सुनो, शिमला की भीड़ में तुम्हारा नाम ना देखकर प्रसन्नता ही हुई
जो बापड़े सत्यनारायण की कथा, वैभव लक्ष्मी के उद्यापन, गरुड़ पुराण सुनने और हरिभजन में जा रहें हैं - उन सबको सुकामनाएँ और अग्रिम में भावभीनी सहृदय से सहानुभूति, समानुभूति नही - क्योकि मैं नही जा रहा सुनने या परसादी लेने
सवाल यह है कि एक दो दिन में इतना सब, क्या मज़ाक है, पूरी भारतीय भाषाओं और बोलियों की शिकंजी पिलाकर अंत मे डुगडुगी बजेगी जय हो , जय हो, जय हो ; अपच नही होगा क्या, कौन, कब, कैसे, किसको सुनेगा, मिलने - जुलने और हाय्य - हेलो में टाइम निकल जायेगा
लगता है आयोजन नही - भीड़ जुटाई गई है, क्या निहितार्थ है, भगवान जाने सरकारी है तो लगता है सरकार इन सबको साधकर अपने कलंक धोना और धुलवाना चाहती है - मेरी दृष्टि कमज़ोर होगी पर 70 % नाम तो कभी सुने ही नही - है कौन ये लोग, किस लोक से आते है
लगता है किसी को शेष नही छोड़ा है , साहित्य अकादमी दिल्ली ने किसी को बख्शा नही है, हर भाषा और बोली से जमूरों और उस्तादों को इकठ्ठा कर तीन दिन में साहित्य की सेवा का संकल्प लिया है, लगता है मज़ाक बनाकर रख दिया है आयोजन के नाम पर, और कुछ बेहद चर्चित नाम जो प्राध्यापकि ठसक से वाइरल की तरह हमेंशा वातायन में तैरते रहते है गायब है - क्या लेनदेन तय हुआ भैया जी , भैंजी - बतायेंगे
बाय द वे, आपका नाम आया क्या, पोस्ट दिखी नही - कट पेस्ट वाली नीले - पीले रंग की , अभी 28 पेज का आमंत्रण भाई Ganesh Gani की भीत पर पढ़कर आया, हांफ गया हूँ - मानो दस किलोमीटर दौड़ लगा ली
अभी उठा भी नही था मैं और शुरू हो गया ससुरा सुबू - सुबू फोन पर - "क्या है बै, रात भर में कितनी लिख दी " मैंने झुंझलाते हुए कहा
"जी, ज़्यादा नही 12 -15 है, आज की सारी कविताएँ सत्यवान - सावित्री पर है" - लाईवा बोला
मैंने कहा - "अबै, आज चाय और खून दोनो मत पी किसी का, आज रक्तदान दिवस है जाकर थोड़ा खून ही दान कर दें, कम्बख़्त कभी तो किसी के काम आ, और अब फोन मत करियो नही तो किडनी दान करवा दूँगा - समझा" - फोन बंद करके सो रहा हूँ फिर से
Comments