ, कितने बड़े पैदल और ठस हो - गधों समझो जरा
क्या और काहे की तुलना कर रहे हो, इतने जाहिल गंवार हो कि एक अक्षर मन से नही लिख सकते तुम, जैसा वो फर्जी वैसे तुम भी कुपढ़ और मणिशंकर हो, सोचो कितना बड़ा बोझ हो इस धरा पर, इससे तो अच्छा है विशुद्ध गोबर खाने के साथ जानवरो के साथ जंगल भी जाओ रोज चारा चरने, तुम्हारी औलादें कितना शर्मनाक महसूस करती होगी कि किस जन्म की सजा भुगत रहे हैं
एक साथ हर जगह तुम लोग इकठ्ठे पोटे करने लगते हो, दया आती है, अब काम धंधे करो या डूब मरो - आ गया ना तीसरी बार, अभी भी आग नही बुझी क्या तुम्हारी, या 2029 तक उसका मल मूत्र ही खाते पीते रहोगे, छी है तुम्हारे इंसान होने पर
शर्म करो, इंसानों के भेष में छुपे नर सँहारकों
***

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी वह तुमने बहुत ही