Skip to main content

Khari Khari and other Posts from 15 to 19 June 2022

मुझे लगता है संविदा कर्मचारियों का नाम भी अग्नि शिक्षक, अग्नि डाक्टर, अग्नि बाबू, अग्नि प्राध्यापक , अग्नि सचिव, अग्नि नर्स, अग्नि पटवारी, अग्नि कलेक्टर, आदि रख देना चाहिये

कितना सुंदर दृश्य होगा - चहूँ ओर अनगिनत अग्निवीर और अग्नि वीरांगनायें और सड़कों पर कोलाहल - इस सबके बीच फूल बरसाते मोदीजी, सभी विभागों के मंत्री - मंत्राणी, विभाग प्रमुख और ब्यूरोक्रेट्स की लम्बी फ़ौज जो तर्क करने को तत्पर और प्रेस से मुस्कुराते मुख़ातिब , क्योकि मोदी जी तो आएंगे नही सामने
अहा महाभारत याद आ रहा है - क्या दृश्य है तीरों की वर्षा, आकाश में गड़गड़ाहट, युद्ध, मौतें और कृष्ण का अर्जुन को गीता ज्ञान कि "हे गृह मंत्री - तू गोली चला, लाठी भांज, ये सारे अग्नि वीर और वीरांगनायें ही तेरे दुश्मन है - वोट का मोह ना कर और निपटा सालों को जड़ से"
यदा यदा ही धर्मस्य ....
***
|| हिन्दी का विराट सांस्कृतिक कूड़ाघर ||
●●●
■ अम्बर पांडेय
मराठी उपन्यासकार भालचन्द्र नेमाडे के विशाल उपन्यास का नाम है- हिन्दू: जीने का समृद्ध कबाड़ (हिंदू : जगण्याची समृद्ध अडगळ), यहाँ बताता चलूँ कि हिन्दू से नेमाडे की अर्थ बहुत समृद्ध है, हिन्दू शब्द वे भौगोलिक अर्थ (South Asia) में प्रयोग करते है, कभी सांस्कृतिक और कई बार हिंदुस्तान के नागरिकों के लिए वे हिन्दू शब्द का प्रयोग करते है। हिन्दी के वाम की तरह हिन्दू को वे संकुचित अर्थों में ग्रहण नहीं करते न मराठी समाज को हिन्दू शब्द का अर्थ संकुचित करने देते जैसा कि हिन्दी के बहुसंख्यक लेखक करते आए है चाहे वे वामपंथी रहे हो दक्षिणपंथी। जब साहित्यकार अपनी भाषा को राजनीति के हाथों में दे देते है कि इसका वे जैसे चाहे उपयोग करे तो वह होता है जो भारतीय राजनीति में विशेषकर उत्तर भारतीय राजनीति में हो रहा है। कवियों के राम का पहले धर्म हरण करता है और उसके बाद राजनीति राम का अपहरण कर लेती है। रामायण केवल सीताहरण की कथा नहीं है, यह राम के हरण की भी कथा है। असहिष्णुता सबसे पहले कवियों और साहित्यकारों से शुरू होती है इसलिए पूरे संसार का साहित्य प्रेम का, स्नेह का ऐसा उत्सव मनाता है कि सबसे पहले कवि इसे याद रखे।
और उत्सव कभी कबाड़ नहीं होता, उसे मूर्ख से मूर्ख मनुष्य भी कूड़े में नहीं फेंकता। उत्सव और प्रेम साहित्य की दो आँखें है, जैसे मंच पर चढ़े अभिनेता की आँखें कभी अनुराग दीप्त हो उठती है कभी घृणा बरसाने लगती है, कभी क्रोध में अंगारा हो जाती है उसी तरह उत्सव और प्रेम साहित्य के शताब्दियों से कभी प्रेम, कभी क्रोध, कभी विद्रोह जताने के काम आते रहे।अभिधा और लक्षणा को लाँघकर भाषा व्यंजना के देश में साहित्य बन जाती है, यह हमारे आलोचक और वामपन्थी मित्र बहुत पहले ही विस्मृत कर चुके है। व्यंजना का, बहुध्वन्यात्मकता का भय इतना ज़्यादा है कि थोड़ा भी बाँकपन चालाकी की निशानी मान लिया जाता है मगर याद रखना चाहिए कि कमान हमेशा बाँकी होती है। सीधा तो तीर होता है, तीर वह जो निशाने पर लगे और तीर से यहाँ मेरा अर्थ है — अर्थ। आज कवि और लेखक कमान सीधी करने में इतने व्यस्त है तीर दूर जाता नहीं दिखता। ज़्यादा से ज़्यादा इनके यार ही उड़ता तीर पकड़कर या तो वाहवाही करने लगते है या तीर उठाए राजनीति के पीछे भागते है मगर न तीर ऐसे मारा जाता है न राजनीति ही ऐसे पछाड़ी जाती है नतीजा ये होता है कि सबके पिछवाड़े सलामत है बस साहित्य की ही कमर टूटी हुई है।
बात दूसरी दिशा में चली गई तो पुनः इसे कबाड़ पर, कूड़ेघर पर लाता है। घूरे से ही कबाड़ इकट्ठा किया जाता है और फिर इससे बहुरि गृहस्थी जोड़ ली जाती है। तिरस्कृत का सौंदर्य शास्त्र से इस जुगत से शास्त्रीय परम्परा से जुड़ेगा ऐसा इस युग से पहले तो किसी फ़न्नेखाँ ने न सोचा होगा क्योंकि इससे पहले हमारे बाप दादों की नज़र ज़रा ज़्यादा उदारचेता थी— जो बात विचारधारा में अंट न रही हो तो भी सहेज ली जाती थी। आज आलम यह है कि चाहे बाएँवादी हो कि दाईंपंथी जो इनकी तिजोरियों में अँटता नहीं उसे कबाड़ मान लिया जाता है फिर चाहे वो हीरे की मुँदरी हो कि प्लास्टिक की कंघी।
बोलियों की धोती बाँध और उस पर पश्चिमी चश्मा लगाकर साहित्य का खेत नहीं जोता जाता।
***
लूट खसोट का एक नायाब नमूना
इसका न कोई हिसाब है और ना कुछ सोचिये देशभर में कितने खाते होंगे और गरीबी में आटा गीला टाईप और फायदा किसको है
बैंक जब चाहे तब छोटी छोटी राशि काटकर मनमर्जी करता है कभी मेसेज के नाम पर कभी डिजिटल डेबिट कार्ड के नाम पर और गधों को पालने का यह सालाना शुल्क आज से 8 रुपया बढ़ गया कुल 20 रुपये सालाना
---
Dear Customer, the premium for your Pradhan Mantri Suraksha Bima Yojana has been revised from Rs 12 to Rs 20 by the Ministry of Finance. Thus, the Bank will debit the incremental amount of Rs 8 from your ICICI Bank Account0000 by 18-Jun-22. The renewal policy shall be issued in the month of July post realisation of the additional premium. Please note that if the additional funds are not debited, the existing amount shall be refunded in your Account and the policy shall cease to exist
---
ओ निर्मला बाई कुछ तो रहम कर
***
इत्ते मुस्लिम दोस्त है
ससुरा अब्बास कोई हेगा ईज़ नई
जीवन व्यर्थ चला गया पूरा - उफ़्फ़
***
आज श्रद्धेय हीराबेन के साथ उन लाखों - करोड़ों माताओं का भी आशीर्वाद ले लेते - जिनके लाल सड़कों पर तुम्हारी गोली , लाठी और अश्रु गैस के गोले सह रहें हैं, मर रहें है , उन माताओं के लालों के लिए भी कुछ कर देते - जिनके लालों का भविष्य खतरे में डाल दिया है और अँधेरे में धकेल दिया है अम्बानी अडानी को देश बेचकर
कैमरे के सामने नही - मीडिया के सामने आओ महाराज , कब तक नौटँकी करते रहोगे, 8 साल हो गए एक तरफा काम करते और थोपते हुए
***
जो देश, जो सत्ता अपने युवाओं को सुरक्षित आजीविका, सुखद जीवन और शिक्षा के मौके नही दे सकते - उनका खत्म हो जाना ही बेहतर है, पदच्युत किये बिना अब कोई हल नही
दुर्भाग्य कि पिछले 25 - 30 वर्षों में सभी ने मिलकर "नौकरी को शब्दकोश से बाहर" कर दिया, कुछ दलाल पत्रकार अपनी निजी चाटुकारिता की घटिया कहानियां परोसकर इन युवाओं को कोस रहें है कि सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचा रहें है पर सरकारी संपत्ति बची कहाँ है, मनमोहन सिंह के वैश्वीकरण और खुलेपन की नीति के बाद और 2014 से इन कार्पोरेट्स के देश बेचू गुलामों ने सब तो अम्बानी अडानी को बेच दिया - सरकार का आज है क्या जो नुकसान नुकसान की बात लोग कर रहें है
सब को यह समझ नही आ रहा कि आगे आने वालों के लिए जीना कितना कठिन हो जाएगा, बच्चों का क्या भविष्य है - शुक्र है कि ज्ञानवापी, अगवा - भगवा और गौरव यात्राओं के बाद इनकी असलियत युवाओं को समझ आ रही है, सुंदरकांड के भोंगो की असलियत दिख रही है अब, प्रचंड हिंदूवाद का जहर उतर रहा है और इनके माथे पर पसीना छलछला रहा है, पर निर्लज्ज है जब किसान आंदोलन से कुछ नही सीखा, कश्मीर से नही सीखा - तो अब क्या सीखेंगे ये नौटँकीबाज - कैमरे को सामने किये बिना इनकी टट्टी नही उतरती तो क्या किया जाए, अपने निजी क्रिया कलाप भी सुबह उठकर देश को परोसते रहते है बेवज़ह
कमाल यह कि प्रबुध्द वर्ग जिनके किशोर वय के बच्चे बड़े हो रहें है - वे भी युवाओं को कोस रहें है, अरे सोचो - तुम्हारी मुखाग्नि में कम से कम दो हजार लग जाएंगे - और क्या तुम्हारी औलादें इतनी सक्षम होंगी कि घी की एक बूंद तुम्हारी मृत देह पर लगा पाएंगे या गंगाजल का एक छोटा सा चरु खरीदकर पानी डाल पाएंगे - छि कितने नीच हो तुम - जो अपने सामने बड़े हुए रोजगार की मांग कर रहें युवाओं को गाली दे रहें हो - शर्मनाक है और धिक्कार है तुम पर
अब देश को नई आजादी चाहिये - 2014 के बाद जॉम्बी बने भक्तों से आजादी और इसका आंदोलन ये युवा लड़ें तो बहुत जल्दी जीत जाएंगे, बस यह है कि भक्त हर बिल और दर्रे में छुपे है - प्रशासन से लेकर दूर जंगल के आदिवासी टोले में भी
भक्तों और भक्ति से आजादी के बिना अब विकास मुश्किल है
***
अग्निपथ, सॉरी अग्निवीर पर कुछ नोट्स
•●•
◆ अग्निवीर बढ़िया योजना है , बस इन्हें सेना से न जोड़कर ज़ेड श्रेणी वाले लोगों की सेवा में लगाया जाए - राष्ट्रपति से लेकर राज्यपाल, रामदेव, आशाराम टाइप निठल्लों तक
◆ बाकी तो मोदी जी हर बार धाँसू ही लाते है
नोटबंदी - क्या निकला
जीएसटी - क्या निकला
370 - क्या निकला
तीन तलाक - क्या निकला
2 करोड़ रोज़गार हर साल - क्या निकला
कोरोना घपले - क्या निकला
चीन पाकिस्तान - क्या निकला
विदेशी धन का निवेश - क्या निकला
🛎️🛎️🛎️🛎️
◆ बजाओ रे , मोदी ने बोला था याद है ना बेट्टा
◆मोब लिंचिंग, बीफ, मन्दिर - मस्ज़िद, हिन्दू - मुस्लिम, ज्ञानवापी - सब कर लो बै युवाओं, इस देश को ही नही अपने घर को भी आग लगा दो और जाओ बनो अग्निवीर, 5 किलो मुफ्त राशन देगी सरकार, कंडोम से लेकर शौचालय मुफ्त है तो कमीनों और क्या चाहिए तुम्हें और बच्चे पैदा करो - दलिया, मिड डे मील से लेकर यूनिफॉर्म तक सब फ्री है ना और 85 % बहुजनों को आरक्षितों को दनादन नौकरियां मिल ही रही है लगातार , दिव्यांग भी खुश है
◆ सुंदर कांड के भोंगे लगाओ यारां, मिठाई बाँटो सालों 10 लाख पद भरे जाएंगे
◆ तुम जाओ मरो सीमा पर 4 साल में, नही तो आने के बाद मरो - जब खून चूस लिया जायेगा
◆ बढ़िया 2024 में हिन्दू राष्ट्र बनाने के लिये इतनी कुर्बानी नही दे सकते, तुम्हारे नेता के लिये
◆ बन्द करो बै - स्कूल, कालेज और सब धंधे, साला बजट खाऊ लोग देश खा गये साले ये माड़साब लोग कछु नही सिखाया तुम्हें 75 सालों में - क्या था वो सा विद्या या ....
◆ ये साला प्रशासनिक लोगों को भी 4 साल के लिए रखों - चपरासी से लेकर केबिनेट सचिव तक, भगाओ कलेक्टरों एसपी को - तुम करो ये 4 साल के लिए, कोर्ट में भी एडीजे से सीजेआई तक हटाओ - कार्यकर्ता करेंगे अब ये सब, ससुरे सब बहुत रुपया पीते है
◆ बस मोदी और शाह को स्थाई कर दो 2050 तक और देश के कोषालय पर अम्बानी - अडानी बिठा दो
◆ और मेरे नौजवान दोस्तों, सब चंगा सी, आज रात सपने में तुम्हारी चंपा आई होगी - क्या गोली दिए कि शादी कब करोगे, वो भी हल है - फटाफट कर लो और जसोदा बैन बनाकर छोड़ दो, प्रचारक बनो एक दिन प्रधान बन जाओगे
◆ बोलो जयसिरी राम, चलो बनारस , मस्ज़िद खोदेंगे, एक धक्का और दो ....
***
सड़क पर पिघलते
चारकोल में
डुबकी लगाता
किसी ठेकेदार का चेहरा,
भ्रष्टचार के रुपयों सा
लकदक और गमकता
बियर सा महकता
गोबर सा अक्षुण्ण स्वाद
प्रेम में डूबी स्त्री के
आत्मा के सूरज सा
दिखाई देता है
◆ चि त्त च तु र्वे दी
[ नई वाली हिंदी ]
( मप्र के पूर्वी निमाड़ की सड़कों पर खतरनाक धूप में घूमते हुए प्रेम की परिभाषा )
***

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी वह तुमने बहुत ही