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हमन को होशियारी से क्या - Mahila Kabir Yatra 1 Feb - Post of 1 Feb 2024

वहाँ से लौटा था तो ढ़ेरों कहानियाँ ले आया था, सूफ़ी अंदाज़, वहशतगर्द समय में प्रेम की बाणी, धैर्य, निर्गुण और संयम भी
आस्था, आशा, भरोसा, विश्वास और ना जाने क्या - क्या खत्म होते जा रहा है, लग रहा है चूक रहा हूँ, नई उम्र के लोगों से मिला तो लगा कि कितना रिस्क ले रहे है ये लोग - इंजीनियरिंग के आखिरी सेमिस्टर में आकर छोड़ दी पढ़ाई और जबलपुर के पास तीन दोस्त मिलकर बाँस के कारीगरों से टोपली बनाना सीख रहें है, वही रहते खाते है और रात को मस्त होकर गाते है,मेडिकल की पढ़ाई छोड़ दी, निस्संग हो गए बस एक आश्रम बना लिया है, अभी वसंतोत्सव का बुलावा है मुझे भी 11 फरवरी को इनके यहॉं
दिल्ली से फोटोग्राफी करके लगा कि दम नही व्यवसाय में तो उठकर लद्दाख चले गए - अपनी महिला मित्र के साथ, ना शादी की ना आपस में, ना दैहिक सम्बन्ध बने - बस दोस्त है और लद्दाख के जन जीवन को कैमरे में कैद कर रहें है, लोगों के साथ सीख रहें है जीना कि त्रासदी में कैसे जीते है
सलकनपुर के पास रहकर नई उम्र के बच्चों को और अपनी उम्र के युवाओं को कोचिंग पढ़ाकर संतुष्ट है, अभी तक 6 पुलिस में, 2 पटवारी और 3 नायब तहसीलदार बन गए है छात्रों में - रोजाना का रूटीन छोड़कर जेब से रूपया लगाकर यहां आये है कि नया क्या है, थोड़ा एक्सप्लोर करें, कब तक छोटी जगह का रोना रोयेंगे - जीवन बड़ा है बहुत
ठेठ गांव की लड़कियां है, कनाडा से आये युवा भी, कोई घर नही जहाँ मन किया उठकर चल दिये, एक शहर में दस दिन उसके बाद कहाँ जाना है - यह भी नही पता , एक छोटे बैग में सामान बस नही संपत्ति है , जीवन में योग सीख लिया - अब दूसरों को ठीक करने में काम आ रहा है सब कुछ, गांव की लड़कियों ने बगावत कर दी है कि वे शहर में रहेंगी - गिटार और बाँसुरी सीखेंगी पर शादी जब मन होगा तो करेंगी वरना अपना ही काम करेंगी
लखनऊ से आई थी वहां केसला में - हम प्रिविलेज्ड नही है, ना उच्च जाति के - बस अखबार निकालने का शौक है सो एक यूट्यूब बना लिया, देशभर के गांवों की खबरें डालते है, लड़कियों को छोटी फेलोशिप देकर सीखाते है और खुद भी सीखते है - कोई रुपया दे दें तो काम में ही इस्तेमाल करते है, अंग्रेजी ना आने का दुख नही, बस लोगों से जुड़ने का सुख ही जीवन का ध्येय है अब - शादी का सोचा नही, क्या लड़कियाँ अकेले नही रह सकती, माहौल खराब है हाशिये पर पड़े लोग लम्बी लड़ाई लड़ रहे है - बस वही सब कुछ दर्ज करते है
दिल्ली के खान मार्किट में दफ्तर है - वही सीखते है, हल्ला करते है और मिलकर सांप्रदायिकता से लड़ रहे है, हमारे लिखने - पढ़ने - बोलने और समझने का स्पेस कम हो रहा है इसलिए कबीर, बुल्लेशाह, नानक, रहीम, तुकाराम, ज्ञानदेव, नामदेव, रैदास और मीरा के भजन सुनते है, उनपर बात करते है और समझते है कि आज के समय में ये सब हमे कैसे जिंदा रखने में मदद कर सकते है
दूर जंगल में आदिवासियों के संग साथ मिलकर खेती सीख रहें है, उम्र के 24, 25 बरस स्कूल, कॉलेज और विश्व विद्यालयों में रहकर भेदभाव सीखकर जातिवादी बन गए, यहां कोई नाम में नही - सरनेम में ज्यादा रूचि लेता है - यह सवाल ढूंढते हुए ही यहां आये है और अब खुशी यह है कि कोई पूछे तो बस हेमा कहती हूँ या प्रशांत - आगे कोई नही पूछता
सूफ़ी संत को पढ़ने से पेट नही भरेगा - ना सामाजिक जिम्मेदारियां पूरी कर पाएंगे, यह मालूम है पर इतने लंबे जीवन में चार दिन अपनी मर्जी से, अपने जैसे लाइक माइंडेड लोगो के साथ जीना भी तो अपने लिए एक तरह का स्पेस बनाना है जहां हम सब कुछ अपनी मर्जी से कर रहें है, कोई अनुशासन में नही बांध रहा और नियंत्रित नही कर रहा
फिर लौटना है घर में, उसी सामंती समाज में पर हम एक दृष्टि लेकर जाएंगे और शायद हम वो सब ना करें जो हम झेलते आये है या अभी भुगत रहे है - आप स्पेस के बारे में जानते है क्या, आप ने कबीर को सुना और गुना है क्या, अपने मन से कोई भजन गाते हुए कभी झुमकर नृत्य किया है बगैर किसी की परवाह किये कि कोई क्या कहेगा
कितने दीप्त चेहरे है और अभी तो जेब मे रुपया नही, कोई डिग्रियों की माला नही, कोई तिकड़म या जुगाड़ भी नही, पीठ पर पिट्ठू बैग उठाये ये युवा चले आ रहें है दिल्ली मुम्बई नाशिक इंदौर उज्जैन भोपाल पटना लेह मणिपुर आंध्रा केरल और ना जाने कहाँ - कहाँ से कि यात्राएँ खोलती है, यात्राएँ जोड़ती है और यात्राएँ समझ बनाती है, स्पेस क्रिएट करती है और सबसे ज़्यादा अपनी ही नजरों में अपनी इज़्ज़त बढ़ाती है
रिस्क लीजिये, अपनी पसंद की जिंदगी जी लीजिये, वर्जनाएं तोड़कर बाहर आइये, कम्फर्ट ज़ोन में रहने से जीवन तो निकल जाएगा पर घुटन से कैसे मुक्ति मिलेगी

एक यात्रा बाहर से है और एक भीतर को पाने की और यही बाहर - भीतर के भेद को तोड़ने के लिए निकलिए, नए लोगों से मिलिये और उन युवाओं, किशोरों और बच्चों से मिलिए, लड़कियों से मिलिये - जो बदलना चाहते है सब कुछ ; उनकी आंखों में रुपहले स्वप्न है, धड़कती साँसों में साथ की आश्वस्ति है और आपको वे साथ देंगे - यह भरोसा है - बस आपको अपना अहम, दर्प, और मैं छोड़कर निकलना है

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आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

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