|| आता ना जाता, मैं भारत माता ||
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राम, श्याम, सोहन, मोहन, गीता, सीता, चम्पा चमेली टाईप युवा पत्रकार सिर्फ स्कैंडल बनाने के लिए बगैर अध्ययन और तथ्यों के बकवास लिखते हैं, प्रेम, मुहब्बत, ब्रेकअप, सिगरेट के छल्लों, लिजलिजी भावुकता और बकवास पोस्ट के साथ रोज़ बकर लिखते है और खुद को खुदा समझते है, 23 - 24 साल उम्र हुई नही और लाइक्स कमेंट्स की भूख इन्हें कॉपी पेस्ट करने का बढ़िया अवसर देता है, एक साल में दस नौकरी बदलने वाले ये विचारधारा और विचार दोनो से एकदम रिक्त होते है, अपनी बेवफ़ा माशूकाओं के फोटो डालकर उन्हें बदनाम करेंगे पर जेंडर समानता पर जरूर लिखेंगे और यह भी कि घर में माँ ही सब काम करती है और मैं राजा बेटा बनकर निठल्ले टाईप घूमता हूँ, खुद बेहद सामंती होंगे पर दलितों के नाम पर टसुए बहाएंगे रोज, जबरन पुलिस से भेड़े लेंगे ताकि जल्दी प्रचार मिलें और एक रात में फेमस हो जाये, और पुलिस देखकर दस्त हो जायेंगे वो अलग
कॉपी पेस्ट, चाटुकारिता करके स्वयंभू महान बनें ये लोग आपसे नौकरी के लिए चिरौरी करते है और जब तर्क की बात करो या इनकी पोस्ट पर वाजिब सवाल करो तो खिसिया जाते है, फर्जी क्रांतिकारी नुमा ये लोग गज़ब ही होते है, निजी जिंदगी में फ्रस्ट्रेटेड और अपराध बोध से ग्रस्त, बचो इनसे
कोरोना में बीमार हो गए है बापडे, क्या किया जाए, कहानी कविता से लेकर विएतनाम तक लिखेंगे कॉपी पेस्ट करके, बस महान बनना है रवीश, पूण्य प्रसून या रजत शर्मा आता जाता कुछ नही सिवाय कॉपी पेस्ट के , फेसबुक पोस्ट से इन्हें लगता है क्रांति हो जायेगी, एक वेब पोर्टल नही पूछता, दिल्ली मुम्बई में तेल लगाते है सम्पादकों को और दस हजार में बंधुआ बनने को तैयार हो जाते है अहमक कही के
ख़ैर
#खरी_खरी
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जो ठसक वन विभाग के डीएफओ में होती है जो लटके झटके होते है और भयानक घमंड होता है, वह विद्या बालन में दिखा नही, अलबत्ता सहज रूप से आदिवासियों की जल जंगल जमीन की समस्याओँ को दर्शाने में कुछ हद तक फ़िल्म कामयाब रही, हमें असल मे सस्पेंस, मारधाड़, अपराध, चमक दमक और स्कैंडल की इतनी आदत पड़ गई है सीधी सादी जीवन से जुड़ी और दिन रात काम करती महिला वनाधिकारी की फ़िल्म में रोचकता नही लगती और उन पैमानों पर यह फ़िल्म फेल है
मप्र के बालाघाट जिले के गढ़ी, बैहर के सुदूर जंगलों में फिल्माए दृश्य रोमांचित करते है और निर्मल वैन गंगा नदी से जुड़ी और पेंच, पन्ना, कान्हा, बांधवगढ़ तथा माधव नेशनल पार्क से जुड़ी जंगल की स्मृतियों को फ़िल्म ताजा कर गई
देखिये, यदि एक धीमी गति से चलने वाली शुष्क फ़िल्म में आपकी रुचि हो तो
#शेरनी अमेजॉन प्राइम पर है
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शानदार, जोरदार, जबरदस्त फ़िल्म
नेटफ्लिक्स पर जरूर देखें , ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों के लिए खेल कितने जरूरी है और कैसे छोटे से प्रोत्साहन से वे बड़ा चमत्कार करते है, कैसे स्केटिंग जैसे नए खेल का ग्रामवासी विरोध करते है और अंत मे खेल ही जीतता है , जेंडर आधारित भेदभाव भी यहाँ है पर प्रेरणा की माँ उसको एक बार सहारा देती है और प्रेरणा घायल चोटिल होकर पुनः लौटती है और जीतती है
"Skater Girl"
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