हिंदी कविता का वितान और सिमटा
हुआ छोटा सा मंच कुल मिलाकर दो कवियों और एकाध आधे अधूरे व्यक्ति से बचें रहें -
जो बापड़ा सबसे रजिस्टर पर हस्ताक्षर ही करवाते रहता है
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हिंदी कविता मासिक आयोजन, महाकवियों के आगमन, निरापद
आलोचकों और विश्वविद्यालयों के पुरस्कार की लालसा में जी रहें विष 'बैलों' से बची रहें, छोटे
कस्बों में लोग न आएं और न ही शहरों की कविताई वाली घटिया राजनीति के सैप्टिक टैंक
के ढक्कन खोलकर खुले छोड़ जाये - हमें सुख से जीने दें
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हे ईश्वर, हिंदी कविता को प्रगतिशील, जनवादियों, जलेस, अलेस और
प्रयोगवादियों से बचाना, बचाना - उन कवियों से भी जो हर
घटिया तुकबंदी के नीचे अपनी जवानी की फोटू चैंपकर महान बनने की प्रक्रिया में
ज्ञानपीठ या साहित्य अकादमी जुगाड़ने का जतन 24x7 करते है
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हिंदी कविता को उनसे भी बचाना
जो "तू मुझे बुला - मैं तुझे" की तर्ज़ पर महान और सबकी आँख की तारें
बनें है, कविता को खतरा
कवियों से उतना नही - जितना पोस्टर बैनर बनाने वाले उन हिंदी के मजदूरों से है जो
बड़े लोगों के चंद अशआर उठाकर उन्हें ओबलाइज करते है एवं जिनकी औकात सिर्फ़ रज़ा या
भारत भवन टाईप दुकानों से शीदा लेना और दक्षिणा वसूलना रह गया है
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हिंदी साहित्य को ऐसे लेखकों से
बचाना जो एक दिन में 48 घण्टे वाट्सएप
पर, 72 घण्टे महिलाओं से खुसुर पुसुर और शेष समय में आयोजकों
के पाँव पड़कर अपने आने जाने का जुगाड़ करते रहते है, नौकरी से
हर माह बोनस लेने वाले ये लेखक अपने विभाग में वरिष्ठ ब्यूरोक्रेट्स को प्रभावित
करने का जुगाड़ कर या उनके लिखें घटिया प्रहसनों को फेसबुक पर पेलकर दफ्तरों से
गायब रहने वालों को सद्बुद्धि देना मेरे प्रभु
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हे ईश्वर, हिंदी कविता को ऐसे कवियों से बचाना जो
पुलिस, रेवेन्यू, वन विभाग, सिंचाई, लोक निर्माण, स्वास्थ्य,
या उद्योग धंधों और राजनीतिज्ञों की दलाली में संलिप्त है, साथ ही ऐसे माड़साब लोग्स से भी जो नकल करके विवि में टॉप कर गए और
दुर्भाग्य से महाविद्यालय के लायक नही रहें - सरकारी सेवा में आखिरी उम्र की सीमा
तक जूते घिसते रहें पर घुस नही पाएँ चक्रव्यूह में और अब घोर डिप्रेशन में सबको
ट्रोल करते है या अपनी आदम काल में छपी क़िताब बेचते है
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हिंदी कविता को उनसे जरूर बचाना
भगवान जो कुछ ना कर सकें पर किसी पत्रिका के सम्पादक बन गए और उनकी खराब कविता को
जनता अहो - अहो कर वैभव से नवाज़ती है और उनकी पत्रिका में छपने को लालायित रहती है, ये गद्य लिखते है, अतुकांत
या पद्य नही पता, पर जो भी काले अक्षर चीन्हते हैं और लिखते
है - बहुत ही खराब लिखते है
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हिंदी कविता को उन युवा छात्रों
और कुंठित शोधार्थियों से जरूर बचाना जो एमए, एमफिल और पीएचडी तीन - चार विवि से करते है और रिश्तेदारों और
बाप - माँ से ज़्यादा सेटिंग फर्जी साहित्यकारों, गाइड और ऐरे
- गैरे लोगों से करके हरेक के दल्ले बन जाते है, ये हर गाइड
को साधने में माहिर होकर अपने गाइड के हर हगे - मूते का फेसबुक पर पेलते है और ऐसी
उजबकी कविता लिखते है कि कछु पल्ले नही पड़ता और इसी बहाने नौकरी की जुगाड़ में फिट
होने के ताउम्र प्रयास करते है
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हिंदी कविता को पत्रकारों और
मीडिया के लोगों से बचाना प्रभु - ये फैक्ट, फिगर, फर्जीवाड़े, फ़सानों
और फैंटेसी से कविता को भर देते है - जिसका ना सिर होता है ना पैर, अपने संवाददाताओं के माध्यम से हिम्मत कर थानों द्वारा प्रायोजित विभिन्न
शहरों में काव्य पाठ भी कर आते है कुकवि अविश्वास की तरह
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और अंत में गुहार -
हिंदी भाषा को हिंदी कविता से बचाना प्रभु वरना हिंदी
मतलब ही कविता हो जायेगा
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