तब लगा था कि यह एक अनूठा काम है क्योंकि अपनी व्यस्तता में वही एक काम देख पाया था, अभी तीन-चार दिन वहाँ रहा, ग्रामीणजनों से लेकर शासकीय लोगों और जनप्रतिनिधियों से मिला, 4-5 गाँव घूमा तो समझ आया कि बड़नगर बहुत धनवान शहर है, कहने को ब्लॉक है पर व्यवसाय से लेकर खेती और कई तरह के काम बहुत उन्नत और आधुनिक है, आसपास के इलाकों में उतना धन, कौशल, दक्षता नही जितनी बड़नगर में है
हजारों किसानों ने काली उर्वरा मिट्टी और प्रचुर पानी का इस्तेमाल करके बहुत बेहतर और शानदार काम किया है और रिकॉर्ड तोड़ उत्पादन किया है, जैविक खेती ही नही बल्कि सभी प्रकार की फसलों में परिवर्तन करके नवाचार किये है, ये सब दर्ज किया जाना चाहिये और छोटे मोटे विशुद्ध वणिक बुद्धि से किये जाने वाले स्व केंद्रित और आत्म मुग्ध कामों को दरकिनार किया जाना चाहिये
जो लोग भी अपने छोटे कामों का हो हल्ला करके जबरन का श्रेय लूटने की कोशिश करते है उन्हें ना महत्व दिया जाये ना उन्हें किसी सफल उद्यम में रखा जाये, जिन्हें कस्बे में कोई नही जानता वे ग्लोबल होने का दम भरते है
बड़नगर में बेहतर काम करके तीन फसलें लेने वाले किसानों को सलाम और इस शहर के उद्यमियों और धँधा चलाने वालों को भी जोहार जिन्होंने एक अत्यंत विकसित और सर्वसुविधायुक्त विश्व इस शहर में बसा रखा है, तीन चार दिन में यह पक्का एहसास हुआ कि कम से 1000 लोग यहाँ दस से पचास करोड़ की अकूत संपत्ति के मालिक है जिसमें जैन समुदाय से लेकर सिंधी, मुस्लिम, साहू, प्रजापति, ब्राह्मण और दलित वर्ग के लोग शामिल है , शहर में मन्दिर, मकान, दुकान, मांगलिक घरों और होटलों को देखकर कोई नही कह सकता कि यह जिले का ब्लॉक है और वैभव विलास के प्रचुर आउट लेटस है इतने कि आप किसी जिला मुख्यालय पर भी कल्पना नहीं कर सकते
अपनी पुरानी लिखी कहानी पर अफ़सोस ही कर सकता हूँ
बहरहाल
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|| हिरणा समझ बूझ वन चरना ||
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अब साहित्य एक विशुद्ध धँधा है और धन्धेबाज़ मैदान में अपना माल खपाने को पूरे साज़ों - सामान के साथ बैठे है, साहित्य से बदलाव, विकास होगा या किसी की समझ बढ़ेगी या विचारधारा बदलेगी, मानवता में बढ़ोतरी होगी या मानवीय मूल्य बढ़ेंगे - यह मुग़ालता मेहरबानी करके दूर कर लें - यदि हो तो
सोशल मीडिया इन सबकी वो कमजोर नब्ज़ है - जिस पर सवार होकर ये अपनी दुकानें चला रहे है, बड़े-बड़े दिग्गजों को देख लिया सिवाय स्वार्थ और बकर के कुछ है नही इनके पास - और जब वास्तव में मिला तो समझ आया कि समझ का भी जबरदस्त टोटा है, दो - चार ऐसे लोगों को बाहर करना पड़ा जिन्हें बीस साल से पाल रखा था और दूध पिला रहा था पर अंत में "अज्ञेय के सांप" ही निकलें, अभी तो स्थानीय या प्रादेशिक या वैश्विक किस्म के घटिया आयोजनों में भी जाने पर स्व-प्रतिबंध लगा दिया है और बाहर से आने वाले गुणीजनों से मिलने और ठिठोली करने का भी मूड नही है
बचिये और सुरक्षित रहिये, वैसे भी पुस्तक मेला आने वाला है , बिलों में दबे सभी जन - जनावर बाहर आएंगे और दीमक लगी पुरानी - नई किताबों या अलाना-फलाना अवार्डी किताब के बहाने सब जगह माल खपाने की जुगत होगी
कृपया टैग ना करें, स्वविवेक से निर्णय लेकर किताबें खरीदूँगा, आपके लिंक्स, स्टॉल नम्बर और विमोचन उर्फ किताब के केशलोचन समारोह में ना जाने की रुचि है और ना समय है
बख़्श दें इस गरीब को, आपकी कुटिलताओं और चालबाज़ियों से भली भांति वाकिफ हूँ एक उम्र से
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"Buy the people, Far (from) the people and Off the people"
- New definition of "Demon'scrazy "
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बहुत प्यारी जोड़ी और मेरे खासम खास डॉक्टर जावेद और उपासना को शादी की दसवीं साल गिरह मुबारक, इन दोनों को जानते हुए 17 साल हो गए, सन 2005 में जब ये "इनकास - पूना" से भोपाल आये थे अपनी फेलोशिप पूरी करके तब मुलाकात हुई थी और इनके काम, विचारों से बहुत प्रभावित हुआ था - युवा संवाद के माध्यम से इन्होंने काम शुरू किया और फिर हम लोग एक बड़े समूह के माध्यम से करीब आते गए और एक परिवार बन गए पता नही चला
दोनो ने दस साल पहले सँविधान प्रदत्त स्पेशल मैरिज एक्ट के हिसाब से शादी की थी, जो बेहद सादी थी और एक आदर्श रूप में थी - बगैर हल्ले और दिखावे की , जो आज के समय में बिरले ही देखने को मिलता है, यह शादी 18 जनवरी 2013 को संवैधानिक रीति यानी "विशेष विवाह अधिनियम - 1954" के माध्यम से भोपाल के एक एसडीएम कोर्ट में हुई थी
"विशेष विवाह अधिनियम" - भारत की संसद द्वारा पारित सबसे प्रगतिशील कानूनों में से एक है जो “विशेष” लोगों के लिए बनाया गया है जिसमें अलग- अलग धार्मिक पृष्ठिभूमि के होने बावजूद भी अपनी पहचान को बदले बिना शादी करना चाहते है उन्हें यह अधिनियम शादी करने की छूट देता है
कब ये दोनों मेरे निज परिवार का और मेरा हिस्सा हो गए पता नही चला - बेहद संवेदनशील, समझदार और सहज जोड़ी है इन दोनों की और अपनी उपासना तो भोपाल और रायपुर में मेरी "संकट मोचन" ही है और जावेद बाबू 24 × 7 सन्दर्भ खोजने में उस्तादों के उस्ताद
दोनो ख़ुश रहें, खूब यश कमायें यही दुआएँ है, दोनो को खूब स्नेह और दुआएँ
दूसरा दशक शुरू हो रहा है और मजे करो, लिखो - पढ़ो और मस्त रहो दोनों, इधर दशकों से ऐसी शानदार जोड़ी कम ही देखने को मिली है और इनकी वजह से कुछ प्यारे दोस्त भी बने है जैसे Ganesh SH Puranik
[ दस साल पुराना एसडीएम कोर्ट में शादी के समय का चित्र ]
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कवि
कुछ नही लिखता
पुरस्कार लेने के लिये
जुगाड़ नही करने
और
पुरस्कार ना लेने से
कवि मर जाता है
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