दिन बना दिया आपने आलोक धन्वा जी से बात करके पंकज भाई उन दिनों पचमढ़ी में राज्यपाल निवास के पास DIET में एक प्रशिक्षण था शिक्षकों का, मैं भी वही रुका था दस बारह दिन, हम लोग SCERT के लिए प्रदेश के आठवी तक के बच्चों के लिए भाषा गणित और सामाजिक अध्ययन पर किताबें लिख रहे थे सन 1995 -96 का समय होगा एक दिन शाम को घूमने निकले तो देखा कि निर्मल जी पास के किसी मैदान में लेटे है और कोई किताब पढ़ रहे है, मैंने जाकर नमस्ते की और परिचय दिया अपना और उनका हाल पूछा तो कुछ नही बोलें और मुस्कुरा दिए, पश्चिम पर कुछ निबंध लिख रहे थे जिसकी बाद में किताब भी आई थी, और फिर एक दिन मुझे अंतिम अरण्य का लिखा एक चेप्टर सुनाया - जिसमे वह पंक्ति है "वह जब आता है (ज्ञान) तो बहुत देर हो चुकी होती है" रफ ड्राफ्ट था - बहुत मोटे तौर पर इस उपन्यास की शुरुवात सम्भवतः कर दी थी उन्होंने शायद या सिर्फ लिख रहे थे - बाद में इसे एक उपन्यास का स्वरूप दिया रोज दिखते, अकेले चहल कदमी करते हुए, पर ज्यादा बात नही करते थे, मेरे पास हंस या समकालीन जनमत होती थी और वे बस मुस्कुरा देते थे देखकर और उनके पास कोई अँग्रेजी किताब या पत्...
The World I See Everyday & What I Think About It...