रसीला आमभात
जिस साल संजय गांधी की हत्या हुई या दुर्घटना हुई, हम लोग मनावर में थे पिताजी की नौकरी वहाँ थी और हम हर दीवाली और गर्मी की छुट्टी में वहां जाते थे और पूरा समय वही बीताते थे
मनावर में आम उन दिनों बड़े मनुहार से मिलते थे, कृषि फॉर्म मंगला देवी के रोड पर था और वही से आम आते थे. जब मनावर जाते तो ब्लाक कॉलोनी में लगभग सभी अधिकारियों के परिवार और बच्चे वहाँ आया करते थे और हम लोग शाम में खूब सायकिल चलाते, कैरम शतरंज, लूडो आदि खेलते और धमा चौकड़ी मचाते
माँ और बाकी सभी महिलाओं की रोज कुछ ना कुछ पार्टियां होती रहती गपशप और इस तरह समय बीतता, एक मराठी परिवार था जो स्थाई वही रहता था - करकरे परिवार, और वो काकू बढ़िया व्यंजन बनाती थी आम के साथ बाकी सभी
वट सावित्री पौर्णिमा जून में आती और आम जैसे राजा फल पर हम लोग लूट पड़ते थे, पिताजी बीडीओ थे और खेती के साथ सारे विकास काम उनके जिम्मे थे, कृषि फॉर्म भी उनके काम का हिस्सा था, मूंगफली आलू आदि बड़े प्यार से हमें कृषि फॉर्म का स्टाफ दे जाता था जब हम वहां होते थे तो. गर्मी के मौसम में स्टाफ के लोग हर आठ दस दिन में दो - तीन बोरी आम दे जाते, हमें खाने को कम मिलते थे क्योकि माँ पूरी कॉलोनी में बाँट देती थी
करकरे काकू के हाथ का बना आमभात इतना जबरदस्त होता कि कई बार उसके नाम से ही हम साल भर इंतज़ार करते और हर गर्मी की छुट्टी में बिला नागा पहुँच जाते मनावर और उनके घर तो रोज जाना बनता ही था, सहज इतनीथी कि रोज सुबह का नाश्ता अमूमन उनके घर ही हम करते और हम - मतलब बच्चों की टोली लगभग 15 - 20 की वानर सेना होती - आज एक कप चाय पिलाना किसी को महंगा पड़ता है
सालों हो गए सन 1975 - 1986 तक पिताजी वहां रहें , मनावर जाना हमेशा बना रहा और आमभात खाना भी, उसके बाद पिताजी का स्थानांतर इधर हो गया और सन 1989 में उनका देहांत हो गया. कई बार मनावर गया उसके बाद, अपने घर यानी उस सरकारी आवास को देखा, झाँका और करकरे परिवार के बारे में पूछताछ की, परन्तु कुछ हासिल नही हुआ, लालच मिलने का तो था ही परन्तु सबसे बड़ा लालच उस आमभात को बनाने की विधि का भी था - जिसका स्वाद आते ही आज भी मन भीग जाता है और आममयी हो जाता है
दर्जनों बार मैंने कोशिश की एकदम सादा आमभात बनाने की, मेवे डालकर भी बनाया, दूध, खोया और ना जाने क्या क्या प्रयोग किये, नवाचार किये परन्तु वो लजीज स्वाद ना आया जो स्मृति में बसा है, हो सकता है माँ के साथ बचपन और वो निश्छल दोस्तों की मिठास उसमे थी और आज यह सब नहीं है
हर बार आम का मौसम आता है, आम के साथ ढेरो स्मृतियाँ, आमभात, मनावर के दोस्त, मंगला देवी का पहाड़ी पर बसा मंदिर, करकरे काकू और ना जाने क्या - क्या याद आता है दिल बैठ जाता है, आज फिर सुबह से वो आमभात सपने में आया और हंसती मुस्काती करकरे काकू याद आई जो - उनके घर से आते समय देशी दोने में मुझे आम भात दे देती थी...........
[ घर के बच्चों के लिए बनाया था कि इस दिव्य फल को रस के अतिरिक्त तरीके से कैसे खाया जाता है खाना सीखें, इसे बनाने की विधि बहुत ही सरल है, चावल को धोकर पकाने रख दें, जब आधे पक जाए तो आम का रस मिला दें और गाढा होने दें पकने तक, फिर चाहे तो खोया भी मिला दें या थोड़ा दूध ताकि उसमे और स्वाद आये, फिर शक्कर मिलाकर पकने दें अंत में मेवे डालकर गर्मागर्म या ठंडा करके खाएं - अहा !!! बस यह ध्यान रहें कि आम का रस अलग - अलग वैरायटी के आम से बना हो ताकि स्वाद मजेदार रहें ]
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तन तपा, मन उदास रहा, धूप में शरीर मानो जल गया, हवाओं ने रिश्ते तोड़ दिये
उमस ने बेचैनी बढ़ाई तो मैंने ऊपर देखा, पूछा कोई है - तो जवाब नही आया कोई बड़ी देर तक
फिर मैंने तीन इच्छाएँ जाहिर की
एक कि धरती की प्यास मिटें
जो पत्तियाँ फूटी है वो हरी रहें और फूलें फलें
हवाओं का घमंड टूटे - वो शीतल होकर सदव्यवहार करें सबसे
गुनगुनी सी इच्छाएँ बुदबुदाकर मैं छत पर आया
यूँ मौन हो गया जैसे सभ्यता ने भाषा छीनकर गूंगा बना दिया हो मानव जात को
बादल घुमड़े, हवाएँ काँपी, बेख़ौफ़ होकर बादल गरजे और थोड़ी देर में पानी बरसने लगा
अभी छत पर हूँ और भीग रहा हूँ ऐसे कि यह आदिम प्यास बुझ जाये
सृष्टि के लंबे चौड़े पड़ाव, अक्षुण्ण क्रियाकलापों और चमत्कारों पर छोटी सी जीवन यात्रा वाला अदना सा अकिंचन, तुच्छ प्राणी इस समय प्रार्थना के अलावा और क्या कर सकता हूँ
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